shabd-logo

भाग 20

18 जुलाई 2022

14 बार देखा गया 14

कमली डाक्टर को पत्र लिखती है-

"प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।"

कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक कोने में फाड़ी हुई चिट्ठियों का ढेर लग गया है। पत्र लिखने और लिखकर पढ़ने के बाद उसको बड़ी शान्ति मिलती है। जी बड़ा हल्का मालूम होता है, और नींद भी अच्छी आती है।

...सुना कि रात में तुम गेहुँअन साँप से बाल-बाल बच गए। भगवान को इसके लिए लाख-लाख धन्यवाद !"

रात में डाक्टर गेहुँअन साँप से बाल-बाल बच गए। गेहुँअन नहीं, घोड़-करैत। गेहुँअन और करैत का दोगला। घोड़े से ज्यादा तेज भाग सकता है। घोड़-करैत का काटा हुआ आदमी ओझा-गुणी का मुँह नहीं देख सकता। आधी रात को खरगोश और चूहे अपने-अपने पिंजड़ों में घबराकर दौड़-भाग करने लगे। डाक्टर साहब ने प्यारू को पुकारा, लेकिन प्यारू की नींद नहीं टूटी। जानवरों के कमरे का दरवाजा खोलकर टार्च देते ही डाक्टर तड़पकर पीछे हट गए-साँप ठीक किवाड़ के पास ही अपनी पूँछ पर सारे धड़ को खड़ा किए फुफकार रहा था। तब तक प्यारू भी जग चुका था। उठते ही उसने बाएँ हाथ से ही ऐसी लाठी चलाई कि साँप वहीं ढेर हो गया। अढ़ाई हाथ का साँप ! डाइन का मन्तर अढ़ाई अक्षरों का होता है और डाइन का भेजा हुआ साँप अढ़ाई हाथ का !

सुबह को जिसने यह बात सुनी, बस एक ही राय कायम की-यह तो पहले से ही मालूम था। डाक्टरबाबू को इतना समझाया-बुझाया कि पारबती की माँ से इतना हेल-मेल नहीं बढ़ावें। नहीं माने, अब समझें। वह राच्छसनी किसी को छोड़ेगी ? जिसको प्यार किया, उसको जरूर खाएगी। डाक्टर बेचारा भी क्या करे ! वह अपने मन से तो कुछ नहीं करता। उस पर तो पारबती की माँ ने जादू कर दिया है। वह अपने बस में नहीं। मुफ्त में बेचारे की जान चली जाएगी एक दिन। च्: च्:।

कमली को डाइन, भूत और डाकिन पर विश्वास नहीं। तहसीलदार साहब भी इसे मूर्खता समझते हैं। कालीचरन तो आदमी से बढ़कर बलवान किसी देवता को भी नहीं समझता, फिर डाइन-भूत, ओझा-गुणी किस खेत की मूली हैं। इन्हें छोड़कर गाँव के बाकी सभी लोग डाइन के बारे में एकमत हैं। बालदेव जी ने तो बहुत बार भूत को अपनी आँखों देखा है। भैंस के पीछे-पीछे खैनी-तम्बाकू माँगता है भूत ! डाकिन का पाँव उलटा होता है और वह पेड़ की डाल से लटककर झूलती है। भूत-प्रेत झूठ है? तब कमला किनारे, कोठी के जंगल के पास में रात को जो भक्क-से राकस जल उठता है, दौड़ता है और देखते-ही-देखते एक से दस हो जाता है सो क्या है ?

"डाक्टर साहब अब रोज मौसी के यहाँ जाते हैं। मौसी के यहाँ एक बार बिना गए उनको चैन नहीं," प्यारू कहता है। कमली सुनती है और हँसती है।

"डाक्टर साहब गनेश को देखने जाते हैं, प्यारू !"

"वह लड़का तो आराम हो गया है। मुटाकर कोल्हू होता जा रहा है। उसको क्या देखने जाते हैं !"

“अच्छा प्यारू, डाक्टर साहब तो मेरे यहाँ भी रोज आते हैं।"

"तुम्हारे यहाँ की बात दूसरी है दीदी !"

"क्यों ? दूसरी बात क्या है ?"

डाक्टर साहब हँसते हुए आते हैं, “अच्छा ! तो प्यारू जी यहाँ दरबार कर रहे हैं। वह बुखारवाला खरगोश कैसे भाग गया ?"

“जी, हम दोपहर का दाना देने गए तो देखा कि पिंजड़ा खाली।"

“सुबह सूई देने के बाद तो मैंने पिंजड़ा बन्द कर दिया था। तुमने पानी पिलाने के बाद पिंजड़ा बन्द नहीं किया होगा। महीने-भर की मेहनत बेकार गई।"

प्यारू को इन चूहों और खरगोशों से बेहद नफरत है।...आदमी के इलाज से जी नहीं भरता है तो जानवरों का इलाज करते हैं ! दिन-भर पिंजड़ों को लेकर पड़े रहते हैं। बुखार देखते हैं, सूई देते हैं और खून लेते हैं। जब से ये जानवर आए हैं, डाक्टर साहब को प्यारू से बात करने की भी छुट्टी नहीं मिलती।...अब भाँगड़टोली के लोगों से कह रहे हैं-“दो-तीन सियार के बच्चों की जरूरत है। उस दिन मदारी से बन्दर माँग रहे थे। अजीब सौख है !"

