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भाग 37

18 जुलाई 2022

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर मोची भी उसी कम्बल पर बैठा है ? बस, अब रास्ते पर आ रहा है। देखो, आज तहसीलदार हरगौरी किस तरह हँस-हँसकर कालीचरन से बात कर रहा है-मानो एक प्याली का दोस्त है। हाँ, तो यादवों को अब जमाहिरलाल भी छत्री मान लिए हैं। कौन क्या बोल सकता है ?...बावनदास कौन जात है ?...कहाँ है बावनदास ? पुरैनियाँ गया है ? आज पंचायत के दिन उसको रहना चाहिए था। अरे भाई बाहरी आदमी फिर बाहरी आदमी है। उसको इस गाँव से कौन जरूरत है.? यहाँ नहीं, वहाँ । लेकिन

“ठाकुर (नाई) टोले से और रजकटोले से एक-एक आदमी को ऊँचे सफरे पर बैठने के लिए चुन लिया जाए ।”

ओ ! आओ डोमन भाई ! अपने टोले से किसको पंच चुनते हो ? बोलो ! तुम्हीं आओ ! और रजकटोलने से तो प्यारेलाल है ही। आओ प्यारे !” कालीचरन प्यारे को अपने ही पास बिठलाता है ।

“तो बात यह है कि,” तहसीलदार विश्वनाथप्रसाठजी सुपारी कतरते हुए कहते हैं, “जमाना बहुत खराब आ रहा है! जो लोग अखबार-गजट पढ़ते हैं, वही जानते हैं कि कितना खराब जमाना आ रहा है।...बंगाल की तरह अकाल फैलेगा । बंगाल के अकाल के बारे में नहीं जानते ?... अरे, चरवाह्य सब गाता है, सुने नहीं हो-

बड़ जुल्म कइलक अकलवा रे

बंगाल मुलुकवा में ।

चार करोड़ आदमी मरल"

“-- पूछो कालीचरन से, बालदेव भी कहेगा कि बंगाल के अकाल जैसा अकाल कभी पड़ा ?- उम्र ज्यादा होने से क्या हुआ ? जो लोग अखबार नहीं पढ़ते हैं, वे दुनिया की बातों से वाकिफ कैसे हो सकते हैं ? मैं ही पहले से यदि कर-कचहरी, कटिहार-पूर्णिया नहीं जाता तो कूपमण्डूक रहता। कुएँ का बेंग !” देखो, सरकार सभी धानवालो से धान वसूल रही है। क्‍यों ? सरकार को पूरा डर है कि अकाल फैलेगा । इसलिए अपने हाथ में बर-बखत के लिए पूरी स्टोक रखना जरूरी है। अरे, तुमको तो तीन आदमी की फिक्र करनी पड़ती है तो साल-भर बाप-बाप चिल्लाते हो, कभी इंद्र भगवान से पानी माँगते हो, सूरज भगवान से धूप उगाने के लिए कहते हो, नौकरी करते हो, कर्ज लेते हो ! और जिसको समूचा भारथवरश-हिंदुस्थान की फिक्र करनी पड़ती है, उसकी क्‍या हालत होती होगी ? अभी तुरत ही तो सभी लीडर जेहल से निकले हैं; तुरत मिनिस्टरी लिया है। यदि अकाल पड़ गया तो सुराज मिलनेवाला है, वह नहीं मिलेगा। यदि मिलेगा भी तो जो उसकी सारी ताकत तो लोगों का खिलाने में ही लग जाएगी। इसलिए हम लोगों को धरती से ज्यादा अन्न उपजाना चाहिए ।- अभी मान लो कि कर-कचहरी, फर-फौजदारी करके तुम खेत पर दफा 44 लगा देते हो, फिर 45 होगा, इससे जमीन में धान तो रोपा नहीं जाएगा ! खेत परती रहेगा और अन्न होगा नहीं । इसके बाद मालिक लोगों से ही यदि धान माँगोगे तो कहाँ से देंगे मालिक लोग ? अपने खर्च के लायक धान मालिकों के पास होगा नहीं और सरकार वसूल करेगी लाठी के हाथ से, कानून से । बड़े मालिकों के बखारों में भी चमगादड़ झूलेंगे।... तो हमारा यही कहना है कि सभी भाई आपस में विचारकर, मिलकर देखो कि किस काम में भलाई है !”

“ अरे ! तो यह पंचायत सिरफ बेजमीनवालों को ही सीख देने के लिए बैठाई गई है !” चुप रहो ! तहसीलदार जो कह रहे हैं, नहीं समझ रहे हो पक्की बात कहते हैं तहसीलदार ।” काबिल आदमी हैं। अरे, आज ही यह कालीचरन और बालदेव आया है न ! पहले तो हम लोगों के आँख-कान यही थे। इन्हीं के यहाँ बैठकर गजट में सुना था कि नेताजी सिंघापूर में पुसुप बिमान पर आ गए हैं। “ तहसीलदार ठीक कहते हैं।

“तहसीलदारबाबू ? माए-बाप,” आप ठीक ही कहते हैं। अब आप ही कोई रास्ता बताइए ।”

"हाँ, हाँ, तहसीलदार काका, आप ही जो कहिए ।”

“टीक है !“ क्‍या कालीचरन जी ?” तहसीलदार हरगौरी हँसकर पूछता है।

“कालीचरन को “जी" कहते हैं हरगौरी बाबू भी !”

