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भाग 4

18 जुलाई 2022

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो !

महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !"

रामदास आँखें मलते हुए उठता है, बाहर निकलकर आसमान में भुरूकुआ (भोर का तारा) को देखता है, फिर रामडंडी (तीन-तरवा) को खोजता है।...अभी तो बहुत रात बाकी है। महंथ साहब आज बहुत पहले ही जग गए हैं...“माघ का जाड़ा तो बाघ को भी ठंडा कर देता है।...सरकार, रात तो अभी बहुत बाकी है।"

"रात बहुत बाकी है तो क्या हुआ ? एक दिन जरा सवेरे ही सही। सोओ मत। धूनी में लकड़ी डाल दो। कोठारिन को जगा दो।...सतगुरु साहेब ने सपना दिया है।"

लछमी उठी। उठकर महंथसाहब के आसन के पास आई। हाथ जोड़कर 'साहेब बन्दगी' किया और आँखें मलते हुए कुएँ की ओर चली गई।

...लछमी के रग-रग में अब साधु-सुभाव, आचार-विचार और नियम-धरम रम गया है। साहेब की दया है। और यह रामदास ? गुरु जाने, इसकी मति-गति कब बदलेगी ! बचपन से ही साधु की संगति में रहकर भी जो नहीं सुधरा, वह अब कब सुधरेगा ?...भक्ति-भाव ना जाने भोंदू पेट भरे से काम ! बस, दो ही गुण हैं-सेवा अच्छी तरह करता है और खंजड़ी बजाने में बेजोड़ है। "अरे हो रामदास !...फिर सो गए क्या ?...गंगाजली में जल भर दो।"

जागहु सतगुरुसाहेब, सेवक तुम्हरे दरस को आया जी

जागहु सतगुरुसाहेब...।

...डिम-डिमिक-डिमिक, डिम-डिमिक-डिमिक !

भोर भयो भव भरम भयानक भानु देखकर भागा जी,

ज्ञान नैन साहेब के खुलि गयो, थर-थर काँपत माया जी।

जागहु सतगुरुसाहेब...

माघ के ठिठुरते हुए भोर को मठ से प्रातकी (प्रभाती) की निर्गुणवाणी निकलकर शून्य में मँडरा रही है। बूढ़े महंथ साहब पहला पद कहते हैं। दन्तहीन मुँह से प्रातकी के शब्द स्पष्ट नहीं निकलते। गले की थरथराहट सुर में बाधा डालती है, बेसुरा राग निकलता है। दमे से जर्जर शरीर में दम कहाँ !...लेकिन लछमी सब सँभाल लेती है। पाँच साल पहले प्रातकी गाने के समय उसकी आँखों की पलकें नींद से लदी रहती थीं। महन्थ साहब जब गीत की दूसरी पंक्ति 'भोर भयो भव भरम' गाते थे तो वह बहुत मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाती थी-भोर भयो भव भरम...! लेकिन अब नहीं। उसकी बोली मीठी है। उसका सुर मीठा है। वह तन्मय होकर गाती है। उसकी सुरीली तान के साथ महन्थ साहब के बेसुरे और मोटे राग का मेल नहीं खाता, फिर भी संगीत की निर्मल धारा में कहीं विरोध नहीं उत्पन्न होता। महन्थ साहब का मोटा राग लछमी के कोमल लय को सहारा देता है। शहनाई के साथ सुर देनेवाली शहनाई की तरह-भों ओं ओं ओं ओं...!

रामदास की खंजड़ी की गमक निःशब्द वातावरण में तरंगें पैदा करती है। खंजड़ी में लगी हुई छोटी-छोटी झुनुकियों की हल्की झुनुक ! मानो किसी का पालतू हिरन नाच रहा हो, दौड़ रहा हो ! डिम डिमिक ! रुन झुनुक-झुनुक !