प्यारू चुपचाप चला जाता है। माँ हँसती हुई आती है, “डाक्टर साहब ! मैंने विषहरी माई को एक जोड़ी कबूतर और दूध-लावा कबूला है !"

“और मैंने भी विषहरी दवा के लिए लिख दिया है।"

"विषहरी दवा ?"

"हाँ, ऐंटिवेनम एक दवा है, साँप के काटे हुए का इलाज होता है ! मैं ऐंटिवेनम से भी ज्यादा प्रभावशाली और सस्ती दवा की खोज करना चाहता हूँ। सुनते हैं, रौतहट स्टेशन के पास सँपेरों का टोला है। साँप पकड़वाकर रखना होगा।"

"तब माटी के महादेव नहीं, असली महादेव हो जाइएगा।" कमली व्यंग करना जानती है।

डाक्टर साहब हँस पड़ते हैं और माँ हँसी को रोकते हुए कमली को डाँटती है, “जो मुँह में आया बोल दिया। जरा भी लाज-लिहाज नहीं। इसके बाप ने तो इसे और भी बतक्कड़ बना दिया है। तुम यहाँ आकर चुप बैठो तो जरा, मैं चाय बना लाऊँ।"

"तहसीलदार साहब कहाँ गए हैं ?" डाक्टर पूछता है।

“कटिहार। सर्किल मैनेजर के कैम्प में गए हैं," कमली जवाब देती है। आज पहली बार कमली ने डाक्टर को अपने पास अकेला पाया है। वह अपने चेहरे को देख नहीं सकती, लेकिन ऐसा लगता है कि उसका चेहरा धीरे-धीरे लाल होता जा रहा है। आँखों की पलकों पर भारी बोझ लद गए हैं, कान की इयररिंग थरथरा रही है। सारी देह में गुदगुदी लग रही है। देह हलकी लग रही है।...बेहोशी ? वह बेहोश होना नहीं चाहती। नहीं, नहीं ! डा...क्टर !

"कमला !"

“जी!"

"कमला ! इधर देखो कमला !"

"डाक्टर, मुझे बचाओ !"

"कमला, आँखें खोलो !"

कमला ने आँखें खोल दीं। उसका सिर डाक्टर की गोद में है। माँ हाथ में चम्मच लिए खड़ी है, भय से माँ का मुँह पीला हो गया है, लेकिन डाक्टर साहब मुस्करा रहे हैं।

"डाक्टर साहब, इसकी बीमारी का तो टेर-पता ही नहीं चलता है।"

"लेकिन रोग तो धीरे-धीरे घट रहा है। बेहोश हुई, पर पाँच मिनट में ही स्वस्थ भी हो गई। इसी तरह एक दिन जड़ से यह रोग दूर हो जाएगा।...कमला को ही चाय बनाने दीजिए। जाओ कमला !"

कमला उठकर इस तरह दौड़ी मानो कुछ हुआ ही नहीं था। डाक्टर कमला की किताब हाथ में लेकर उलटता है-नल-दमयन्ती ! अस्याधिकारिणी कुमारी कमलादेवी।...दूसरी जगह कुमारी को काट दिया गया है और नाम के अन्त में बनर्जी जोड़ दिया गया है-कमलादेवी बनर्जी। डाक्टर जल्दी से पृष्ठ उलटता है-आर्ट पेपर पर नल-दमयन्ती की तस्वीर। नल के नीचे नीली पेंसिल से लिखा है 'प्रशान्त' और दमयन्ती के नीचे लाल पेंसिल से 'कमला' । डाक्टर के ललाट पर पसीने की छोटी-छोटी बूंदें चमक उठती हैं। उसे याद आता है, एक बार ममता के साथ बाँकीपुर स्टेशन से लौट रहा था। रिक्शा पर बैठने के समय एक भिखारी ने घेर लिया था-'जुगल जोड़ी कायम रहे, सुहाग अचल रहे माँ का, बाल-बच्चा बनल रहे ! ममता ने बैग से इकन्नी निकालकर दी थी और डाक्टर की ओर देखकर खिलखिलाकर हँस पड़ी थी; और डाक्टर के ललाट पर इसी तरह पसीने की बूंदें चमक उठी थीं।

"डाक्टर साहब, कमली के लिए एक अच्छा-सा वर ढूंढ़िए न ! आपके देश में...आपके साथी-संगी..." माँ कहते-कहते सिर पर यूँघट सरकाकर चुप हो जाती है। तहसीलदार साहब आ गए। रनजीत के हाथ में एक बड़ी रोहू मछली है।

“यह नजराना कहाँ मिला ?" डाक्टर साहब हँसते हैं।

“पकरिया घाट पर मछुआ लोग आज मछली मार रहे थे," तहसीलदार साहब ने मोढ़े पर बैठते हुए कहा।

कमला चाय ले आई।

"डाक्टर साहब, आज पाप की गठरी फेंक आया हूँ।" तहसीलदार साहब ने चाय की प्याली में चुस्की लेते हुए कहा।

“मतलब ?"

