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भाग 43

18 जुलाई 2022

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर !

"बालदेव जी !"

“जी!"

“रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !"

बालदेव जी क्या जवाब दें। दासी रखना धरम के खिलाफ है, यह उनको नहीं मालूम।...दो-तीन महीने ही हुए, उन्होंने कंठी ली है। मठ के नियम-धरम, नेम-टेम के बारे में वे क्या कह सकते हैं ! लेकिन महन्थ सेवादास ने भी तो... ।

लछमी कहती है-“आप उसे समझाइए बालदेव जी ! वह बौरा गया है। आजकल ततमाटोली में आना-जाना शुरू कर दिया है। भगवान भगत ने कल हिसाब किया है, रमपियरिया की माँ को चार सेर चावल दिलवा दिया है रामदास ने। मैंने पूछा तो बोला-“मठ का पुराना नौकरान है, भूख से मरेंगे वे लोग ? जब दिन-भर बैठकर सिरिफ बीजक बाँचनेवाला दूध-मलाई खाता है तो...।” लछमी कहते-कहते रुक जाती है।

बालदेव जी आजकल कुछ “मतिसून्न' हो गए हैं। सीधी बात भी समझ् में नहीं आती। ...कुछ नहीं समझते हैं। कितने सीधे-सूधे हैं !

“आपका मठ पर रहना उसको पसंद नहीं ।” लछमी बालदेव की ओर देखती है।

“तो हम चले जाते हैं। यदि हमारे रहने से मठ का नियम भंग होता है तो हम चले जाते हैं।”

“कहाँ जाइएगा ?”

“चन्ननपट्टी !”

लछमी का कलेजा धड़क उठता है-धक्‌! इधर कई दिनों से बालदेव जी बहुत उदास रहते हैं। खाना-पीना भी बहुत कम हो गया है। कहीं घूमने-फिरने भी नहीं जाते। आसन पर पड़े बीजक पाठ करते रहते हैं। तहसीलदारसाहब कह गए हैं-'बालदेव जी की गवाही पर ही मुकदमे की सारी बात है।” वालदेव जी सुनकर बोले, गवाही के लिए हम कठघरा में नहीं चढ़ सकते। महतमा जी कहिन हैं-झगड़ू न जाहू कचहरिया, बेइमनवाँ के ठाठ जहाँ | ...आज मठ सूना है, आज ही लछमी सबकुछ कह देगी बालदेव जी से।

“आप चन्नपट्टी चले, जाइएगा” और मैं ?”

“आप ?”

लछमी बालदेव जी की आँखों में आँखें डालकर देखती है। लछमी जब-जब इस तरह देखती है, बालदेव जी न जाने कहाँ खो जाता है ! ...एक मनोहर सुगंध हवा में फैल जाती है। पवित्र सुगंध ! बीजक से जैसी सुगंधी निकलती है।

"हाँ ! मैं कहाँ जाऊँगी ? मेरा क्या होगा ? महंथ की दासी बनकर ही मैं मठ पर रह सकती हूँ।” लछमी की आँखें भर आती हैं।

“नहीं लछमी, तुम रामदास की दासी नहीं। मैं- तुम... आप... ।”

“बालदेव जी !” लछमी पागल की तरह बालदेव जी से लिपट जाती है, “रच्छा करो बालदेव जी ! तुम कह दो एक बार-तुम्हें रामदास की दासी नहीं बनने दूँगा ! तुम बोलो-चन्ननपट्टी नहीं जाऊँगा। मुझे छोड़कर मत जाओ बालदेव ! दुहाई !”

“लछमी !” बालदेव जी लछमी को सँभालते हुए कहते हैं, “कोई देख लेगा ।”

लछमी बालदेव जी के गले से हाथ छुड़ाकर अलग बैठ जाती है। सिर नीचा करके सिसकती है।

बालदेव जी की सारी देह झन्‍न-झन्‍न कर रही है। कनपट्टी के पास, लगता है, तपाए हुए नमक की पोटली है। ...एक बार आसरम में उसके कान में दर्द हुआ था। गाँगुली जी ने नमक की पोटली से सेंकने के लिए कहा था। ...कलेजा धड़-धड़ कर रहा है। लछमी की बाँह ठीक बालदेव के नाक से सट गई थी। लछमी के रोम-रोम से पवित्र सुगन्धी निकलती है। चन्दन की तरह मनोहर शीतल गन्ध निकल रही है। बालदेव का मन इस सुगन्ध में हेलडूब (डूबना-तरना) कर रहा है। वह लछमी को छोड़कर चन्ननपट्टी में कैसे रह सकेगा ?...रूपमती, मायजी, लछमी !..

