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भाग 13

18 जुलाई 2022

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तेरह

गाँव के ग्रह अच्छे नहीं !

सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं !

तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कहा है, “एक साल का भी खजाना जिन लोगों के पास बकाया है, उन पर चुपचाप नालिश कर दो। बलाय-बलाय (घूस देकर) से नोटिस 58 बी. तामील करवा लो। कुर्की और इश्तहार निकास करवाकर सरज़मीन पर चपरासी को ले जाने की जरूरत नहीं। कचहरी में ही बैठकर गाँव के चमार से अँगूठा का टीप लेकर ढोल बजाने की रसीद बनवा लो।...गाँव के एक-दो गवाहों को भी ठीक करके रखो। स्टेट से उनको भत्ता मिलेगा। इन काँगरेसियों का कोई ठीक नहीं।"

सिंघ जी यादवटोला के नढ़ेलों (बदमाशों) का सीना तानकर चलना बरदाश्त नहीं कर सकते। जोतखी जी ठीक कहते थे-बार-बार लाठी-भाला दिखलाते हैं। हौसला बढ़ गया है। अब तो राह चलते परनाम-पाती भी नहीं करते हैं यादव लोग ! कलिया कभी-कभी चिढ़ाने के लिए नमस्कार करता है। देह में आग लग जाती है सुनकर। लेकिन सिंघ जी क्या करें ? राजपूतटोली के नौजवान लोग भी ग्वालों के दल में ही धीरे-धीरे मिल रहे हैं। अखाड़े में ग्वालों के साथ कुश्ती लड़ते हैं। रोज शाम को कीर्तन में भी जाने लगे हैं। हरगौरी ठीक कहता था-यदि यही हालत रही तो पाँच साल के बाद ग्वाले बेटी माँगेंगे। तब काली कुर्तीवालों के बारे में जो हरगौरी कहता था, उन लोगों को बुला लिया जाए ? कहता था, लाठी-भाला सिखानेवाला मास्टर आवेगा। संजोगकजी या सनचालसजी, क्या कहता था, सो आवेंगे। हिन्दू राज-महराना प्रताप और शिवाजी का राज होगा। हरगौरी आजकल बड़ी-बड़ी बातें करता है।

भंडारा के दिन सिंघ जी रूठे हुए खेलावनसिंह यादव को घर से जबर्दस्ती खींचकर ले गए थे, लेकिन खेलावनसिंह का मन रूठा ही हुआ था। जोतखी काका रोज आते हैं। उन्होंने कहा है, सकलदीप का अठारह साल की उम्र में माता या पिता का बिजोग लिखा हुआ है। सकलदीप का यह सत्रहवाँ जा रहा है। सकलदीप की माँ बेटे का गौना करवाने के लिए रोज तकादा करती है। बेटे को वोकील बनाने की इच्छा शायद काली माई पूरी नहीं होने देगी। गौना के बाद फिर क्या पढ़ेगा ! माता-पिता का बिजोग ? बालदेव को सारी दुनिया की भलाई तो सूझती है, मगर जिसका नमक खाता है उसके लिए एक तिनका भी तो सोचे। दिन-भर तहसीलदार के यहाँ बैठा रहता है और शाम को कीर्तन ! कमला किनारेवाले एक जमा में कलरु पासवान के दादा का नाम कायमी बटैयादार की हैसियत से दर्ज है। बालदेव से कहा कि कलरु से कह-सुनकर सुपुर्दी लिखवा दो या रजिस्ट्री करवा दो, तो कान ही नहीं दिया। हलवाहा गोनाय ततमा कल से हल जोतने नहीं आता है। कहता है, पिछले साल का बकाया साफ कर दीजिए तो हल उठावेंगे। बालदेव टुकुर-टुकुर देखता रहा, कुछ बोला भी नहीं, उलटे हमसे बहस करने लगा,...गरीब लोगों का दरमाहा नहीं रोकना चाहिए भाई साहब !

