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भाग 40

18 जुलाई 2022

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा ।

पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली !

इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है।

लहास ! ...लहास ! ...बाप रे-कौन कहता था कि अँगरेज बहादुर का अब राज नहीं रहेगा ?

“तहसीलदार हरगौरी भी मर गए ? ...ऐं ! कोई घर से मत निकलो ! पाखाना-पेसाब सब घर के ही अंदर करो | घर से निकले कि गिरिफ्फ कर लेगा। “दुहाई काली माई !” “बालदेव जी को दारोगा साहेब ने बुलाया है ? कलिया “कालीचरन जी को भी ? “देखें, ये दोनों तो किसी से डरनेवाले नहीं हैं, क्या होता है ? “दो लीडर तो हैं।”

“ओ ! आप ही यहाँ के लीडर हैं” दारोगा साहब बालदेव जी से पूछते हैं। इसपिताल के फालतू घर में दारोगा साहब कचहरी लगाकर बैठे हैं, मलेयद्वी ने संथालों को गिरिफ्फ कर लिया है। जखमी, घायल और बूढ़े-बच्चों को भी !' सबको गिरफ्तार किया है ? नहीं, जखमी लोगों को मरहम-पट्टी तो कल ही डाक्टर साहब ने कर दी है। दो संथाल और चौदह गैर-संथाल घायलों को पुरैनियाँ के बड़े इसपिताल भेजा गया है। सबों की लहास भी चली गई है। सिंघ जी, शिवशक्करसिंघ और हरेक टोला से दो-चार आदमी लहास के साथ गए हैं। न जाने कब लहास मिले ? ऊँह, चीर-फाड़कर मिलेगी ! हे भगवान !...

बालदेव जी क्‍या जवाब दें ?... लीडर हैं। किसके लीडर ? संथालों के या गैर-संथालों के ?...खखारकर गले को साफ करते हुए बालदेव जी के मुँह से बस वही पुराना जवाब निकलता है, जो उसने हरगौरी को दिया था जिस दिन कलिया पगला गया था।

“नहीं हुजूर ! हम तो मूर्ख और गरीब ठहरे। मूरख आदमी, चाहे गरीब आदमी, कभी लीडर हुआ है हूजूर ? "

दारोगा साहब बालदेव जी को पास की कुर्सी पर बैठने को कहते हैं, “अरे, हम आपको जानते हैं। बालदेव जी, बैठिए ?”

बासुदेव और सुंदर एक-दूसरे का मुँह देखते हैं। “कालीचरन जी को कुछ पूछा भी नहीं ?” लो, तहसीलदार साहब सँभाल लेते हैं।

“दारोगा साहब यही हैं, कालीचरनबाबू, यहाँ के सोशलिस्टों के लीडर ! बहादुर हैं ! लेकिन सिर्फ बहादुर ही नहीं, मगज भी हैं !”

“ओ हो ! कालीचरन जी हैं ? आइए साहब, आप लोग तो साहब, क्‍या कहते हैं, जो न करवाइए ।” दारोगा साहब मुँह में पान-जर्दा डालते हुए कहते हैं, “लेकिन यहाँ तो सुना कि आप लोगों ने बड़े दिमाग से काम लिया है। हमको तो सुबह आते ही सारी बातों का पता चल गया | तारीफ करने के काबिल ! वाह ! बैठिए ।”

कालीचरन बैठते हुए कहता है, “देखिए दारोगा साहब यदि आपस की पंचायत से सारी बात का फैसला हो जाए तो हम लोगो को पागल कुत्ते ने नहीं काटा है जो , !!

“आपस की पंचायत से ? यह खूनी केस ?” दारोगा साहब का पान भरा मुँह एकदम गोल हो जाता है।

“नहीं, यह नहीं, यही आधी बट्टेदारी का सवाल !”

“ओ !” दारोगा साहब ने पीक की कुल्ली फेंकते हुए कहा, “ओ ! सो तो ठीक है ! अरे आप ही हैं, सोशलिस्ट पार्टीवाले हैं। कहिए तो, जो काम पंचायत से चार आदमी की राय से नहीं होगा, वह क्या कहते हैं, तूल-फजूल से हो सकता है-

“हिंसा के रास्ते पर तो हरगिज जाना ही नही चाहिए ।” बालदेव जी वहुत गंभीर होकर कहते हैं।

“क्या कहते हैं !” दारोगा साहब बालदेव जी की बात में टीप का बंद लगा देते हैं, "क्या कहते हैं !" दारोगा साहब बात करते समय हाथ खूब चमकाते हैं और कनखी भी मारते हैं।

बासुदेव और सुनहरा एक-दूसरे को देखते हैं-बालदेव जी जानते ही क्या हैं जो बोलेंगे। देखा, कालीचरन जी ने कैसा गटगटाकर जवाब दे दिया।

“हिंसा-अहिंसा का सवाल नहीं है बालदेव जी, असल है बुद्धि ! यहीं पर हमारी पार्टी के कोई और कामरेड रहते तो हो सकता है, दूसरी बात होती। बुद्धि की बात है।" कालीचरन बालदेव जी को जवाब देता है।

कालीचरन और बालदेव जी ने दारोगा जी को दिखला दिया कि बुद्धि है ! उमेर देखकर मत भूलिए दारोगा साहब, अब वह बात नहीं !