प्रातकी के बाद बीजक 'शबद' । 'रामुरा झीं-झी जंतर बाजे। करचर्ण बिहुना नाचे। रामुरा झीं-झी...।'

और तब सत्संग ! रोज इसी वेला में सत्संग होता है। प्रातकी सुनते ही मठ के अन्य साधु-संन्यासी, अतिथि-अभ्यागत तथा अधिकारी-भंडारी वगैरह जग जाते हैं। प्रातकी और बीजक में कोई सम्मिलित हो या नहीं, सत्संग में भाग लेना अनिवार्य है। मठ का भंडारी इस समय रोज की हाज़िरी लेता है। इस समय जो अनुपस्थित रहे उसकी चिप्पी (राशन) बन्द हो जाती है। सत्संग में महन्थसाहब साधुओं और शिष्यों को उपदेश देते हैं, प्रश्नों के उत्तर देते हैं, अज्ञान अन्धकार को अपनी वाणी से दूर करते हैं।

...सतगुरु सेवा सत्य करि माने सत्य विचार।

सेवक चेला सत्य सो जो गुरु वचन निहार॥...

फिर सातचक्र परिचय !

प्रथम चक्र आधार कहावे गुद स्थल के माँही

द्वितीय चक्र अधिष्ठान कहिए लिंगस्थल के माँही।

तृतीय चक्र मणिपूरण जानो नाभी स्थल...

सत्संग समाप्त होते ही भंडारी उपरिथत 'मूर्तियों' की गिनती लेता है-“रानीगंज के तीन गो मुरती तो आज सात दिन से धरना देले हथुन । जाए ला कहै हियेन्ह त कहै हथिन बलु सरकार से आज्ञाँ ले ली है। बेला मठ के एक मुरती के बुखार लगलैन्ह है, दोकान में सबुरदाना न भेटाई है..."

कोठारिन लक्ष्मी दासिन का रोज इसी समय बक-बक झक-झक बहुत बुरा लगता है, सत्संग से प्राप्त की हुई मन की पवित्रता नष्ट हो जाती है। लेकिन क्या करे ? मठ के इस नियम को यदि जरा भी ढीला कर दिया जाए तो साधु-वैरागी एक महीने में ही मठ को उजाड़ देंगे। बाहर के साधुओं के लिए चार ही दिन रहने का नियम है, मगर...। “रानीगंज के मूर्तियों को खुद सोचना चाहिए। यहाँ कोई कुबेर का भंडार तो नहीं..."

“लक्ष्मी," महन्थसाहब कहते हैं, “आज-भर रहने दो। भंडारी, जितने मुरती आज हैं, सबों का बालभोग (जलपान) और प्रसाद (भात) आज लगेगा। सभी मुरती बैठ जाइए। आज सतगुरु साहेब सपना दीहिन हैं।"

धूनी में फिर सूखी लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़े डाल दिए गए। सभी मुरती फिर धूनी के चारों ओर अर्धवृत्ताकार पंक्ति में बैठ गए। लछमी की महन्थसाहब के आसन के पास ही लगती है...। सभी महन्थसाहब की ओर उत्सुकता से देख रहे हैं।

"आज मध्य रात्रि में, सतगुरु साहेब सपने में मेरे आसन के पास आए। हम जल्दी से उठके साहेब बन्दगी किया। हमको ‘दयाभाव' देके साहेब कहिन-सेवादास, तुम नेत्रहीन हो, लेकिन तुम्हारे अन्तर के नैनों का जोत बड़ा विलच्छन्न है। हम भेख बदल करके आए और तूं पहचान लिया ? तुम्हारे ज्ञान-नेत्र में दिब्बजोत है। सो तुम्हारे गाँव में परमारथ का कारज हो रहा है और तुमको मालूम नहीं ? गाँधी तो मेरा ही भगत है। गाँधी इस गाँव में इसपिताल खोलकर परमारथ का कारज कर रहा है। तुम सारे गाँव को एक भंडारा दे दो। कहके साहब अन्तरधियान हो गए। हमारी निद्रा भंग हो गई। सतगुरु के विरह में चित्त चंचल हो गया। विरह अगिन तक कैसे बूझे, गृहबन अन्धकार नहीं सूझे। आखिर, सतगुरु आज्ञा शब्द विचारकर चित्त को शान्त किया।"

और यादव सेना के अचानक हमले ने गाँव की दलबन्दी को नया जीवन प्रदान कर दिया था। जोतखी जी की राय है, “यादव लोग बार-बार लाठी-भाला दिखाते हैं; राजपूतों के लिए यह. डूब मरने की बात है। फौजदारी में यतलाय (इत्तला) देकर इन लोगों का मोचिलका करवा लिया जाए। लेकिन सिंघजी थाना-फौजदारी से घबराते हैं। बात-बात में गाली और डेग-डेग पर डाली ! कानूनी-कचहरी की शरण जाना तो अपनी कमजोरी को जाहिर करना है। समय आने पर बदला ले लिया जाएगा। अकेले यादवों की बात रहती तो कोई बात नहीं थी, इसमें कायस्त समाया हुआ है। मरा हुआ कायस्त भी बिसाता है। फिर, वह बदमाशी हरगौरी की ही है। मेरे दरवाजे पर किसी को उठ जाने के लिए कहना, मेरे दरवाजे पर किसी को मारने के लिए उठना, यह तो अच्छी बात नहीं।"

यादवटोली में अब दोपहर से ही ढोल बजने लगता है-ढाक-ढिन्ना ढाक-ढिन्ना ! शोभन मोची को एक नया गमछा और नई गंजी मिली है। कालीथान के बड़ के पास गाय-भैंस बथान करके दोपहर से ही कुश्ती खेलने लगते हैं यादव सन्तान। बालदेव जी ने जिस दिन अनसन किया था, शाम को खेलावन यादव के दरवाजे पर कीर्तन हुआ था। बालदेव जी का सिखाया हुआ सुराजी कीर्तन 'धन-धन गाँधी जी महराज, ऐसा चरखा चलानेवाले' कीर्तन के बाद बालदेव जी ने भैंस का कच्चा दूध पीकर व्रत तोड़ा था। कहते थे, अब हिंसाबात करने से फिर अनसन करेंगे, अब के दो दिनों का ! सुराजी कीर्तन, लहसन का बेटा सुनरा खूब गाता है। बालदेव जी जबकि फिर उपवास करेंगे तो सुनना। अभी और सीख रहा है।...सिपैहियाटोला में तो अब दिन में ही उल्लू बोलता है। तहसीलदार कह रहे थे-राजपूतों की सिट्टी गुम हो गई है। हल्दी बोला (चित्त कर देना) दिया है। कालीचरन बहादुर है !

इसपिताल के सभी घर बनकर तैयार हो गए हैं। सिर्फ मिट्टी साटना बाकी है। बिरसा माँझी ने कहा है-संथालटोली की सभी औरतें आकर मिट्टी लगा देंगी आज। अलबत्त मिट्टी लगाती हैं संथालिने ! पोखता मकान भी मात ! अगले सनिचर को डागडरबाबू ने बालदेव जी से दसखत करा लिया है। भैंसचरमनबाबू (वाइस चेयरमैन) जरूर यादव ही होंगे। किसी दूसरी जाति का ऐसा नाम क्यों होगा-भैंसचरमनबाबू ! तहसीलदार के यहाँ जाकर देखो-खुरसी, ब्रींच, बड़े-बड़े बक्से में दवा, बाल्टी, कठौत, लोटा। पानी का कल गाड़ा जाएगा, जैसे रौतहट के मेला में गड़ता है। सनिच्चर को ही महन्थसाहेब का भंडारा है-पूड़ी-जिलेबी का भोज। सारे गाँव के औरत-मरद बूढ़े बच्चे और अमीर-गरीब को महन्थसाहेब खिलावेंगे। सपनौती हुआ है।

यादवटोली का किसनू कहता है, “अन्धा महन्त अपने पापों का प्राच्छित कर रहा है। बाबाजी होकर जो रखेलिन रखता है, वह बाबाजी नहीं। ऊपर बाबाजी भीतर दगाबाजी ! क्या कहते हो ? रखेलिन नहीं, दासिन है ? किसी और को सिखाना। पाँच बरस तक मठ में नौकरी किया है; हमसे बढ़कर और कौन जानेगा मठ की बात ? और कोई देखे या नहीं देखे, ऊपर परमेसर तो है। महन्थ जब लछमी दासिन को मठ पर लाया था तो वह एकदम अबोध थी, एकदम नादान। एक ही कपड़ा पहनती थी। कहाँ वह बच्ची और कहाँ पचास बरस का बूढ़ा गिद्ध ! रोज रात में लछमी रोती थी-ऐसा रोना कि जिसे सुनकर पत्थर भी पिघल जाए। हम तो सो नहीं सकते थे। उठकर भैंसों को खोलकर चराने चले जाते थे। रोज सुबह लछमी दूध लेने बथान पर आती थी, उसकी आँखें कदम के फूल की तरह फूली रहती थीं। रात में रोने का कारण पूछने पर चुपचाप टुकुर-टुकुर मुँह देखने लगती थी...ठीक गाय की बाछी की तरह, जिसकी माँ मर गई हो...! वैसा ही चंडाल है यह रमदसवा। वह साला भी अन्धा होगा, देख लेना।...महन्थ एक बार चार दिन के लिए पुरैनिया गया था। हमने सोचा कि चार रात तो लछमी चैन से सो सकेगी। ले बलैया। बाघ में मुँह से छूटी तो बिलार के मुँह में गई। उसके बाद लछमी ऐसी बीमार पड़ी कि मरते-मरते बची। पाप भला छिपे ? रामदास को मिरगी आने लगी और महन्थ सेवादास सूरदास हो गए। एकदम चौपट !...हमारा तीन साल का दरमाहा बाकी रखा है। भंडारा करता है ! हम उन लोगों को साधू नहीं समझते हैं।"

महन्थ सेवादास इस इलाके के ज्ञानी साधु समझे जाते थे-सभी सास्तर-पुरान के पंडित ! मठ पर आकर लोग भूख-प्यास भूल जाते थे। बड़ी पवित्र जगह समझी जाती थी। लेकिन जब महन्थ दासिन को लाया, लोगों की राय बदल गई। बसुमतिया मठ के महन्थ से इसी दासिन को लेकर कितने लड़ाई-झगड़े और मुकदमे हुए। बसुमतिया का महन्थ कहता था, लछमी दासिन का बाप हमारा गुरु-भाई था इसलिए बाप के मरने के बाद उस पर मेरा हक है। सेवादास की दलील थी, लछमी पर हमारा अधिकार है। अन्त में लछमी कानूनन सेवादास की ही हुई। सेवादास के वकील साहब ने समझाकर कहा था-महन्थसाहब ! इस लड़की को पढ़ा-लिखाकर इसकी शादी करवा दीजिएगा। महन्थसाहब ने वकीलसाहब को विश्वास दिलाया था-वकीलसाहब, लछमी हमारी बेटी की तरह रहेगी...लेकिन आदमी की मति को क्या कहा जाए ! मठ पर लाते ही किशोरी लछमी को उन्होंने अपनी दासी बना लिया। लछमी अब जवान हुई है, लेकिन लछमी के जवान होने से पहले ही महन्त सेवादास की आँखें अपनी ज्योति खो चुकी थीं। पता नहीं, लछमी की जवानी को देखकर उसकी क्या हालत होती ! अब तो महन्थ सेवादास को बहुत लोग प्रणाम-बन्दगी भी नहीं करते।...धर्म-भ्रष्ट हो गया है। बगुलाभगत है। ब्रह्मचारी नहीं, व्यभिचारी है।

पूड़ी-जिलेबी और दही-चीनी के भंडारे की घोषणा के बाद जनमत बदल रहा है।...कैसा भी हो, आखिर साधु है ! किसने आज तक इतना बड़ा भोज किया ! , तहसीलदार ने अपने बाप के श्राद्ध में जाति-बिरादरीवालों को भात और गैर जाति के लोगों को दही-चूड़ा खिलाया था। सिंघजी ने अपनी सास के श्राद्ध में अपनी जाति के लोगों को पूरी-मिठाई और अन्य जाति के लोगों को दही-चूड़ा खिलाया था। खेलावन के यहाँ, पिछले साल, माँ के श्राद्ध में जैसा भोज हुआ सो तो सबों ने देखा ही है। फिर, सारे गाँव के लोगों को, औरत-मरद बच्चों को, आज तक किसने खिलाया है ? चीनी मिलती नहीं। भगमान भगत ने कहा है कि बिलेक में एक बोरा चीनी का दाम है एक नमरी। (सौ रुपए का नोट) चर मन चीनी-दो नमरी !