"महतमा जी के पन्थ को मत छोड़िए, बालदेव जी ! महतमा जी अवतारी पुरुष हैं। आजकल उदास क्यों रहते हैं ? महतमा जी पर भरोसा रखिए। जिस नैन से महतमा जी का दरसन किया है उसमें पाप को मत पैसने दीजिए। जिस कान से महतमा जी के उपदेस को सरबन किया है, उसमें माया की मीठी बोली को मत जाने दीजिए। महतमा जी सतगुरु के भगत हैं।" लछमी आँखें मूंदकर ध्यान की आसनी पर बैठ गई है। सफेद मलमल की साड़ी पर बिखरे हुए लम्बे-लम्बे, काले बाल !...और गोरा मुख-मंडल ! ध्यान-आसन पर इस तरह बैठकर उपदेश देनेवाली यह लछमी कोई और है !...बालदेवजी के हाथ स्वयं ही जुड़ जाते हैं।

लछमी की पवित्र आत्मा की वाणी फिर मुखरित होती है-"दुनिया के दोख-गुन को देखने के पहले अपनी काया की ओर निहारो ! मन मैला तन सूथरो, उलटी जग की रीत !...पहले मन को साफ करो। मन पवित्र नहीं, इसलिए वह दुखी होता है, निरास होता है। तुम पन्थ पर उदास होकर क्यों बैठ रहे हो ? डरते क्यों हो ?" ......

चलते-चलते पगु थका

नगर रहा नौ कोस,

बीचहिं में डेरा परां

कहह कौन का दोख!

बालदेव को लगता है, खुद भारथमाता बोल रही है। यही रूप है ! ठीक यही रूप. है जिसके पैर खून से लथपथ हैं। जिनके बाल बिखरे हुए हैं।...बावनदास कहता था, भारथमाता जार-बेजार रो रही हैं। नहीं, माँ रो नहीं रही। अब पन्थ बता रही है। उचित पन्थ पर अनुचित करम करनेवालों को चेता रही है। बावनदास 'भरम' गया है।...और खुद बालदेव, महतमा जी के पन्थ पर निरास और उदास होकर चल रहा है।

“...भारथमाता की जै ! महतमा जी की जै ! भारथमाता, भारथमाता !"

''महन्थ रामदास बहुत देर से कनैल गाछ की आड़ में खड़े होकर देख-सुन रहे थे।...ध्यान-आसन पर बैठी हुई लछमी उपदेश दे रही है और बालदेव जी हाथ जोड़े एकटक से लछमी को देख रहे हैं। अचानक बालदेव जी लछमी के चरन पड़कर हल्ला करने लगे-भारथमाता की जै!

- "भंडारी ! भंडारी !" महन्थ रामदास पिछवाड़े की ओर भागते हुए चिल्लाते हैं, "भंडारी ! बालदेव पागल हो गया ! दौड़ो !"

मठ पर तुरन्त भीड़ लग गई। डाक्टर साहब, तहसीलदार साहब, कालीचरन और खेलावनसिंह यादव भी आए हैं। बालदेव की बूढ़ी मौसी बीच-बीच में गा-गाकर रोने-रोने की सुरखुर (तैयारी) करती है, किन्तु एक ही साथ इतने लोग डाँट देते हैं कि वह चुप हो जाती है और बारी-बारी से सबके मुँह की ओर देखती है। कुछ देर के बाद ही वह फिर शुरू करती है-“बाबू रे !..."

“ऐ बूढ़ी ! ठहर !...चुप !"

डाक्टर साहब बालदेव के बाँह में रबड़ की पट्टी बाँधकर, मुट्ठी से एक छोटे-से गेंद को दबाते हैं।...ओ ! इसी मीसीन से तो तहसीलदार की बेटी कमली का भी जाँच होता है ! ओ!

बालदेव जी रह-रहकर बाँहें ऐंठकर, हाथ छुड़ाकर उठ खड़े होते हैं, “आप लोग क्या समझते हैं मैं पागल हो गया हूँ ? कभी नहीं, हरगिस नहीं।...हमको पागल कहते हैं ? इस गाँव में क्या था ? कोई जानता भी था इस गाँव का नाम ? इसको हौल इंडिया में मशहर कौन किया ? हमको छोड़ दीजिए ! हम महतमा जी के पन्थ से नहीं हट सकते।"

भीड़ में कोई कहता है-“मठ पर रहने से गाँजा पीने की आदत हो जाती है।"

"कौन कहता है हम गाँजा पीते हैं ? दारू-गाँजा-भाँग की दूकान में पिकेटिन किया है हम, और हम गाँजा पीयेंगे ? छिः छिः ! हम महतमा जी के पन्थ को कभी नहीं छोड़ सकते। साच्छी हैं महतमा जी !"

