अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिया है।...मद्रास के डाक्टर टी. रामास्वामी एम. एस-सी., डी.टी.एम. (कैल.), पी.एच-डी. (एडिन.), एफ. आर.एस.जे. (एडिन.) ने लिखा है : “हमें विश्वास हो गया है कि डाक्टर प्रशान्त मैलेरिया और कालाआजार के बारे में ऐसे तथ्यों का उद्घाटन करेंगे जिनसे हम अब तक अनभिज्ञ थे।...नई दवा तथा नए उपचार की सम्भावनाओं के लिए सारा मेडिकल-संसार उनकी ओर निगाहें लगाए बैठा है।"
प्रशान्त की विस्तृत रिपोर्ट में मैलेरिया और कालाआजार से सम्बन्धित मिट्टी, हवा-पानी तथा इसमें पलनेवाले प्राणियों पर नई रोशनी डाली गई है। अपनी रिपोर्ट में डाक्टर ने एक जगह लिखा है :
“यहाँ के लोग सुबह को बासी भात खाकर, पाट धोने के लिए गन्दे गड्ढों में घुसते हैं और करीब सात घंटे तक पानी में रहते हैं। गन्दे गड्ढों को देखने से ऐसा लगता है कि पानी के आध इंच धरातल की जाँच करने पर एक लाख से ज्यादा मच्छड़ के अंडे जरूर पाए जाएँगे। किन्तु यहाँ के मच्छड़ गन्दे गड्ढों में बहुत कम अंडे देते पाए गए हैं। इनका कोई-कोई ग्रुप तो इतना सफाई-पसन्द होता है कि निर्मल और स्वच्छ तालाबों को छोड़कर और कहीं अंडे देता ही नहीं।...बेचारे खरगोशों को क्या पता कि उनकी जीभ में जो दाने निकल आते हैं, कानों के अन्दर जो खुजलाहट होती है, कोमल-से-कोमल घास की पत्तियाँ भी खाने में अच्छी नहीं मालूम होती हैं, ये कालाआजार के लक्षण हैं।
मनुष्य के शत्रु, कीड़े-मकोड़ों के बारे में डाक्टर ने लिखा है-“मच्छड़ों को नष्ट करने के उपाय जो हमें बहुत पहले बता दिए गए हैं, हम उन्हीं को आज भी आँख मूंदकर दुहरा रहे हैं। जिन कीड़ों को हम नष्ट करना चाहते हैं, उनके बारे में हमारी जानकारी बहुत थोड़ी होती है। हमें उनकी आदत, स्वभाव और व्यवहार के ढंगों के बारे में जानना होगा।...एनोफिलीज के भी कई ग्रुप हैं, हर ग्रुप के अलग-अलग ढंग हैं। किन्तु किसी ग्रुप में भी तरह-तरह के छोटे-छोटे सब-ग्रुप होते हैं जिनकी आदतों और प्रजनन-ऋतु में विभिन्नता पाई गई है।...उनके लुकने-छिपने, पसन्दगी और नापसन्दगी में भी फर्क है।...मैंने एक ही ग्रुप के मच्छड़ों को तीन किस्म से अंडे छोड़ते पाया है और हर ग्रुप में कुछ दल-विशेष हैं जो हवा में अंडे छोड़ते हैं।...इनकी चालाकी और बुद्धिमानी का सबसे दिलचस्प उदाहरण यह है कि एक ही मौसम में एक ही ग्रुप के मच्छड़ हमले के लिए पन्द्रह तरह के तरीके व्यवहार करते हैं।...कुछ तो एकदम डाइव फ्लाइंग करके ही हमला करते हैं।"
इसके अलावा डाक्टर ने मैलेरिया और कालाआजार में रक्त-परिवर्तन पर भी कुछ नई बातें कही हैं।
ममता की चिट्ठी आई है...“पटना मेडिकल कालेज को इस बात पर गर्व है कि बिहार का एकमात्र मैलेरियोलॉजिस्ट डाक्टर प्रशान्त उसी की देन है।" ममता ने और भी बहुत-सी बातें लिखी हैं। बहुत-सी बातें; जिसे प्रशान्त करीब-करीब भूल गया है या भूल जाना चाहता है।...पटना क्लब का नाम पाटलिपुत्र क्लब हो गया है। मिस रेवा सरकार ने बैडमिंटन में रोमेश पाल को हरा दिया।..." इन बातों में प्रशान्त को अब कोई दिलचस्पी नहीं, लेकिन ममता जब पत्र लिखती है तो वह कुछ भी बाद नहीं देती, छोटी-से-छोटी बात का जिक्र करती है...“पटना मार्केट के सामने जो चाय की दुकान थी, उसका बूढ़ा मालिक मर गया। तुम्हें याद है ! वही जो तुमको रोज सलाम करके चाय के लिए निमन्त्रित करता था...कश्मीरी चाय ?..." प्रशान्त को हँसी आती है। । बेचारी ममता ! उसे क्या मालूम कि मछली को लेकर पालतू नेवले से झगड़ा करने में 'जो आनन्द आता है, वह किसी खेल में नहीं। प्रशान्त कभी स्पोर्ट्समैन नहीं रहा। वह किसी भी खेल का खिलाड़ी नहीं रहा। फिर भी उसे खेलों में बड़ी दिलचस्पी रहती थी। उसने ताश के पत्तों को कभी हाथ से स्पर्श नहीं किया, लेकिन साप्ताहिक ब्रिज नोट्स को वह गम्भीरता से पढ़ जाता था। चर्चिल का भाषण पढ़ना भले ही भूल जाए, कलकत्ता के आइ.एफ.ए. के मैचों की रिपोर्ट वह सबसे पहले पढ़ लेता था।...लेकिन अब तो वह खुद खिलाड़ी है। नेवले का गुर्राना, चिल्लाना, पूँछ के रोओं को खड़ा कर हमला करना और हमला करते हुए इसका ख्याल रखना कि चोट नहीं लग जाए, नाखून नहीं गड़ जाए। स्पोर्ट्समेन्स स्पिरिट और किसको कहते हैं ?
डाक्टर ममता श्रीवास्तव ! दरभंगा के प्रसिद्ध डाक्टर कालीप्रसाद श्रीवास्तव की सुपुत्री ममता ने डाक्टरी पास करने के बाद हेल्थयूनिट की स्थापना की है। शहर के गरीब मुहल्लों में यूनिट ने अपने सेवा-कार्य का जो परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। पटना की महिला-समाज-सेविकाओं में ममता का नाम सबसे पहले लिया जाता है। गरीब की झोंपड़ी से लेकर गवर्नमेंट हाउस तक उसकी पहुँच है। जो उसके निकट सम्पर्क में रह चुके हैं, उनका कहना है कि ममता दीदी दिन-रात मिलाकर सिर्फ चार घंटे ही आराम करती हैं। दूर से देखनेवाले उसके चरित्र पर भी सन्देह करते हैं। उसकी सार्वजनीन मुस्कराहट लोगों को कभी-कभी भ्रम में डाल देती है। और जिन लोगों का काम सिर्फ बैठकर आलोचना करना है, वे कहते हैं कि तरह-तरह के जाल फैलाकर सरकार से रुपया वसूलना और उड़ाना ही ममता देवी का काम है।...विकारपूर्ण मस्तिष्कवाले किसी मिनिस्टर का नाम लेकर मुस्करा देते हैं-मिस ममता श्रीवास्तव नहीं मिसेज...कहो !
डाक्टर प्रशान्त ममता का ऋणी है। ममता से उसे प्रेरणा मिली है।
..."डाक्टर ! रोज डिस्पेंसरी खोलकर शिव जी की मूर्ति पर बेलपत्र चढ़ाने के बाद, संक्रामक और भयानक रोगों के फैलने की आशा में कुर्सी पर बैठे रहना, अथवा अपने बँगले पर सैकड़ों रोगियों की भीड़ जमा करके रोग की परीक्षा करने के पहले नोटों और रुपयों की परीक्षा करना, मेडिकल कालेज के विद्यार्थियों पर पांडित्य की वर्षा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझना और अस्पताल में कराहते हुए गरीब रोगियों के रुदन को जिन्दगी का एक संगीत समझकर उपभोग करना ही डाक्टर का कर्तव्य नहीं !"
...ममता को प्रशान्त पर सन्देह है। वह समझती है कि घोर देहात में प्रशान्त छटपटा रहा है; अपनी गलती पर पूछता रहा है ! इसलिए वह हर पत्र में, शहर की सामाजिक जिन्दगी पर कुछ लिख डालती है। एक पत्र में उसने लिखा है, "बुशशर्ट का युग है। पाँच साल पहले बाँकीपुर की सड़कों पर, पार्को और मैदानों में दानापुर कैंट के गोरे फौजियों ने जिन्दगी के जिन कुत्सित और बीभत्स पहलुओं का प्रदर्शन किया, हमारे समाज के अचेतन मन पर उसकी ऐसी गहरी छाप पड़ी कि आज हर आदमी के अन्दर का भूखा टामी अधीर हो उठा है। युद्ध के विषैले गैसों ने सारे समाज के मानस को विकृत कर दिया है। काले बाजार के अँधेरे में एक नई दुनिया की सृष्टि हो गई है, जहाँ सूरज नहीं उगता, चाँद नहीं चमकता और न सितारे ही जगमगाते हैं ....इस , दुनिया में माँ-बेटा, पिता-पुत्र, भाई-बहन और स्वामी-स्त्री जैसा कोई सम्बन्ध नहीं।...
