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भाग 38

18 जुलाई 2022

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसाढ़ के बादल... !

रात में मेंढकों की टरटराहट के साथ असंख्य कीट-पतंगों की आवाज शून्य में एक अटूट रागिनी बजा रही है-टर्र ! मेंक् टर्ररर...मेंकू !...झि-झि-चि...किर-किर्र...सि, किटिर-किटिर ! झि...टर्र...।

कोठारिन लछमी दासिन को नींद नहीं आ रही है; चित्त बड़ा चंचल है। रह-रहकर ऐसा लगता है कि उसके शरीर पर कोई पतंगा घुरघुरा रहा है। वह रह-रहकर उठती है, बिछावन झाड़ती है, कपड़े झाड़ती है। लेकिन वही सरसराहट...। वह लालटेन की रोशनी तेज कर बीजक लेकर बैठ जाती है-

जाना नहिं बूझा नहिं

समुझि किया नहीं गौन

अंधे को अंधा मिला

राह बतावे कौन ?

कौन राह बतावे ? नहीं, उसने बालदेव जी को जाना है, अच्छी तरह पहचाना है। “महंथ सेवादास जी कहते थे-“लछमी ! बालदेव साधु पुरुष है।”- लेकिन बालदेव जी तो इतने लाजुक हैं कि कभी एकांत में बात करना चाहो तो थरथर काँपने लगें; चेहरा लाल हो जाए। लाज से या डर से ? ...लेकिन बिरहबाण से घायल लछमी का मन सिसक-सिसककर रह जाता है।

बिरह बाण जिहि लागिया

ओषध लगे न ताहि ।

सुसकि-सुसकि मरि-मारि जिवैं,

उठे कराहि कराहि !

किंतु बालदेव जी को क्‍या पता !" लछमी क्‍या करे ?

टर्र-र-मेंक, मेंकद, झी ...ई ...टिंक-टिंक-झी रिं !... नहीं । लछमी अब नहीं सह सकेगी | वह बालदेव जी के पास जाएगी। मसहरी नहीं है बालदेव जी को ! मच्छर काटता होगा। ...नहीं | वह नहीं जाएगी। वह क्यों जाएगी ?“

पानी प्यावत क्‍या फिरो

घर-घर सायर बारि,

तृषावंत जो होयगा,

पीवेगा झख मारिं

रामदास-महंथ रामदास अब लछमी से बहुत कम बोलते हैं। वे नाम के महंथ हैं। वे कुछ नहीं जानते, कुछ नहीं समझते । उन्हें कुछ भी नहीं मालूम | कितनी आमदनी और कितना खर्च होता है-उनको क्या पता ? बीस से ज्यादा तो गिनना नहीं जानते। कोड़ी का हिसाब जानते हैं। ...रामदास जी समझ गए हैं कि यदि लछमी मठ को एक दिन के लिए भी छोड़ दे तो रामदास के लिए यहाँ टिका रहना मुश्किल होगा । लछमी जादू-मंतर जानती है | क्या कागज-पत्तर, क्या खेती-बारी और क्या हाकिम-महाजन, सभी में वह अव्वल है। महंथ रामदास जी समझ गए हैं कि यदि इज्जत के साथ बैठकर दूध-मलाई भोग करना हो तो लछमी को जरा भी अप्रसन्न नहीं किया जाए। ...तन का ताप मन को चंचल तो करता है, लेकिन क्या किया जाए ! ...यदि एक दासिन रखने का हुकुम लछमी दे दे तो...! गडगड़ाम “गड़गड़” बादल घुमड़ा। बिजली चमकी और हरहराकर बरसा होने लगी।

हाँ, अब कल से धनरोपनी शुरू होगी।...जै इन्दर महाराज, बरसो, बरसो !...लेकिन बीचड़' के लिए धान कहाँ से मिलेगा ? आज तो पंचायत में सभी बड़े मालिक लोग बड़ी-बड़ी बात बोलते थे, कल ही देखना कैसी बात करते हैं... 'अपने खर्चा के जोग ही धान नहीं है', 'बीहन (बीहन (बीज) धान, धान का छोटा पौधा) नहीं है' अथवा 'पहले हमको बोने दो।'

गड़गड़ाम...गुडुम !

"बीहन का धान मालिकों को देना होगा। हमेशा देते आए हैं, इस बार क्यों नहीं देंगे ?" कालीचरन आफिस में सोए, अधसोए और लेटे लोगों से कहता है, “और बार दूना लेते थे, बीहन का दूना, इस बार सो सब नहीं चलेगा। यदि तहसीलदार मामा ने ऐसा प्रबन्ध नहीं किया तो फिर...संघर्ख।"

बिजली चमकती है। बादल झूम-झूमकर बरस रहे हैं।

मंगला अब कालीचरन के आँगन में रहती है। कालीचरन की माँ अन्धी है। कालीचरन की एक बेवा अधेड़ फूफू है। मंगला की मीठी बोली सुनकर कालीचरन की माँ की आँखें सजल हो उठती हैं और फूफू की आँखें लाल ! जब-जब बिजली चमकती है, पछवारिया घर के ओसारे पर सोई फूफू पुअरिया घर की ओर देखती है। आदमी की छाया ? नहीं। बाँस है।...पुअरिया घर में सोई मंगला भी जगी है। बादलों के गरजने और बिजली के चमकने से उसे बड़ा डर लगता है। बचपन से ही वह बादल, बिजली और आँधी से डरती है। और यहाँ की बरसा तो..। फिर, बिजली चमकी। “कौन...!" मंगला फुसफुसाकर पूछती है-“कौन ?"

भीगे हुए पैरों के छाप बिजली की चमक में स्पष्ट दिखाई देते हैं।

सोनाये यादव अपनी झोंपड़ी में बारहमासा की तान छेड़ देता है :

एहि प्रीति कारन सेत बाँधल,

सिया उदेस सिरी राम है।

सावन हे सखी, सबद सुहावन,

रिमिझिमि बरसत मेघ हे !...

रिमिझिमि बरसत मेघ !...कमली को डाक्टर की याद आ रही है। कहीं खिड़कियाँ खुली न हों। खिड़की के पास ही डाक्टर सोता है। बिछावन भींग गया होगा। कल से बुखार है। सर्दी लग गई है।...न जाने डाक्टर को क्या हो गया है ?...कहीं मौसी सचमुच में डायन तो नहीं ? डाक्टर को बादल बड़े अच्छे लगते हैं। कल कह रहा था-'मैं वर्षा में दौड़-दौड़कर नहाना चाहता हूँ।'

छररर ! छररर !...बादल मानो धरती पर उतरकर दौड़ रहे हैं। छहर...छहर... छहर !

बिरसा माँझी अब लेटा नहीं रह सकता।...परसों गाँववालों ने मिटिन किया है-बाहरी आदमी यदि चढ़ाई करे तो सब मिलकर मुकाबला करेंगे। कालीचरन भी था और बानदेव भी !संथाल बाहरी लोग हैं।

तहसीलदार हरगौरी का सिपाही आज जमीन सब देख रहा धा-अखता भदै धान पक गया है। काटेंगे क्या ! किस खेत में कौन धान बोएँगे ? तो क्या सचमुच में संथालों की जमीन छुड़ा लेंगे तहसीलदार ? जमींदारी पर्था ख़तम हुई, लेकिन तहसीलदार जमीन से बेदखल कर रहा है। ...बात समझ में नहीं आ रही है ।...क्या होगा ? कल ही देखना है। जमीन पर हल लेकर आवेगा तहसीलदार, भदे धान काटने आवेगा, तब देखा जाएगा। पहले से क्या सोच-फिकर ? ...वह अब लेटा नहीं रह सकता। 'लेटे-ही-लेटे मादल पर वह हाथ फेरता है-रिं-रिं-ता-धिन-ता ।

गुड़गुडुम ...गुड़म से गुदुम |

बिजलियाँ चमकती हैं !

कल बीचड़ मिलेगा या नहीं ? ...बालदेव जी को मच्छर क्‍यों नहीं काटता है, कालीचरन की फूफी सोती क्‍यों नहीं, और डाक्टर की खिड़की बंद है या खुली, इसका जवाब तो कल मिलेगा। अभी जो यह सोनाय यादव बारहमासा अलाप रहा है, इसको क्‍या कहा जाए ?'गाँव-घर में गाने की चीज नहीं बारहमासा' अजीब है यह सोनाय भी। कुमर बिजैभान या लोरिक नहीं, बारहमासा ! खेत में रोपनी करते समय गानेवाला गीत बारहमासा ! धान के खेतों में पाँवों की छप-छप आवाज के साध वह गीत इतना मनोहर लगता है कि आदमी सबकुछ भूल जाए। “यह संथालटोली में माँदर क्‍यों बजा रहा है, बेवजह, और जब यह सोनाय बारहमासा गा ही रहा है तो चार कडी सुनने दो बाबा ! बेताल के ताल बजा रहे हो ! बरसा की छपछपाहट और बादलों को घुमड़न में माँदर की आवाज स्पष्ट नहीं सुनाई पड़ती है, गनीमत है। ओ ! सोनाय ने अब झूमर बारहमासा शुरू किया है-

अरे फ़ागन मास रे गवना मोरा होइत

कि पहिरझू बसंती रंग है,

बाट चलैत-आ केशिया सँभारि बान्ह,

अँचरा हे पवन झरे है एए ए !