“अच्छा तो बालदेव बाबू; जब यह वकूआ हुआ तो, क्या कहते हैं, आप कहाँ थे ?" दारोगा साहब पूछते हैं।

बालदेव जी फिर खखारते हैं-"ह ख जी ! हुजूर ! हम तो मठ पर थे।...जी, बात यह है कि यह वैष्णव हैं। उस दिन हमको गुरु जी कंठी देनेवाले थे। सुबह तो धान दिलाने में ही कट गई। पिछले पहर को हम जैसे ही कंठी लेकर उठे कि...ततमाटोली की रमपियरिया रोती हुई गई।"

"ओ ! आपको पहले से कुछ पता नहीं था ?" दारोगा साहब गम्भीर होकर पूछते हैं।

“जी ! इनको क्या, किसी को पता नहीं।" खेलावनसिंह यादव हिम्मत से काम लेते हैं। आखिर दारोगा साहब के लिए इतना खाने का इन्तजाम भी तो वही कर रहे हैं। यह दारोगा साहब से क्यों नहीं बालेंगे ? तहसीलदार साहब कुछ नहीं बोलते हैं।

“ओ ! खेलावन जी आइए बैठिए !"

"ठीक है। हम यहीं हैं।...जरा हुजूर, जल्दी किया जाए ! उधर ठंडा हो जाएगा।" खेलावन जी कहते हैं।

सिर्फ यहाँ के दोनों लीडर ही बुद्धिवाले नहीं। और लोग भी बुद्धि रखते हैं !...

"हुजूर ! हमारा लड़का अभी रहता तो हुजूर से अभी अंग्रेजी में बतिया लेता। रमैन जैसी एक किताब है, लाल, मोटी...उसी में देखकर वह आपसे अंग्रेजी में बतिया लेता।" खेलावनसिंह यादव कहते हैं।

"अच्छा ? आपका लड़का अंग्रेजी बोल लेता है ?"

"हाँ, डागडरबाबू से बराबर अंग्रेजी में ही बोल लेता है।"

"मोकदमा का राय भी पढ़ लेता है।" बालदेव जी कहते हैं।

“एड किलास में पढ़ता है।" कालीचरन जी कहते हैं।

"अच्छा, आप कहाँ तक पढ़े हैं कालीचरन जी ?...कोई स्कूल में नहीं ?...वाह साहब, क्या कहते हैं, आपकी बोली सुनकर तो कोई नहीं कह सकता कि आप जाहिल...ओ ! पढ़-लिख लेते हैं, अखबार भी पढ़ लेते हैं ? वाह ! रमैन भी पढ़ते हैं ? महाभारत भी? ओ, क्या कहते हैं कि...।"

“बालदेव भी अकबार” पढ़ता है,” खेलावनसिंह यादव कहते हैं, “अकबार तो हम लोग भी पढ़ लेते हैं। “लेकिन बहुत झूठ बात लिखता है अकबार में | उस बार लिखा था कि एक औरत थी, सो कुछ दिनों के बाद मर्द हो गई । कहिए भला !”

“अच्छा तो कालीचरन जी, आप कहाँ थे, जब यह वकूआ हुआ ?” दारोगा साहब कमर के बेल्ट को खोलते हुए कहते हैं।

अगमू चौकीदार को डर होता है, कहीं दारोगा जी पेटी खोलकर मारना न शुरू कर दें बालदेव और कालीचरन जी को। “जहाँ दारोगा जी पेटी खोलते हैं कि अगमू का चेहरा फक्‌ हो जाता है। “नहीं, ऐसा नहीं कर सकते हैं दारोगा जी !

“जी, मैं तो उसी दिन सुबह को धान दिलाकर, ठीक बारह बजे दिन में ही पुरैनियाँ चला गया था | तहसीलदार हरगौरी “तहसीलदार बिस्नाथपरसाद जी जानते हैं ।”

“ओ ! आप  पुरैनियाँ गए थे।” दारोगा साहब एक लंबी साँस छोड़ते हैं।

“अच्छा, तो अब उस पहर को काम कीजिएगा दारोगा साहब !” तहसीलदार साहब कहते हैं।

“नहीं तहसीलदार साहब ! एम.पी. आनेवाले हैं। हमको अभी सब काम खत्म कर रखना है। गवाहों का इजहार”

“जी, कुछ असल गवाही, दो-तीन लीजिए । और सब बाद में । “अरे कालीबाबू, बालदेवबाबू, तुम लोग तो जो सच्ची बात है, वही कहोगे। कोई झूठी गवाही तो नहीं “लिख लीजिए इन दोनों के बयान, दस्तखत करना दोनों जानते हैं।”

“आप लोगों का क्‍या खयाल है ?” दारोगा साहब धीरे से पूछते हैं।

"हाँ, दसखत करने में क्या है ?” कालीचरन कहता है।

“कालीचरन जी हाथ झाड़कर दस्तखत करते हैं और बालदेव जी बड़े 'परेम' से आस्ते-आस्ते लिखते हैं। “भाई बालदेव जी सचमुच में साधु हैं।

“बलदेव ?” दारोगा साहब कहते हैं, “बानदेव जी, जरा “ब' में एक लाटी लगा दीजिए और 'द' के ऊपर, कया कहते हैं, एक तलवार-सी। और बाकलम खुद !”

“दारोगा साहब, बालदेव जी नाम में भी लाठी-तलवार नहीं लगाते हैं। हिंसाबाद-...” कालीचरन मुस्कराकर खड़ा हो जाता है।

दारोगा साहब ठठाकर हँस पड़ते हैं। इसके बाद सभी लोग हँस पड़ते हैं।

अलबत्ता जवाब दिया कालीचरन जी ने। दारोगा साहब पानी-पानी हो गए।

देखो ! बुद्धि है या नहीं ?

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

18 जुलाई 2022
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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

18 जुलाई 2022
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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

18 जुलाई 2022
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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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