जोतखी जी की अठारह साल की नववधू कनचीरावाली के पेट में रोज खाने के बाद दर्द हो जाता है। पिछले एक साल से वह खाने के बाद पेट पकड़कर सो जाती है। इस साल तो और भी दर्द बढ़ गया है।...डागडरी दवा ? नहीं, नहीं। डागडर तो पेट टीपेगा, जीभ देखेगा, आँख की पपनियाँ उलटाकर देखेगा, पेसाब और पाखाना के बारे में पूछेगा, सायद लहू भी जाँच करे। इधर वह रोज कहती है, डागडरबाबू ने कोयरीटोला की छोटी चम्पा को एक ही जकशैन में आराम कर दिया है। इसी तरह उसके पेट में भी दर्द रहता था।...औरत को समझाना बड़ा कठिन काम है। सभी औरतें एक समान। जो जिद पकड़ेगी, पकड़े रहेगी। जोतखी जी को अपनी चार स्त्रियों का अनुभव है। पहली बेचारी को तो सिर्फ मेला-बाजार देखने का रोग था। कोई भी मेला नहीं छोड़ती थी वह। जहाँ मेला आया कि जोतखी जी के तीसों दिन परमानन झा की खुशामद करने में ही बीतते थे। परमानन की भैंसागाड़ी पर ही मेला जाएगी। परमानन बेचारा खुद गाड़ी हाँककर मेला ले जाता था, कभी भाड़ा नहीं लिया। आखिर बेचारी की मृत्यु भी मेले में ही हुई। उस साल अर्धोदय के मेले में वह जोरों का हैजा फैला था।...दूसरी को हुक्का पीने की आदत थी। ब्राह्मण का हुक्का पीना ? लेकिन जोतखी जी क्या करते-औरत की जिद्द। जब वह बीमार पड़ती थी तो बहुत बार जोतखी जी को ही हुक्का तैयार कर देना पड़ता था।...पुरानी खाँसी से खाँसते-खाँसते वह भी मर गई।...तीसरी को इस बात की जिद्द लग गई थी कि वह गाँव के लड़कों से हँसना-बोलना बन्द नहीं करेगी।...और कनचीरावाली को डागडरी दवा की जिद लग गई है। एकमात्र पुत्र रामनगरायण तो कुपुत्र निकला। बिदापत नाच करता है। ततमा पासवानों के साथ रहता है। सारी ब्राह्मण मंडली में उसकी शिकायत फैल गई है। कोई बेटी देता ही नहीं। जोतखी जी क्या करें ? हाथ की उर्ध्व-रेखा तो सीधे तर्जनी में चली गई है, लेकिन कुंडली के दसम घर में शनि है। समझाते-समझाते थक गया कि अपना नाम रामनारायण मिश्र कहा करो, लेकिन वह भी गँवार की तरह नामलरैन ही कहता है।...रामनारायण के साथ कनचीरावाली को एक दिन इसपिताल भेज दें ? घर पर बुलाने से तो डागडर फीस लेगा।

लरसिंघदास गाँव के घर-घर में जाकर पंचों से कह रहा है-“आचारज गुरु आ रहे हैं। मठ का अधिकारी महन्थ वही है; उसी को चादर-टीका मिलनी चाहिए, महन्थ की रखेलिन या दासिन को मठ के मामले में कुछ बोलने का अधिकार नहीं। रामदास तो भैंसवार है। इतने बड़े मठ को चलाना मूरख आदमी के बूते की बात नहीं। वह 'बीए' पास है। अंग्रेजी में ही बीजक बाँचता है। इसीलिए तो बाबड़ी-केश रखता है, धोती-कुर्ता पहनता है और आधी मूंछ कटाता है।...मठ पर एक स्कूल खोलेंगे। गाँववालों की भलाई करेंगे। आप लोग बुद्धिमान आदमी हैं, खुद विचारकर देख सकते हैं। दासिन रखेलिन मठ को बिगाड़ देती है; साधू-धरम को भ्रष्ट कर देती है। आप लोग खुद विचारकर देख सकते हैं।"

तन्त्रिमाटोले में पंचायत हुई ! बन्दिश हुई है-तन्त्रिमाटोले की कोई औरत अब बाबूटोला के किसी आँगन में काम करने नहीं जाएगी। बाबू-बबुआन लोग शाम को गाँव में आवें, कोई हर्ज नहीं; किसी की अन्दरहवेली में नहीं जा सकते। मजदूरी में जो एक-आध सेर मिले, उसी में सबों को सन्तोख रखना होगा। बलाई आमदनी में कोई बरकत नहीं। अनोखे और उचितदास छड़ीदार हुआ है। जिसे चाल से बेचाल देखेगा, 3 बाँस की छड़ी से पीठ की चमड़ी उधेड़ लेगा।

तन्त्रिमा लोगों की इस बन्दिश के बाद गहलोत छत्री, कर्म छत्री, पोलियाटोले, धनुखधारी और कुशवाहा छत्रीटोले के पंचों ने भी ऐसी ही व्यवस्था की है।...सिर्फ जनेऊ लेने से ही नहीं होता है, करम भी करना होगा। जाए तो कोई बाबू कभी संथालटोली में, शाम या रात को ! उनकी औरतों से कोई दिल्लगी भी कर सकता है।...संथालों के तीर पर जहर का पानी चढ़ाया रहता है।