“यह तहसीलदारी पाप की गठरी ही तो थी। यह नया सर्किल मैनेजर आते ही 'आग पेशाब' करने लगा। 'लाल पताका' अखबार ने ठीक ही लिखा था, 'राज पारबंगा के मीरापुर सर्किल का नया मैनेजर नादिरशाह का भतीजा है।' अब आप ही बताइए डाक्टर साहब, कि जिन रैयतों के यहाँ सिर्फ एक ही साल का बकाया है, उन पर नालिश कैसे किया जाए ? फिर चुपचाप डिग्री जारी करवाकर नीलाम करो और जमीन खास कर लो। इतना बड़ा अन्याय मुझसे तो अब नहीं होगा। जमाना कितना नाजुक है, सो तो समझते हैं नहीं। मैंने साफ इनकार कर दिया तो कड़ककर बोले, 'नहीं कर सकते तो इस्तीफा दे दो।' गंगा-स्नान से भी बढ़कर ऐसे पुण्य का अवसर बार-बार नहीं मिलता। तुरन्त इस्तीफा दे दिया। सारी जिन्दगी तो गुलामी करते ही बीत गई।...कमला की माँ, आज मत्स भगवान आए हैं। कमला से कहो, डाक्टर साहब को निमन्त्रण दे दे।"

तहसीलदार साहब की रसिकता ने डाक्टर को एक बार फिर नल-दमयन्ती की याद दिला दी। कमली मुस्करा रही है। माँ कहती है, "बगैर मिर्च-मसाला की मछली कमली ही बना सकती है।"

डाक्टर महसूस करता है, कमला के निमन्त्रण को अस्वीकार करने की हिम्मत उसमें नहीं।...कमला बनर्जी।...कमला की आँखें !

चाँद बयरि भेल बादल, मछली बयरि महाजाल

तिरिया बयरि दुहु लोचन...

45
रचनाएँ
मैला आँचल
0.0
मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
1

मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

18 जुलाई 2022
10
0
0

‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

2

मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

18 जुलाई 2022
9
1
0

एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

3

भाग 2

18 जुलाई 2022
3
0
0

पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

4

भाग 3

18 जुलाई 2022
2
1
0

डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

5

भाग 4

18 जुलाई 2022
2
0
0

सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

6

भाग 5

18 जुलाई 2022
1
0
0

मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

7

भाग 6

18 जुलाई 2022
1
0
0

बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

8

भाग 7

18 जुलाई 2022
1
0
0

प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

9

भाग 8

18 जुलाई 2022
1
0
0

लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

10

भाग 9

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

11

भाग - 10

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

12

भाग 11

18 जुलाई 2022
1
0
0

नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

13

भाग 12

18 जुलाई 2022
1
0
0

मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

14

भाग 13

18 जुलाई 2022
1
0
0

तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

15

भाग 14

18 जुलाई 2022
1
0
0

चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

16

भाग 15

18 जुलाई 2022
1
0
0

सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

17

भाग 16

18 जुलाई 2022
1
0
0

मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

18

भाग 17

18 जुलाई 2022
1
0
0

चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

19

भाग 18

18 जुलाई 2022
1
0
0

अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

20

भाग 19

18 जुलाई 2022
1
0
0

चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

21

भाग 20

18 जुलाई 2022
1
0
0

कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

22

भाग 21

18 जुलाई 2022
1
0
0

रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

23

भाग 22

18 जुलाई 2022
1
0
0

सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

24

भाग 23

18 जुलाई 2022
1
0
0

गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

25

भाग 24

18 जुलाई 2022
1
0
0

चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

26

भाग 25

18 जुलाई 2022
0
0
0

बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

27

भाग 26

18 जुलाई 2022
0
0
0

बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

28

भाग 27

18 जुलाई 2022
0
0
0

डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

29

भाग 28

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

30

भाग 29

18 जुलाई 2022
0
0
0

कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

31

भाग 30

18 जुलाई 2022
0
0
0

अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

32

भाग 31

18 जुलाई 2022
0
0
0

मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

33

भाग 32

18 जुलाई 2022
0
0
0

बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

34

भाग 33

18 जुलाई 2022
0
0
0

अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

35

भाग 34

18 जुलाई 2022
0
0
0

फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

36

भाग 35

18 जुलाई 2022
0
0
0

तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

37

भाग 36

18 जुलाई 2022
0
0
0

डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

38

भाग 37

18 जुलाई 2022
0
0
0

तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

39

भाग 38

18 जुलाई 2022
0
0
0

दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

40

भाग 39

18 जुलाई 2022
0
0
0

संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

41

भाग 40

18 जुलाई 2022
0
0
0

जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

42

भाग 41

18 जुलाई 2022
0
0
0

नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

43

भाग 42

18 जुलाई 2022
0
0
0

हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

44

भाग 43

18 जुलाई 2022
0
0
0

लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

45

भाग 44

18 जुलाई 2022
0
0
0

इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए