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भाग 17

18 जुलाई 2022

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं।

सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे मत को माननेवाला मुरती है, फिर भी आचारज जी उसको साथ में रखते हैं। बड़ा करोधी मुरती है। हाथ में छोटा-सा कुल्हाड़ा रखता है। लम्बी दाढ़ी, जटा, सारे देह में भभूत और कमर में सिर्फ चाँदी की सिकड़ी ! नंगा रहता है। महन्थ साहेब के साथ वह जिस मठ पर जाता है, वहाँ के महन्थ और अधिकारी को छट्टी का दूध याद करा देता है। क्या मजाल कि सेवा में किसी किस्म की तरोटी (त्रुटि) हो ! इसीलिए आचारजगुरु उसको साथ में रखते हैं।

नागा बाबा जब गुस्सा होते हैं तो मुँह से अश्लील-से-अश्लील गालियों की झड़ी लग जाती है।...आते ही लछमी दासिन पर बरस पड़े-"तैरी जात को मच्छड़ काटे ! हरामजादी ! रंडी ! तैं समझती क्या है री ! ऐं, दुनियाँ को तैं अन्धा समझती है ? बोल !...लाल मिर्च की बुकनी डाल दूँ। छिनाल ! तैं आचारजगुरु को गाली देती है ? तेरे मुँह में कुल्हाड़े का डंडा डाल दूँ, बोल ! साली, कुत्ती ! साधू का रगत बहाती है और बाबू लोग से मुँह चटवाती है ! हूँ अभी तेरे गाल पर चाँटा; हट जा यहाँ से, कातिक की कुतिया !"

लछमी हाथ जोड़कर बैठी रहती है। नागा साधू की गालियों पर लोग ध्यान नहीं देते, बुरा नहीं मानते। वह तो आशीर्वाद है। वह नागा बाबा का पाँव पकड़कर कहती है, “छिमा कीजिए परभू दासिन का अपराध !"

रामदास की तो खड़ाऊँ से पीटते-पीटते देह की चमड़ी उधेड़ दी है नागा बाबा ने-“सूअर के बच्चे, कुत्ते के पिल्ले ! तैं महन्थ बनेगा रे ! आ इधर ! तुझको खड़ाऊँ से टीका दे दूँ महन्थी का ! तेरी बहान को ! (खटाक्) तेरी माँ को। (खटाक्) घसियारे का बच्चा ! जा लक्कड़ लाकर धूनी में डाल !"

लरसिंघदास खुश है। इसीलिए तो वह अगवानी करने स्टेशन तक गया था। सारी बातें सुनकर आचारज जी भी क्रोध से लाल हो गए थे।...दासिन को मठ से निकालना होगा। नागा बाबा को पाँच-'भर' गाँजा दिया है लरसिंघदास ने। अधिकारी जी को एक सौ रुपया कबूला है।...महन्थी तो धरी हुई है। सतगुरु की दया है।

आचारजगुरु ने लछमी से स्पष्ट कह दिया है-"रामदास को महन्थी का टीका नहीं मिल सकता। क्या सबूत है कि वह महन्थ सेवादास का चेला है ? है कहीं लिखा हुआ ? कोई वील है ? पन्थ के नियम के मुताबिक चेलाहीन मठ का महन्थ आचारज ही बहाल कर सकता है। तू मठ पर नहीं रह सकती। सेवादास ने तुझे रखेलिन बनाया था। सेवादास नहीं है, अब तू अपना रास्ता देख।"

"साहेब की जो मरजी !"

साहब की मरजी !...नागा बाबा की जो मरजी !

नागा बाबा रात में उठकर एक बार चारों ओर देखते हैं, फिर लछमी की कोठरी की ओर जाते हैं खाली पैर। खड़ाऊँ तो खट-खट करेगी !

...हरामजादी किवाड़ बन्द करके सोती है। यहाँ कौन सोया है ? वही पिल्ला, रामदसवा !..."अरे उठ, तेरी जात को मच्छड़ काटे। दासिन को जगा। बाबा का गाँजा मारकर सेज पर सोई हुई है। कहाँ है मेरा गाँजा ? जानता नहीं, तीन-'भर' रोज की खुराकी है ? कहाँ है ?"

"सरकार ! आधी रात में गाँजा..."

"चुप हरामजादे ! दासिन को जगा।"

“आज्ञा प्रभु !" लछमी किवाड़ खोलकर निकलती है।

"गाँजा कहाँ है ?"

"हाजिर है सरकार !" लछमी एक बड़ी-सी पुड़िया नागा के हाथ में देती है।

..अरे ! हरामजादी के पास इतना गाँजा कहाँ से आया ? पूरा तीन-'भर' मालूम होता है।...यह साला रमदसवा, कोढ़ी का बच्चा यहाँ खड़ा होकर क्या करता है ?"

“अबे सूअर के बच्चे, तैं यहाँ खड़ा होकर क्या करता है ?"...खट-खटाक् ! लछमी जल्दी से किवाड़ बन्द कर लेती है।

“अच्छा, कल देखना, तुझे बाल पकड़ मठ से घसीटकर नहीं निकाला तो कसम गुरु मचेन्दरनाथ की!"

लरसिंघदास एकान्त में एक बार लछमी से कहना चाहता है, 'तुम घबड़ाओ मत लछमी ! महन्थ तो मैं ही बनूँगा। तुम मठ में ही रहोगी। तुमको मठ से कोई निकाल नहीं सकता। तुम निराश मत होओ! लेकिन मौका ही नहीं मिलता है। शायद सुबह ही लछमी कहीं चली न जाए।

आचारजगुरु के जवान अधिकारी को भी रात-भर नींद नहीं आई, "पुरैनियाँ जिला में कम्बल के नीचे भी घुसकर ससुरे मच्छर काटे हैं हो !"

सुबह को लछमी बालदेव जी के पास जाती है। बालदेव जी पुरजी बाँट रहे थे। सारी बातें सुनकर बोले, “कोठारिन जी, आचारजगुरु तो सभी मठ के नेता हैं। वे जो करेंगे, वही होगा। इसमें हम लोग क्या कर सकते हैं ? बड़ा धरम-संकट है ! किसी के धरम में नाक घुसाना अच्छा नहीं है।...तीसरे पहर टीका होगा ? हम आवेंगे।"

लछमी दासिन को बालदेव जी पर पूरा भरोसा था। तहसीलदार साहब घर में नहीं हैं। डाक्टर साहब पर-पंचायत में नहीं जाते हैं। सिंघ जी सुनकर गुम हो गए। खेलावन जी ने तो बालदेव जी पर ही बात फेंक दी-जाने बालदेव !...सतगुरु हो ! कोई उपाय नहीं।

"साहेब बन्दगी कोठारिन जी!"

"कौन ! कालीचरन बबुआ ! दया सतगुरु के !"

"हाँ, टीका कब होगा ? कीरतन नहीं करवाइएगा ?"

लछमी दासिन कालीचरन को रो-रोकर सुनाती है; "काली बाबू ! ऐसी खराबखराब गाली ! उफ़ ! सतगुरु हो !...मैं अब कहाँ जाऊँगी ? कौन सहारा है मेरा ?"

"अच्छी बात ! आप कोई चिन्ता मत कीजिए।...बालदेव जी क्या करेंगे, वह तो बुरजुआ हैं। रोइए मत।"

लछमी देखती है कालीचरन को...उस बार परयाग जी के जादूघर में एक आबलूस की मूर्ति देखी थी, ठीक ऐसी ही।

मठ पर सभी साधू-सती, बाबू-बबुआन, दास-सेवकान शमियाने में बैठे हैं। लरसिंघदास ने सिर का जुल्फा छिलवा लिया है। अधकट्टी मूंछ को भी मुड़वा लिया है। साधुओं की भाषा में कहते हैं-मोंछभदरा। सुफेद मलमल की नई लँगोटी और कोपीन, देह पर चादर नहीं है।...चादर तो आचारजगुरु देंगे। आचारजगुरु का मुंशी एकरारनामा और सूरतहाल लिख रहा है। लछमी एक किनारे चुपचाप बैठी है जमीन पर। रामदास की सारी देह में हल्दी-चूना लगा है। बालदेव जी को लछमी पर बड़ी दया आ रही है। लेकिन क्या किया जाए !

"सभी साधू-सती, सेवक-सेवकान, सुन लीजिए !" आचारज जी का मुंशी दलील पढ़ता है, "लिखित लरसिंघदास चेले गोबरधनदास मोतफा जात बैरागी फिरके...। अब आप लोग इस पर दस्तखत कर दीजिए।"...लछमी फूट-फूटकर रो पड़ती है। सतगुरु हो !

"तैं चुप रह हरामजादी ! चुप रहती है या लगाऊँ डंडा !" नागा बाबा चिल्लाते हैं, "तैं चुप !"

जो दस्तखत करना जानते हैं दस्तखत कर रहे हैं। बालदेव जी ने भी दस्तखत कर दिया। उनका हाथ जरा भी नहीं काँपा।...कालीचरन दलील हाथ में लेकर उठता है-“आचारज जी! आप कहते हैं, महन्थ सेवादास बिना चेला के मरा है। आप क्या गाँव के सभी लोगों को उल्लू ही समझते हैं ?"

"कालीचरन !" बालदेव मना करते हैं, “बैठ जाओ।"

"कालीचरन !" खेलावन यादव डाँटते हैं।

लेकिन कालीचरन आज नहीं रुकेगा। कोई हिंसाबाद कहे या अनसन करे ! वह भी भाखन दे सकता है।

"...हम जानते हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि रामदास इस मठ का चेला है, महन्थ सेवादास का चेला है। उसको महन्थी का टीका न देकर, आप एक नम्बरी बदमास को महन्थ बना रहे हैं।...मठ में हम लोगों के बाप-दादा ने जमीन दान दी है, यह किसी की बपौती सम्पत्ति नहीं...।"

"तेरी जात को मच्छड़ काटे, चुप साले ! कुत्ते के बच्चे ! अभी कुल्हाड़े से तेरा...! तेरी माँ को...।"

“चुप रह बदमास !" कामरेड वासुदेव उछलकर खड़ा होता है।

"पकड़ो सैतान को !” कामरेड सुन्दर चिल्लाता है।

"भागने न पावे !"

"मारो!"

...ले-ले ! पकड़-पकड़ ! मार-मार, हो-हो !...रुको, ऐ बासुदेब ! ऐ सुन्दर !...ऐ !

नागा बाबा दाढ़ी छुड़ाते हैं, जटा छुड़ाते हैं, थप्पड़ों की मार से आँखों के आगे जुगनू उड़ते नज़र आ रहे हैं। गाँजे का नशा उतर गया है।...आखिर दाढ़ी और जटा नोंचवाकर, कुल्हाड़ा छोड़कर ही भागते हैं।...पकड़ो, पकड़ो ! छोड़ दो, छोड़ दो ! अब मत मारो ! नागा बाबा भागे जा रहे हैं। भभूत लगाया हुआ नंग-धडंग शरीर, बिखरी हुई जटा ! दौड़ते समय उनकी सूरत और भी भयावनी मालूम होती है। गाँव के कुत्ते पागल हो जाते हैं। भौं ! भौं !...नागा बाबा के पीछे दर्जनों गँवार कुत्ते दौड़ रहे हैं। अधिकारी महन्थ लरसिंघदास तो चार चाँटे में ही चे बोल जाते हैं-"नहीं लेंगे महन्थी, छोड़ दीजिए हमको !"

“छोड़ दो ! छोड़ दो!" कालीचरन हुक्म देता है। लरसिंघदास भी भागते हैं।

पंचों को लकवा मार गया है; साधुओं की हालत खराब है। पंचों के मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही हैं। और सबों के बीच, कालीचरन हाथ में दलील लेकर सिकन्नरशाह बादशा की तरह खड़ा है। पलक मारते ही क्या-से-क्या हो गया !...जैसे रामलीला का धनुसजग हो गया।...

"अब आचारज जी, आपसे हम अरज करते हैं कि सुरतहाल पर रामदास जी का नाम चढ़ाकर महन्थी का टीका दे दीजिए।"

आचारजगुरु काँपते हुए कहते हैं, "ब-बुआ ! हम तो सतगुरु की दया से...हमको तो लोगों ने कहा कि सेवादास का कोई चेला ही नहीं था। जब रामदास उसका चेला है तो वही महन्थ होगा।...मुंशीजी, लिखिए सूरत-हाल ! ले आओ, चादर, दही का बरतन !"

रामदास नहा-धोकर, देह के हल्दी-चूने के दाग को छुड़ा आया है। दही का टीका कपाल पर पड़ते ही सारे देह की जलन मिट गई।...सतगुरु हो ! सतगुरु हो !

पूजा-विदाई लिए बिना ही आचारज जी आसन तोड़ रहे हैं। पंचायत के लोग भी चुपचाप अपने-अपने घर की ओर वापस होते हैं। लछमी हाथ में पूजा-विदाई की थाली लेकर खड़ी है-"कबूल हो प्रभू ! दासिन का अपराध छिमा करो प्रभू !"

"काली बाबू !"

बालदेव जी उलटकर देखते हैं। लछमी कालीचरन को बुलाकर अन्दर ले जा रही है।...कालीचरन ने अन्याय किया है, घोर अन्याय किया है, हिंसाबाद किया है। इस बार दो दिन का अनसन करना पड़ेगा।

खेलावन जी जाति-बिरादरी की पंचायत बुलाकर सब बदमाशों को ठीक करेंगे। हे भगवान ! साधुओं के शरीर पर हाथ उठाना !

कालीचरन कुश्ती लड़ता है। उस्ताद ने कहा है, कुश्ती लड़नेवालों को औरतों से पाँच हाथ दूर रहना चाहिए।...वह पाँच हाथ से ज्यादे दूरी पर खड़ा है।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

18 जुलाई 2022
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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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