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भाग 7

18 जुलाई 2022

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ?

बालदेव जी प्यारू को भीड़ से बाहर ले आते हैं। “भाई, तुम लोगों ने आदमी नहीं देखा है कभी ? जाओ, अपना काम देखो ! हलवाई जी लोगों के पास कौन है ?"

बालदेव जी सबों के नाम के साथ 'जी' लगाकर बोलते हैं। रामकिसून आसरम में लीडर लोग इसी तरह सबों के नाम के साथ 'जी' लगाकर बोलते हैं-'ड्राइवर जी', 'ठेकेदार जी', 'हरिजन जी' !

पूछताछ के बाद मालूम हुआ, प्यारू डागडर साहेब के पास नौकरी करने आया है। रौतहट टीसन में जो हेमापोथी डागडर साहेब थे, प्यारू उनके यहाँ पाँच साल नौकरी कर चुका है। डागडर साहेब देश चले गए। सुना कि मेरीगंज में एक डागडरबाबू आ रहे हैं। सो प्यारू डागडरबाबू के पास नौकरी करने आया है।

चूड़ा-गूड़ का जलखै (जलपान) करके प्यारू बालदेव जी से कहता है, "डागडरबाबू का सामान कहाँ है ? टेबल-कुरसी लगाना होगा। अलमारी को झाड़ना-पोंछना होगा। पानी के ढोल के पास एक बोल (कठौत) रखना होगा, एक साबुन और एक गमछा। डागडरबाबू आते ही पहले साबुन से हाथ धोएँगे..."

सचमुच प्यारू डाक्टर का पुराना नौकर है। टेबल-कुरसी ठीक से लगा दिया है। तीन पैरवाली लोहे की सीढ़ी पर पानी का ढोल रख दिया; सीढ़ी में ही लगी हुई गोल कड़ी में ललमुनियाँ (अलमुनियम) का कठौत बिठा दिया है। ढोल में कल लगा हुआ है। कल टीपने से पानी गिरने लगता है। बक्से से गमछा निकालकर वहीं लटका दिया है। खस्सी-बकरी की अंतड़ी का भीतरी हिस्सा जैसा रोयाँदार होता है, वैसा ही गमछा है। साबुन ? साबुन नहीं है ? अरे, कपड़ा धोनेवाला साबुन नहीं, गमकौआ साबुन चाहिए। भगत की दूकान में गमकौआ साबुन कहाँ से आवेगा ? कटिहार में मिलता है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली जब गमकौआ साबुन से नहाने लगती है तो सारा गाँव गमगम करने लगता है। तहसीलदार साहब कहते हैं, कमली दीदी से साबुन माँगकर ला दो !...सचमुच प्यारू पुराना डागडरी नौकर है। बड़े मौके से वह आ गया, नहीं तो इतना इन्तजाम कौन करता ? बेला झुक गया है, अब डागडरबाबू भी आ जाएँगे। तहसीलदार साहब कहते हैं, "भुरुकुवा उगने के पहले ही बैलगाड़ियों को रवाना कर दिया है। साथ में गया है अगमू चौकीदार।"

सारा गाँव महक रहा है। मेले में ठीक ऐसी ही महक रहती है। तहसीलदार साहब के गुहाल में हलवाई लोग सुबह से ही पूड़ी-जिलेबी बना रहे हैं। पूड़ी बनाकर ढेर लगा दिया है। गाँव के बच्चे सुबह से ही जमा हैं। राजपूत और कायस्थों के बच्चे दूसरे टोले के बच्चों को उधर नहीं जाने देते हैं- "भागो, छू जाएगा !"

सिंघ जी खुद जाकर खेलावनसिंह यादव को पकड़ लाते हैं। "तहसीलदार देखो, इसके पेट में बाय उखड़ गया है। भोज खाने के पहले ही अन्नसर्जी हो गई है। अरे भाई, औरतों की तरह रूठने से क्या फायदा ! तुम्हीं कहो तहसीलदार, हम ठीक कहते हैं या नहीं। लड़ो-झगड़ो और फिर गले-गले मिलो। यह रूठने का क्या माने ? हमको तो बालदेव से मालूम हुआ। जाकर देखो तो कागभुसुंडी इसके कान में मन्तर पढ़ रहा है।...ऐ बालदेव, सुनो, डागडर साहेब आएँ तो पहले इसी का इलाज कराओ। कहना कि आठवाँ महीना है..."

हा हा हा हा हा...हा...हा !

“रामकिरपाल भाई, लड़कों के सामने भी आप दिल्लगी करते हैं ? अच्छा हाथ छोड़िए। सब कोई तो हैं ही, सिर्फ हमारे नहीं रहने से कौन काम हरज हो रहा था ?"

सिंघ जी मजेदार आदमी हैं। सुबह से ही सबों को हँसा रहे हैं। खेलावन यादव रूठे थे, उसको भी पकड़ लाए। जोतखी जी नहीं आए। बोले, दाँत में दर्द है। सिंघ जी कहते हैं, “पता नहीं उनके पेट के दाँत में दरद है शायद । सुनते हैं आजकल डागडर लोग पत्थर का नकली दाँत लगा देते हैं। डागडर साहेब से कहकर जोतखी जी का दाँत बनवा दो भाई !" अजी, सभागाछी (विवाहार्थी मैथिलों का मेला) में लड़कीवाले दाँत को हिला-डुलाकर देखते हैं थोड़ो !"

“डागडर साहेब आ रहे हैं।"

“आ रहे हैं ? कहाँ ?

"पछियारीटोला के पास पाँचों बैलगाड़ियाँ आ रही हैं। अगर चौकीदार आगे-आगे दौड़ता हुआ आ रहा है। डागडर साहेब टोपा पहने हुए हैं।"

अगमू आ गया। “कन्धे पर क्या है, बक्सा ?"

कामकाज छोड़कर सभी जमा हो गए-डाक्टर साहब आ रहे हैं।

"हट जाइए !" अगमू कहता है, “डागडर साहब बोले हैं, इन्तजाम से रखना ठेस नहीं लगे। बेतार का खबर है।"

बालदेव जी कहते हैं, "रेडी (रेडियो) है या रेडा ! अब सुनिएगा रोज बम्बै-कलकत्ता का गाना। महतमा जी का खबर, पटुआ का भाव सब आएगा इसमें। तार में ठेस लगते ही गुस्साकर बोलेगा-बेकूफ। बिना मुँह धोए पास में बैठते ही तुरत कहेगा-क्या आपने आज मुँह नहीं धोया है ?"

"जुलुम बात !"

डाकडर साहेब !

सभी हाथ जोड़कर खड़े हैं। डाक्टर साहब भी हँसते हुए हाथ जोड़ते हैं। बालदेवजी 'जाय हिन्द' कहते हैं। देखादेखी कालिया भी आजकल 'जाय हिन्द' कहता है। प्यारू शामियाने में कुर्सी लाकर रखता है, डाक्टर साहब के हाथ से टोप ले लेता है। डाक्टर साहब के चेहरे का रंग एकदम लाल है। ‘लालटेस' ! मोंछ नहीं है क्या ? नहीं मोंछ सफाचट कटाए हैं।

बालदेव जी हाथ जोड़कर पूछते हैं, रास्ते में कहीं तकलीफ तो नहीं हुई ?...सब तैयार है, भोजन कर लिया जाए। इनका नाम विश्वनाथपरसाद है, राजपारबगा के तहसीलदार हैं। इनका नाम रामकिरपालसिंघ है, सिपै...राजपूतटोली के मालिक हैं। इनका नाम खेलावनसिंह यादव है, यादव छत्रीटोले के 'मड़र' हैं। इनका नाम कालीचरन है, बड़ा बहादुर लौजवान है। और ये लोग 'इसकुलिया' हैं।...आइए बाबू साहब, आप लोग डागडर साहेब से बतियाइए। इस गाँव के महन्थ साहेब ने इसपिताल होने की खुशी में गाँववालों को आज भंडारा दिया है।

डाक्टर साहब हाथ जोड़कर सबों को फिर नमस्कार करते हैं। कहते हैं "हम अभी नहीं खाएंगे। सबको खिलाइए।"

सचमुच प्यारू पुराना नौकर है। देखो, डागडरबाबू ने सबसे पहले साबुन से हाथ धोया।

मठ से महन्थ साहेब, कोठारिन लछमी दासिन, रामदास और दो मुरती आए हैं। महन्थ साहेब की बैलगाड़ी के आगे एक साधु तुरही फूंकता हुआ आ रहा है। धु तु तु तु ऽ ऽ...धु तु तु ! और तुरही की आवाज सुनते ही गाँव के कुत्ते दल बाँधकर भोंकना शुरू कर देते हैं। छोटे-छोटे नवजात पिल्ले तो भोंकते-भोंकते परेशान हैं। नया-नया भोंकना सीखा है न !

सबसे पहले कालीथान में पूड़ी चढ़ाई जाती है। इसके बाद कोठी के जंगल की ओर दो पूड़ियाँ फेंक दी जाती हैं, जंगल के देव-देवी और भूत-पिशाच के लिए। इसके बाद साधु और बाभन भोजन ! बालदेव जी ने बहुत कहा, लेकिन डाक्टर साहब नहीं माने। प्यारू ठीक कहता था, डागडर लोग हलवाई की बनाई हुई पूड़ी-जिलेबी नहीं खाते हैं। 'कल के चूल्हे' पर प्यारू डागडरबाबू के लिए भात बना रहा है। जल्दी से बिजे (खाना-पीना) खत्म हो तो बेतार के खबर का गाना सुनें। क्या ? आज गाना नहीं होगा ? हाँ भाई, कल-कब्जा की बात है। इतना जल्दी कैसे होगा ! फिर कटिहार जंकशन में रेलगाड़ियों और मिलों का अभी इतना शोरगुल होता होगा कि यहाँ तक खबर आ भी नहीं सकेगी।"

"बिझै ! बिझै !"