तन्त्रिमा, गहलोत और पोलियाटोली के अधिकांश लोगों ने पूड़ी-जिलेबी कभी चखी भी नहीं। बिरंची एक बार राज की गवाही देने के लिए कचहरी गया तो तहसीलदार ने पूड़ी-जिलेबी खिलाई थी। गाँव में, न जाने कैसे, यह हल्ला हो गया कि बिरंची ने तहसीलदार का जूठा खाया है।...जनेऊ देने के लिए जाति के पंडित जी आए थे। बिरंची के सिर पर सात घंटे तक पैला-सुपाड़ी रखने की सजा दी गई थी-पाँच सुपारी पर पैला भर पानी ! ज़रा भी धैला हिला, एक बूंद भी पानी गिरा कि ऊपर से झाड़ की मार ! तहसीलदार साहब क्या कर सकते हैं ! जाति-बिरादरी का मामला है, इसमें वे कुछ नहीं बोल सकते। आखिर पाँच रुपैया जुरमाना और जाति के पंडित जी को एक जोड़ा धोती देकर बिरंची ने अपना हुक्का-पानी खुलवाया था।...पूड़ी-जिलेबी का स्वाद याद नहीं !

“जीवनदास !"

"बालदेव जी आए हैं। बनगी बालदेवबाबू !"

"बनगी नहीं, जाय हिन्द बोलो, जाय हिन्द !...हाँ जी, इस टोले में कितने लोग हैं, हिसाब करके बताओ तो। औरत-मरद, बच्चों का भी जोड़ना। क्या गिनना नहीं जानते ? बिरंची कहाँ है ?"

बालदेव जी घर-घर घूमकर मर्दुमशुमारी कर रहे हैं। बड़ा झंझट का काम है। सिर्फ पोलियाटोले में सात कोड़ी (एक कोड़ी में बीस संख्या होती है।) चार, नहीं...चार कोड़ी सात; ततमाटोली में पूरे पाँच कोड़ी, दुसाधटोली में दो कोड़ी, कोयरीटोले में छः कोड़ी तीन।...यादवटोली का हिसाब कालीचरन कर रहा है। भगवान जाने, सिपैहियाटोली के लोग इसमें भी मीनमेख निकालकर बखेड़ा न खड़ा कर दें। क्या ठिकाना है ! बाभनों ने तो साफ इनकार कर दिया है। यदि बाभनों के लिए अलग प्रबन्ध न हुआ तो सरब संघटन में नहीं खाएंगे। बाभन-भोजन ही नहीं हुआ तो फिर भोज क्या ! महन्थ जी से कहना होगा। बाभन हैं ही कितने, सब मिलाकर दस घर।

महन्थ साहब ने सब सुनकर कहा, “सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! बाभन लोगों का अलग इन्तजाम कर दो बालदेवबाबू ! इसमें हर्ज ही क्या है ! नहीं हो, तो उन लोगों का प्रबन्ध मठ पर ही कर दो।"

इसी समय लछमी दासिन ने आकर खबर दी, "सिपैहियाटोला के लोग भी नहीं खाएँगे। हिबरनसिंघ का बेटा आकर कह गया है, ग्वाला लोगों के साथ एक पंगत में नहीं खाएँगे। हम लोगों के गाँव का आटा-घी-चीनी अलग दे दिया जाए, हम लोग अलग बनवा लेंगे।"

“सतगुरु हो ! यह तो अच्छा बखेड़ा खड़ा हुआ। अब यादव लोग कहेंगे कि धानुक लोगों के साथ एक पंगत में नहीं खाएँगे।"

हिबरनसिंघ के बेटे ने तो यह भी कहा कि बालदेव यदि इन्तजामकार रहेगा तो महन्थ साहेब का भंडारा भंडुल होगा।"

"गुरु हो ! गुरु हो!"

"तो महन्थ साहेब, हमारे रहने से लोग विरोध करते हैं तो हम खुसी-खुसी..."

"वाह रे ! यह भी कोई बात है ! महन्थ साहेब, मैं कह देती हूँ, यदि बालदेव जी को छोड़कर और किसी को प्रबन्ध करने का भार दिया तो समझ लीजिए कि भंडारा चौपट हुआ। मैं इस गाँव के एक-एक आदमी को पहचानती हूँ।"

बालदेव ने पहली बार लछमी की ओर गरदन उठाकर देखने की हिम्मत की। निगाहें ऊपर उठीं और लछमी की बड़ी-बड़ी आँखों में वह खो गया।...आँखों में समा गया बालदेव शायद।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

18 जुलाई 2022
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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

18 जुलाई 2022
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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

18 जुलाई 2022
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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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