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भाग 27

18 जुलाई 2022

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें नहीं मालूम। पता नहीं आदमी 'लंग्स' को दिल कहता है या 'हार्ट' को। जो भी हो, 'हार्ट' 'लंग्स' या 'लीवर' का प्रेम से कोई सम्बन्ध नहीं है।"

अब वह यह मानने को तैयार है कि आदमी का दिल होता है, शरीर को चीर-फाड़कर जिसे हम नहीं पा सकते हैं। वह 'हार्ट' नहीं वह अगम अगोचर जैसी चीज है, जिसमें दर्द होता है, लेकिन जिसकी दवा 'ऐड्रिलिन' नहीं। उस दर्द को मिटा दो, आदमी जानवर हो जाएगा।...दिल वह मन्दिर है जिसमें आदमी के अन्दर का देवता बास : करता है।

बचपन से ही वह अपने जन्म की कहानी को कभी भूल नहीं सका। प्रत्येक इतिहास पर गौरव करनेवाले युग में पले हुए हर व्यक्ति को अपने खानदान की ऐसी कहानी चाहिए जिसके उजाले से वह दुनिया में चकाचौंध पैदा कर दे। लेकिन डाक्टर के वंश-इतिहास पर काली रोशनाई पुती हुई है-जेल की सेंसर की हुई चिट्ठियों की तरह। काली रोशनाई से किसी हिस्से को इस तरह पोत दिया जाता है कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि उस हिस्से में कभी कुछ लिखा हुआ था।...जन्म देनेवाली माँ ने भी जिसे दूर कर दिया।...अँधेरे में एक अभागिन माँ, दिल का दर्द और भयावनी छाया आकर हाथ बढ़ाती है, माँ अन्तिम बार अपने कलेजे के टुकड़े को, रक्त के पिंड को, एक पलक निहारती है, चूमती है। भयावनी छाया उसके हाथ से शिशु को छीन लेती है। माँ दाँतों से ओठ दबाए खड़ी रह जाती है !

डाक्टर ने अपनी माँ के स्नेह को, अँधेरे में खड़ी 'सल्हुटेड' तस्वीर-सी माँ के दुलार की कीमत को, समझने की चेष्टा की है। वह गला टीपकर मार भी तो सकती थी। खटमल को मसलने के लिए अंगुलियों पर जितना जोर डालना पड़ता है, उस पाँच घंटे की उम्र के शिशु की जीवन-लीला समाप्त करने के लिए उतने-से जोर की ही आवश्यकता थी। माँ ऐसा नहीं कर सकी।...शायद उसने चेष्टा की होगी। गले पर एक-दो बार अँगुलियाँ गई होंगी। सोया हुआ शिशु मुस्करा पड़ा होगा और वह उसे सहलाने लगी होगी।...उसने अपनी बेबस, लाचार और अभागिनी माँ के मन में उठनेवाले तूफान के झकोरे की कल्पना की है।...वह अपनी माँ के पवित्र स्नेह का; अपराजित प्यार का जीता-जागता प्रमाण है !

किसी भी अभागिन माँ की कहानी सुनते ही वह मन-ही-मन उसकी भक्ति करने लगता है। पतिता, निर्वासित और समाज की दृष्टि में सबसे नीच माँ की गोद में वह क्षण-भर के लिए अपना सिर रखने के लिए व्याकुल हो जाता है।...किसी स्त्री को प्रेमिका के रूप में कभी देखने की चेष्टा उसने नहीं की। वह मन-ही-मन बीमार हो गया था। एक जवान आदमी को शारीरिक भूख नहीं लगे तो वह निश्चय ही बीमार है, अथवा 'ऍब्नॉर्मल' है।

डाक्टर ने एक नए मोड़ पर मुड़कर देखा, दुनिया कितनी सुन्दर है !

वह लोक-कल्याण करना चाहता है। मनुष्य के जीवन को क्षय करनेवाले रोगों के मूल का पता लगाकर नई दवा का आविष्कार करेगा। रोग के कीड़े नष्ट हो जाएंगे, इंसान स्वस्थ हो जाएगा। दुनिया भर के मेडिकल कालेजों में उसके नाम की चर्चा होगी। 'प्रशान्त मेथड', 'प्रशान्त रिऐक्शन' । डब्ल्यू.आर. की तरह पी.आर. कहेंगे लोग। इसके बाद !...'टेस्टट्यूब बेबी' किसे माँ कहेगा ? तब शायद माँ एक हास्यास्पद शब्द बनकर रह जाएगा।...जानते हो, पहले माँ हुआ करती थीं ?...एक अर्धनग्न से भी कुछ आगे लड़की, 'टेली-काफ' के द्वारा अमेरिकन पेस्ट्री का घर बैठे स्वाद लेती हुई मुड़कर ३ कहेगी-'प्रीटेस्ट ट्यूब एज ? सि-सि !...म्वाँ ! ट्यूब म्वाँ !'

...माँ ! माँ वसुन्धरा, धरती माता ! माँ अपने पुत्र को नहीं मार सकी, लेकिन पुत्र अपनी माँ को गला टीपकर मार देगा। शस्य श्यामला !..

भारतमाता ग्रामवासिनी !

खेतों में फैला है श्यामल,

धूल भरा मैला-सा आँचल !

मैला आँचल ! लेकिन धरती माता अभी स्वर्णांचला है ! गेहूँ की सुनहली बालियों से भरे हुए खेतों में पुरवैया हवा लहरें पैदा करती है। सारे गाँव के लोग खेतों में हैं। मानो सोने की नदी में, कमर-भर सुनहले पानी में सारे गाँव के लोग क्रीड़ा कर रहे हैं। सुनहली लहरें ! ताड़ के पेड़ों की पंक्तियाँ झरबेरी का जंगल, कोठी का बाग, कमल के पत्तों से भरे हुए कमला नदी के गड्ढे ! डाक्टर को सभी चीजें नई लगती हैं। कोयल की कूक ने डाक्टर के दिल में कभी हूक पैदा नहीं की। किन्तु खेतों में गेहूँ काटते हुए मजदूरों की 'चैती' में आधी रात को कूकनेवाली कोयल के गले की मिठास का अनुभव वह करने लगा है।

सब दिन बोले कोयली भोर भिनसरवा...वा...वा

बैरिन कोयलिया, आजु बोलय आधी रतिया हो रामा...आँ...आँ

सूतल पिया के जगावे हो रामा...आँ...आँ

किसी के पिया की नींद न टूट जाए ! गहरी नींद में सोए हुए पिया के सिरहाने पंखा झलती हुई धानी को डर है, पिया की नींद न खुल जाए; सपना न टूट जाए !

डाक्टर भी किसी की दुलार-भरी मीठी थपकियों के सहारे सो जाना चाहता है, गहरी नींद में खो जाना चाहता है। जिन्दगी की जिस डगर पर बेतहाशा दौड़ रहा था, उसके अगल-बगल, आस-पास, कहीं क्षणभर सुस्ताने के लिए कोई छाँव नहीं मिली। उसने किसी पेड़ की डाली की शीतल छाया की कल्पना भी नहीं की थी। जीवन की इस नई पगडंडी पर पाँव रखते ही उसे बड़े जोरों की थकावट मालूम हो रही है। वह राह की खूबसूरती पर मुग्ध होकर छाँह में पड़ा नहीं रह सकेगा। मंजिल तक पहुँचने का यह कितना जबरदस्त रास्ता है जो राही को मंजिल तक पहुँचाने की प्रेरणा देता है !...वह क्षण-भर सुस्ताने के लिए उदार छाया चाहता है। प्यार !...

सूतल पिया के जगावे हो रामा !

पिया जग गए, धानी ने पिया को बिदाई दी। पिया को जाना है। हिमालय की चोटी को उषा की प्रथम किरण ने छूकर स्वर्णिम कर दिया। आम के बागों में कोयल-कोयली, दहियल और बुलबुल ने सम्मिलित सुर में मंगल-गीत गाए ! खेतों से गीत की कड़ियाँ पुरवैया के सहारे उड़ती आती हैं और डाक्टर के दिल में हलचल मचा जाती हैं।...गेहूँ की काटनी हो रही है। झुनाई हुई रव्वी की फसल की सोंधी सुगन्ध चारों ओर फैल रही है।

"डाक्टर साहब !"

"क्या है?"

"जरा चलिए। मेरी बहन को के हो रही है।"

"पेट भी चलता है ?"

“जी!"

डाक्टर तुरत तैयार होकर चल देता है। पास के ही गाँव में जाना है।...डॉयरिया होगा। लेकिन ‘सेलाइन ऐपरेटस' भी ले लेना अच्छा होगा।

“तीस बार पेट चला है ?"

बिछावन पर पड़ी हुई युवती पीली पड़ गई है। उसके हाथ-पाँव अकड़ रहे हैं। पेशाब बन्द है। हैजा ही है। डाक्टर 'सेलाइन ऐपरेटस' ठीक करता है। स्पिरिट स्टोव जलाता है, नार्मल-सेलाइन की बोतल निकालता है। बूढ़ा बाप हाथ जोड़कर कुछ कहना चाहता है, और आखिर कह ही डालता है, “डाक्टर साहब, यह जो जकसैन दे रहे हैं इसका कितना होगा ?"

छोटे जकसैन का फीस तो दो रुपया है। इतने बड़े जकसैन का तो जरूर पचास रुपया होगा।

"क्यों ? पचास रुपया," डाक्टर मुस्कराता है।

"तो रहने दीजिए। कोई दवा ही दे दीजिए।"

“दवा से कोई फायदा नहीं होगा।"

"लेकिन मेरे पास इतने रुपए कहाँ हैं ?"

"बैल बेच डालो," डाक्टर पहले की तरह मुस्कराते हुए सेलाइन देने की तैयारी कर रहा है।

"डाक्टरबाबू, बैल बेच दूंगा तो खेती कैसे करूँगा ? बाल-बच्चे भूखों मर जाएँगे।...लड़की की बीमारी है।"

"क्या मतलब ?"