"हर टोले के लोग अलग-अलग पंगत में बैठो। अपने-अपने बगल में एक फाजिल पत्ता लगा देना भाई ! अपने-अपने घर की जनाना लोगों के लिए कमबेस नहीं।..."

गुअरटोली के रौदी बूढ़ा को सभी मिलकर चिढ़ा रहे हैं। रौदी गोप गाँव-गाँव में घूमकर दही बेचता है। उसकी चाल-चलन, उसकी बोला-बानी सबकुछ औरतों जैसी है। सिर और छाती पर से कपड़ा जरा-सा भी सरक जाने पर, औरतों की तरह लजाकर ठीक कर लेता है। मर्दो से बातें करने के समय लजाता है, औरतें उसके सामने किसी भी किस्म का परदा नहीं करतीं। हाट जाते और लौटते समय वह औरतों के झुंड में ही रहता है।...अभी सब मिलकर रौदी बूढ़ा को चिढ़ाते रहे हैं-"तुम्हारा हिस्सा आँगन में भेज दिया जाएगा। देखो, लालचन ने तुम्हारा पत्ता लगा दिया है।"

“दुर ! मुँहझौंसे ! बूड़े-पुराने से हँसी-दिल्लगी करते लाज नहीं आती ? हम पूछते हैं तुम लोगों से, कि तुम लोग अपनी बूढ़ी दादी और नानी से भी इसी तरह हँसीमसखरी करते हो? इस गाँव के लौंडे-छौंड़े बिगड़ गए हैं। और सारा दोख इसी सिंघवा का है। जहाँ बूढ़े ही बदचाल हों तो लौंडों का क्या हाल ! हम कह देते हैं, हाँ, सुन रखो ! हाँ।..."

महन्थ साहब रात में भोजन नहीं करते हैं।

“सतगुरु हो ! डागडर साहेब, आपको कितना मुसहरा मिलता है ? दो सौ ?...हाँ, यहाँ ऊपरी आमदनी भी होगी। असल आमदनी तो ऊपरी आमदनी है।...बहुत अच्छा हुआ।...गाँधी जी तो अवतारी पुरुख हैं।-डागडर साहेब ! आज से करीब पाँच साल पहले एक बार हमारी आँखें आईं, उसके बाद दो महीने तक आँखों में लाली छाई रही। पुरनियाँ के सिविलसार्जन साहेब को पचास रुपया फीस देकर दिखलाया। बहुत दिनों तक इलाज भी करवाया। मगर बेकार। अब तो आप आ गए हैं। अपने घर के डागडर हुए !..."

लछमी दासिन टकटकी लगाकर डाक्टर साहब को देख रही है।...कितना सुन्दर पुरुष है ! बेचारे का इस देहात में मन नहीं लग रहा है। नौकरी कोई भी हो, आखिर नौकरी ही है। मन घर पर टँगा हुआ होगा। बीवी-बच्चों की याद आती होगी।...कुछ दिनों में मन लग जाएगा। फिर बाल-बच्चों को भी ले आवेंगे। अचानक वह पूछ बैठती है, "आपके घर पर और कौन-कौन हैं डाक्टरबाबू ?"

“जी," डाक्टर ने जरा हकलाते हुए कहा, “जी, मेरा कोई नहीं। माँ-बाप बचपन में ही गुजर गए।"

लछमी समझ लेती है कि यह सवाल पूछना उचित नहीं हुआ। उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि उसने ऐसा प्रश्न किया ही क्यों !...मेरा कोई नहीं !

"लछमी ! रामदास को बुलाओ। अच्छा तो डागडरबाबू, अब आज्ञा दीजिए। आप भी भोजन करके आराम कीजिए। कभी मठ की ओर भी आइएगा। सतगुरु साहेब कहीन हैं-'दरस-परस सतसंग ते छूटे मन का मैल'।"

लछमी हाथ जोड़कर नमस्कार करती है।

ब्राह्मणटोली के लोग बालदेव जी से पूछते हैं, “डागडरबाबू का नौकर तो दुसाध है। और डागडरबाबू कौन जात हैं ? दुसाध का बनाया हुआ खाते हैं ?"

बोलिए प्रेम से...महतमा गन्ही की जै!

भंडारा समाप्त हो गया। कोई 'तरुटी' नहीं हुई। सबको 'पूर्ण' हो गया। जो भूल-चूक से छूट गए हैं, उनका हिस्सा कल ले जाइएगा।

बालदेव जी अगमू चौकीदार और बिरंची के साथ इसपिताल में ही सोएँगे। आज पहली रात है!

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

18 जुलाई 2022
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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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