कुंर्म छत्रीटोले के लौजमानों ने कल रात को शिवशक्करसिंह को बेपानी कर दिया। झुबरी मुसम्मात का घर तो टोले के एक छोर पर है न, सिपैहियाटोली की बाँसवाड़ी के ठीक बगल में ! लेकिन शिवशक्करसिंह को क्या मालूम कि बाँस की झाड़ियों में छोकरे पहले से ही छिपे हुए हैं !...झुबरी मुसम्मात को दस रुपए जरिमाना हुआ है। जहाँ से दे, देना तो होगा ही, नहीं तो हुक्का-पानी बन्द। शिवशक्करसिंह से रुपया लेकर दे। इसी तरह लालबाग मेला में पंचलैट खरीद होगा। बिना पंचलैटवाली पंचायत की क्या कीमत ? लैट के दाम में बीस रुपैया और कम है। एक दिन फिर बाँसवाड़ी में एक घंटा मच्छड़ कटवाना होगा, और क्या ?

कालीचरन का अखाड़ा आजकल खूब जमता है। शाम को कीरतन भी खूब जमता है। नया हरमुनियाँ खरीद हुआ है। गंगा जी के मेले से गंगतीरिया ढोलक लाया गया है। खूब गम्हड़ता है।

बालदेव जी को कीरतन तो पसन्द है, लेकिन अखाड़ा और कुश्ती को वे खराब समझते हैं।...शरीर में ज्यादा बल होने से हिंसाबात करने का खौफ रहता है। असल चीज़ है बुद्धि । बुद्धि के बल से ही गन्ही महतमा जी ने अंग्रेजों को हराया है। गाँधी जी की देह में तो एक चिड़िया के बराबर भी मांस नहीं। काँगरेस के और लीडर लोग भी दुबले-पतले ही हैं।

लेकिन कालीचरन का अखाड़ा बन्द नहीं हो सकता। ढोल की आवाज में कुछ ऐसी बात है कि कुश्ती लड़नेवाले नौजवानों के खून को गर्म कर देती है।

ढाक ढिन्ना, ढाक ढिन्ना ! शोभन मोची ने ढोल पर लकड़ी की पहली चोट दी कि देह कसमसाने लगता है।

ढिन्ना ढिन्ना, ढिन्ना ढिन्ना...!

अर्थात्-आ जा, आ जा, आ जा, आ जा !

सभी अखाड़े में आए। काछी और जाँघिया चढ़ाया, एक मुट्ठी मिट्टी लेकर सिर में लगाया और 'अज्ज्ज्जा ' कहकर मैदान में उतर पड़े। कालीचरन 'आ-आ-अली' कहकर मैदान में उतरता है। चम्पावती मेला में पंजाबी पहलवान मुश्ताक इसी तरह 'आली' (या अली) कहकर मैदान में उतरता था...

तब शोभन ताल बदल देता है-

चटधा गिड़धा, चटधा गिड़धा !

...आ जा भिड़ जा, आ जा भिड़ जा !

अखाड़े में पहलवान पैंतरे भर रहे हैं। कोई किसी को अपना हाथ भी छूने नहीं देता है। पहली पकड़ की ताक में हैं। वह पकड़ा...

धागिड़ागि, धागिड़ागि, धागिड़ागि !

...कसकर पकड़ो, कसकर पकड़ो !

चटाक चटधा, चटाक चटधा !

...उठा पटक दे, उठा पटक दे !

गिड़ गिड़ गिड़ धा, गिड़ धा गिड़ धा !

.....वह वा, वह वा, वाह बहादुर !

पटक तो दिया, अब चित्त करना खेल नहीं ! मिट्टी पकड़ लिया है। सभी दाव के पेंच और काट उसको मालूम हैं !

ढाक ढिन्ना, तिरकिट ढिन्ना !

...दाव काट, बाहर हो जा! वाह बहादुर ! दाव काटकर बाहर निकल आया। फिर, धा-चट गिड़ धा ! आ जा भिड़ जा ! ढोल के हर ताल से पैंतरे, दाँव-पेंच, काट और मार की बोली निकलती है।

कालीथान में पूजा के दिन इसी ढोल की ताल एकदम बदल जाती है। आवाज़ भी बदल जाती है। धागिड़ धिन्ना, धागिड़ धिन्ना !

...जै जगदम्बा ! जै जगदम्बा !

गाँव की रक्षा करो माँ जगदम्बा।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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