“हुजूर, लड़की की जात बिना दवा-दारू के ही आराम हो जाती है !"

...लड़की की जाति बिना दवा-दारू के ही आराम हो जाती है ! लेकिन बेचारे बूढ़े का इसमें कोई दोष नहीं। सभ्य कहलानेवाले समाज में भी लड़कियाँ बला की पैदाइश समझी जाती हैं। जंगल-झार !

डिग-डिग, डिडिग-डिडिग !

"...कल सुबह को इसपिताल में हैजा की सुई दी जाएगी। सभी लोग-बाल-बच्चे, बूढ़े-जवान, औरत-मर्द-आकर सूई ले लें।"...डिग-डिग डिडिग ! गाँव का चौकीदार ढोलहा दे रहा है।

हैजा के पहले रोगी को बचा लिया गया, लेकिन गाँव को नहीं बचाया जा सकता। डाक्टर ने ढोल दिलवाकर लोगों को सूई लेने की खबर दी, लेकिन कोई नहीं आया। 'कुआँ में दवा डालने के समय लोगों ने दल बाँधकर विरोध किया-"चालाकी रहने दो ! डाक्टर कूपों में दवा डालकर सारे गाँव में हैजा फैलाना चाहता है। खूब समझते हैं !"

डाक्टर ने बालदेव जी, कालीचरन और चरखा-सेंटर के लोगों को खबर देकर बुलवाया। सहायता माँगी, “यदि लोगों ने सूई नहीं लगवाई और कुओं में दवा नहीं डालने दी तो एक भी गाँव को बचाना मुश्किल होगा।"

दोपहर को बालदेव जी, कालीचरन और चरखा-सेंटर के मास्टर-मास्टरनी जी डाक्टर साहब के साथ दल बाँधकर निकले और कुओं में दवा डाल दी गई। सूई देने की समस्या जटिल थी। कालीचरन ने कहा, "एक बात ! आज कोठी का हाट है। हाट लगते ही चारों ओर घेर लिया जाए और सबों को जबर्दस्ती सुई दी जाए ! जो लोग बाकी बची रहेंगे, उन्हें घर पर पकड़कर दी जाए।"

डाक्टर को यह सुझाव अच्छा लगा, लेकिन बालदेव जी ने एतराज किया, "किसी की इच्छा के खिलाफ जोर-जबर्दस्ती करना..."

"क्या बेमतलब की बात बोलते हैं," चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बालदेव जी की बात काटते हुए बोली, “कालीचरन जी ठीक कहते हैं।"

बालदेव जी की कनपट्टी गर्म हो जाती है।...यह औरत बोलने का ढंग भी नहीं जानती ! नारी का सुभाव करकस नहीं होना चाहिए। कोठारिन जी कितनी मीठी बोली बोलती हैं। और यह तो मर्दाना औरत है। चरखा-सेंटर की मास्टरनी ! हूँ ! बहुत महिला कांग्रेसी को देखा है-माये जी, तारावती देवी, सरस्सती, उखादेवी, सरधादेवी। लेकिन कोई तो इतना करकस नहीं बोलती थी।...हुँ ! कालीचरन जी ठीक कहते हैं !...जबर्दस्ती करना हिंसाबाद नहीं तो और क्या है ?

कालीचरन के दलवालों ने हाट को घेर लिया है। डाक्टर साहब आम के पेड़ के नीचे टेबल पर अपना पूरा सामान रखकर तैयार हैं। कालीचरन एक-एक आदमी को पकड़कर लाता है, मास्टरनी जी स्पिरिट में भिगोई हुई रुई बाँह पर मल देती हैं और डाक्टर साहब सूई गड़ा देते हैं। तहसीलदार साहब नाम लिखते जाते हैं। हाट में भगदड़ मची हुई है। लेकिन भगकर किधर जाओगे ? चारों ओर सुस्लिंग पाटी का सिपाही खड़ा है।

"माई गे ! माई गे ! हे बेटा काली !"

"क्यों, रोती क्यों है ?"

"हे बेटा !"

"सारी देह में गोदना गोदाने के समय देह में सई नहीं गड़ी थी। चलो !"

सात सौ पचास लोगों को सूई दे दी गई है। अब जो लोग घर में रह गए हैं, उन्हें कल सुबह ही सूरज उगने के पहले ही दे देनी होगी।

डाक्टर साहब कहते हैं, “बीमारों की सेवा के लिए स्वयंसेवक चाहिए।"

कालीचरन अपने दल के साठ स्वयंसेवकों के साथ रात को अस्पताल में दाखिल हो जाएगा।

चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बड़ी निडर हैं। वह भी सेवा करने के लिए अपना नाम लिखाती हैं।

बावनदास हँसकर कहता है, “मुझे देखकर तो रोगी लोग डर जाएँगे डाक्टर साहब, मुझे और कोई काम दीजिए !"

बालदेव जी चुप हैं। उनको हैजा का बहुत डर है।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

18 जुलाई 2022
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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

18 जुलाई 2022
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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

18 जुलाई 2022
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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

18 जुलाई 2022
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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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