कल एक गरीब ने विटामिन 'सी' की सूई आठ रुपए में खरीदी है। पाँच आने का छोटा-सा ऐम्प्यूल !..मेरे मुहल्ले के महाराज महता को तुम जरूर जानते होगे, उसकी छोटी बेटी फुलमतिया, जो मिल्क सेंटर में पिछले साल तक दूध पीने आती थी और ताली बजा-बजाकर नाचती थी उसे तुम भूले नहीं होगे, शायद ! परसों से अस्पताल में पड़ी हुई है। रामनवमी की शाम को नई रंगीन साड़ी पहनकर फुदकती हुई राममन्दिर गई थी और रात को दो बजे पुलिस ने 'सिटी' के एक पार्क में उसे कराहते हुए पाया। फुलमतिया का बयान है-टेढ़ीनीम गली के पास एक मोटरगाड़ी रुक गई है और दो आदमियों ने पकड़कर उसे मोटर में बिठा दिया।...बड़े-बड़े बाबू लोग थे !...
मंजरअली रोड से लेकर अशोकपथ तक विदेशी शराब की दस दुकानें खुल गई हैं ।
"...कल बिलिंगडन हॉल में टी.वी. सेनेटोरियम के लिए स्थानीय महिला कालेज की लड़कियों ने एक 'चैरिटि शो' का आयोजन किया था। ज्यों ही वीणा (बैरिस्टर प्राणमोहन सिन्हा की पुत्री) स्टेज पर उतरी कि ऊपर की गैलरी से दुअन्नी-इकन्नी फेंकी जाने लगीं और तरह-तरह की भद्दी आवाजें कसी जाने लगीं। पुलिस ने शान्ति कायम करने की चेष्टा की, किन्तु उन पर ईंट-पत्थरों की ऐसी वर्षा की गई कि हॉल के सभी दरवाजों और खिड़कियों के काँच टूट गए। बहुत लोग घायल हुए। घायलों में महिलाओं और बच्चों की संख्या ही ज्यादा थी।...और सबसे आश्चर्य की बात सुनोगे ? कहा जाता है कि खुराफातियों का लीडर था अमलेश सिन्हा, वीणा का चचेरा भाई। प्राणमोहन बाबू ने, कुछ दिन हए, अपने घर में अमलेश का आना-जाना बन्द कर दिया था। शराब के नशे में अमलेश ने कई बार घर की नौकरानियों के साथ अशोभनीय व्यवहार किया था। इसलिए (उनकी पुत्री और अपनी चचेरी बहन) वीणा के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है।"
...कोठी के जंगल में संथालिनें लकड़ी काट रही हैं और गा रही हैं। कुछ दिन पहले इसी जंगल में संथालिनों ने एक चीते को कुल्हाड़ी और दाब से मार दिया था। शोरगुल सुनकर गाँव के लोग जमा हो गए थे। मरे हुए बाघ को देखकर भी लोगों के रोंगटे खड़े हो गए थे और बहुत तो भाग खड़े हुए थे, किन्तु संथालिने हमेशा की तरह मुस्करा रही थीं। मकई के दानों की तरह सफेद दन्त-पंक्तियाँ...और वही सरल मुस्कराहट ! चीते के अचानक हमले से दो-तीन युवतियाँ सामान्य घायल हो गई थीं। उनके होंठों पर भी वैसी ही मुस्कराहट खेल रही थी। उनके जख्मों को धोकर मरहम-पट्टी करते समय डाक्टर के शरीर में एक बार सिहर की हल्की लहरें दौड़ गई थीं। और संथालिने खिलखिलाकर हँस पड़ी थी...हॅ...! हँ...हँ ! जख्म पर तेज दवा लगने पर इस तरह हँसना डाक्टर ने पहली बार देखा, सुना।
आबनूस की मूर्तियाँ, जूड़े में गुंथे हुए शिरीष और गुलमुहर के फूल ! संथालिने गाती हैं :
छोटी-मोटी, पुखरी, चरकुलिया पिंड रे
पोरोइनी फूटे लाले-लाल
पासचे तेरी फूल देखी फूलय लाबेलब
पासचे तेरी आधा दिन लगित !
चारों ओर से बँधाए हुए एक छोटे-से पोखरे में पुरइन (कमल) के लाल-लाल फूल खिले हैं। उस फूल पर तुम मुग्ध हो। मुझे भी देखकर तुम मोहित होते हो। किन्तु वह मोह, आधे दिन का ही तो नहीं ?...
नहीं, नहीं ! आधे दिन के लिए नहीं। प्राणों में घुले हुए रंगों का मोह आधे दिन में ही नहीं टूट सकता।