डाक्टर अब गाँव की भाषा समझता ही नही, बोलता भी है। ग्राग्य गीतों को सुनकर वह केस-हिस्ट्री लिखना भी भूल जाता है। गीतों का अर्थ शायद वह ज्यादा समझता है। सोनाय से भी ज्यादा ? -अँचरा हे पवन झरे है ! आँचल उड़ि-उड़ि जाए !

गाँव के और लोग कहेंगे कि रात में रह-रहकर वर्षा होती थी । आधा घंटा बंद, फिर झर-झर ! लेकिन डाक्टर कहेगा, सारी रात बरसा होती रही, कभी बूँद रुकी नही | विशाल बड़ के तने, 'करकट टीन' के छप्परवाले घर पर जो बूँदें पड़ती थीं ! कोठी के बाग में झरझराहट कभी बंद नहीं हुई !...

तो सुबह हो गर्दख। सोनाय अब खेत में गीत गा रहा है। सोनाय अकेला नहीं है, सैंकड़ों कण्ठों मे एक-एक विरहिन मैथिली बैठी हुई कूक रही है-

आम जे कटहन, तुत जे बड़हल

नेबुआ अधिक सूरेब !

मास असाढ़ हो रामा ! पंथ जनि चढ़िहऽ,

दूरहि से गरजत मेघ रे मोर !

बाग में आम-कटहल, तूत और बड़हल के अलावा कागजी नीबू की डाली भी झुकी हुई है और दूर से मेघ भी गरजकर कह रहा है-आ पन्थी ! अभी राह मत चलना !...लोग दूर के साथी को अपने पास बुलाते हैं, बिरह में तड़पते हैं, मेघों के द्वारा सन्देश भेजते हैं और घर आया हुआ परदेशी बाहर लौट जाना चाहता है ? नहीं, नहीं !...बिजली की हर चमक पर मैं चौंक-चौंककर रह जाऊँगी। बादल जब गरजते हैं तो कलेजे की धड़कन बढ़ जाती है।

अऽरे मास आ सा ढ़ हे ! गरजे घन

बिजूरी-ई चमके सखि हे ए ए !

मोहे तजी कन्ता जाए पर-देसा आ...आ

कि उमड़ कमला माई हे!

...हँऽरे ! हँऽरे...

कमला में बाढ़ आ जाए तो कन्त रुक जाएँ। इसलिए कमला नदी को उमड़ने के लिए आमन्त्रित किया जाता है।...जिनके कन्त परदेश से लौट आए हैं, उनकी खुशी का क्या पूछना ! झुलनी रागिनी उन्हीं सौभाग्यवतियों के हृदय के मिलनोच्छ्वास से झूम रही है खेतों में !

मास असाढ़ चढ़ल बरसाती

घर-घर सखी सब झूलनी लगाती

झूली गावे,

झूली गावति मंगलबानी

सावन सखि अलि हे मस्त जवानी...

देखो, देखो! देखो, देखो सखि री बृजबाला

कहाँ गए जशोधाकुमार, नन्दलाला

...देखो, देखो।

घर का कन्त कहीं गाँव में ही राह न भूल जाए !...देखो, देखो, कहाँ गए ? किसी की झूलनी पर झूल तो नहीं रहे ?

"चाय !"

"कौन ? कमला !" डाक्टर अकचका जाता है।

"हाँ, चमकते हो क्यों ? तुमको भी सूई का डर लगता है ! यह मीठी दवा नहीं, मीठी चाय है डाक्टर साहब ! जब चाय पीकर ही जीना है तो आँख खुलते ही गर्म चाय की प्याली सामने रखने की जरूरत है।" कमला पास की कुर्सी पर बैठकर चाय बनाती है। प्यारू खड़ा-खड़ा मुस्करा रहा है।...प्यारू को इतना खुश बहुत कम बार देखा गया है।... अब समझें ! यह प्यारू नहीं कि हर बात में 'नहीं' कर टाल दिया।...चाय बनावें? तो नहीं। अंडा बनावें ? तो नहीं। खाना परोसें ? तो नहीं।...अब समझें !'

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

18 जुलाई 2022
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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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