बालदेव की बुढ़िया मौसी अब नहीं मानती। वह गा-गाकर रोती है-“डागडर ने तहसीलदार की बेटी कमला की बेमारी को उतारकर बालदेव पर चढ़ा दिया है। यह भले आदमी का काम नहीं। तहसीलदार की बेटी अभी तक कुमारी है। हे भगवान ! अब बालदेव का बिहा नहीं होगा ! दैबा रे दैबा।"

"बालदेव जी !" लछमी कहती है, “चित्त को सांत कीजिए।"

"ओ ! लछमी !...लछमी दासिन ! साहेब बन्दगी !...ठीक है, कोई बात नहीं। हम पर कभी-कभी महतमा जी का भर (देवी-देवता का सवार होना) होता है। चुन्नी गुसाईं को तो रोज भोर को होता है।" बालदेव जी चुपचाप बैठ जाते हैं।

"डाकडर साहेब ! बालदेव जी इधर कई दिनों से बहुत उदास रहा करते थे। रात में नींद, पता नहीं, आती थी या नहीं। एक सप्ताह पहले, एक दिन बोखार लगा था। बोखार की पीली गोली एक ही साथ सात ठो खा गए।" ।

"पीली गोली ? सातों एक ही बार ?" डाक्टर आश्चर्य से पूछता है।

"जी ! बोखार की पीली गोली बाँटने के लिए मिली थी न ? उसी में से सात ठो एक ही बार खा गए। बोले कि रोज कौन खाए ! एक ही साथ सात दिनों का खोराक ले लेते हैं !"

डाक्टर ठठाकर हँस पड़ता है, “कितना बढ़िया हिसाब है। बालदेव जी, दस दिनों तक घोल का शर्बत पीजिए। ठीक हो जाएगा। कुछ नहीं है, दवा की गर्मी ही है।"

रामकिरपालसिंह कहते हैं, “बिहदाना, अनार, संतोला का रस तो ठंडा होता है, गरमी को सांती करेगा।...जेहल में हम सिरिफ बिहदाना-संतोला खाकर रहते थे। दो बिहदाना मेरे पास अभी भी हैं।"

बालदेव और कालीचरन के बयान पर ही सबकुछ है-जिसको चाहे फँसा दें, चाहें बचा दें। खुद दरोगा साहब कहते थे कि बालदेव की गवाही की बहुत कीमत है !

खेलावनसिंह यादव आजकल कालीचरन का आग-पीछा खब करते हैं। पार्टी आफिस के बगल में एक चौखड़ा घर बनवा देंगे, सुनते हैं, 'साथी निवास' घर ! जैसा घर जिला पाटी आफिस में है। मीटिंग के दिन जितने साथी आते हैं, उसी घर में रहते हैं। जो सिकरेटरी होगा, वह आफिस घर में रहेगा।...कालीचरन ने खेलावनसिंह से कहा तो वे तुरन्त तैयार हो गए।

जोतखी काका ने कालीचरन का हाथ देखा है-"खूब नक्छत्तरबली है कालीचरन ! राजसभा में जश है। बेटा-बेटी भी है। धन भी है। मगर एक गरह बड़ा 'जब्बड़' है...।"

सिंहजी बालदेव जी को बिहदाना-संतोला खाने के लिए मना रहे हैं- “खा लो बालदेव जी ! बड़ा पूस्टीकारी चीज है। दवा की गरमी दूर हो जाएगी।"

गवाही ने बालदेव जी की खोई हुई कीमत को फिर बहुत तेजदर कर दिया है।

बालदेव जी कहते हैं, “महतमा जी का रस्ता हम कभी छोड़ नहीं सकते। झगड़ न जाहू कचहरिया, दललवा के ठाठ जहाँ।"

लेकिन बालदेव जी को तो कुछ भी कहना नहीं पड़ेगा। उनसे पूछा जाएगा कि यह दसखत आपका ही है ? ये कहेंगे कि-हाँ। बस, और कुछ कहना ही नहीं है। दसखत तो बालदेव जी ने किया था। यह तो झूठ बात नहीं। कालीचरन ने भी किया था।

...चाहे जैसे भी हो, बालदेव जी को गवाही के लिए राजी करना ही होगा, नहीं तो सारे गाँव पर आफत है।...कोठारिन लछमी दासिन को तहसीलदार साहेब समझाकर कह दें तो बात बैठ जाएगी।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

18 जुलाई 2022
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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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