“ठीक है। ठीक है। तहसीलदार साहब ठीक कहते हैं ।”

“- तो भाई, हम तो हिंदुस्थान, भारधवरश की बात नहीं जानते । हम अपने गाँव की बात जानते हैं। आप भला तो जग भला। हम तो इसी में गाँव का कल्याण देखते हैं कि सभी भाई, क्या गरीब कैया अमीर, सब भाई मिलकर एकता से रहें। न कोई जमीन छुड़ावे और न कोई गलत दावा करे । जैसे पहले जोतते-आबादते थे, आबाद करें, बाँट दें। न रसीद माँगें, न नकदी के लिए दर्खास्त दें।- दोनों को समझना होगा... क्‍यों हरगौरीबाबू ! सुनते हो तो ? अपने मैनेजर से जाकर कह देना कि हुजूर अब भी होश करें । यदि इस तरह रैयतों के साथ दुश्मनी करेंगे, कम-से-कम हमारे यहाँ के रैयतों से, तो फिर बात बिगड़ जाएगी ।” सभी बात तो हमारे ही हाथ में है। हम अभी गवाही देदें, कि हाँ हुजूरआली, यह सब फर्जी काम हमसे करवाया गया है, और कल कागज-पत्तर, चिट्ठी-चपाती, रुक्‍का-परवाना दिखला दें तो बस खोप सहित कबूतराय नमः...”

"हैं-हैं, हो-हो ।” पंचायत के सभी लोग मुक्त अट्टहास कर बैठते हैं।

“अरे तो, किस खानदान का तहसीलदार है, यह भी तो देखना चाहिए ?” सिंघ जी हँसते हुए कहते हैं।

“महारानी चंपावती” ”

हो-हो-हो-हो हँसी का दूसरा वेग, सैकड़ों सरलहदय इंसानों को गुदगुदी लगाती है ।

“अच्छा ! अच्छा ! अब काम की बात हो । सुनो कालीचरन बेटा ! लीडर बने हो तो बड़ा अच्छा काम है। बाबू-गाँव का नाम तो इसी में है। कोई सोशलिस्ट का लीडर है, तो कोई काँगरेस का, तो कोई काली टोपी का। लेकिन देख लो भैया, हम गाँव के सभी लौंडों के अकेले मालिक हैं। यदि गाँव में इधर-उधर कुछ किए तो पीठ की चमड़ी उधेड़ लें। : खेलावन ! जोतखी जी ! आप ही लोग कहिए, जो लौंडे हमको कहते हैं काका, मामा, भैया, फूफा, उन लड़कों की गलती पर यदि हम कान पकड़कर मल दें या दो कड़ी बात कह दें तो हमको कोई दोख देगा ?”

“नहीं, नहीं। आप वाजिब बात कहते हैं।”

“हम गाँव से बाहर थोड़े ही हैं, लेकिन एक बात हम भी पहले ही कह देते हैं। अभी आप जैसा करने के लिए कहते हैं, हम लोग करें। बाद में फिर हमारी गर्दन पर छुरी चले तब ?” कालीचरन कहता है।

"इसका जिम्मा हम लेते हैं। अरे, हमने कहा न कि सभी खेला मेरे हाथ में है।"

"तो ठीक है। हम गाँव से बाहर थोड़े हैं।"

"ठीक बात ! ठीक बात !"

"लेकिन सभी भाई सुन लीजिए। यदि गाँव के बाहर का कोई बाहरी हम पर हमला करे तो इसका मुकाबला सभी को मिलकर करना होगा। हाँ, यदि बाहरवाले इस गाँव के जमीनवालों पर हमला करें तो सबों को सहायता करनी होगी।...गाँव की जमीन गाँव में रहेगी। बाहरवाले क्यों लेंगे समझे ?"

“हाँ-हाँ, ठीक है। ठीक है। बहुत रात हो गई। आसमान में बादल उमड़ आए हैं। बरसा होगी।...दुहाई इन्द्र महाराज ! बरसो, बरसो !"

हर साल बरसात के मौसम में यही होता है। भगवान के हाथ की बात इंसान क्या जाने ! इन्द्र भगवान से प्रार्थना की जाती है-बरसाओ ! हे इन्द्र महाराज !...जरा भी आसमान के किसी कोने में काले बादलों का जमाव हुआ, बिजली चमकी, कि 'बरसो', 'बरसो' की पुकार घर-घर से सुनाई पड़ती है। जमीनवालों, बेजमीनों, सबों की रोटी का प्रश्न है। और यदि लगातार पाँच दिन तक घनघोर बरसा हुई और खेतों के आल डूबे कि '...जरा एक सप्ताह सबुर करो महाराज !'

इन्द्र महाराज की खुशी ! यदि उनका मिजाज अच्छा रहा तो प्रार्थना पर विचारकर एक सप्ताह सब्र कर गए। मौके से बरसा होती गई, धूप भी उगती रही तो फिर धान रखने की जगह नहीं मिलेगी। 'भूसिन पूछे मूस से कहाँ के रखबऽधान"( घाघ की एक सूक्ति) ....तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के पास डाक-वचनामृत, भविष्यफल और खान-बचन है। पंजिका से हिसाब निकालकर बता देंगे कि यह पक्ष सूखेगा या झरेगा।...नक्षत्रों की गणना में यदि स्त्री-स्त्री का संयोग हुआ तो शून्य, यदि पुरुष-पुरुष संयोग निकला तो शून्य । एक बूँद भी बरसा नहीं होगी, चिल्लाने से क्या होगा ?...

...ततमाटोला, पासवानटोला, धानुक-कुर्मीटोला तथा कोयरीटोला की औरतें हर साल ऐसे समय में इन्द्र महाराज को रिझाने के लिए, बादल को सरसाने के लिए, 'जाट-जट्टिन' खेलती हैं।

आज भी 'जाट-जट्टिन' का आयोजन है। कल तो पिछयारीटोले की औरतों ने किया था। बादल का एक टुकड़ा थोड़ी देर के लिए आकर चाँद को ढंक गया था। आज पुरनिमाँ है। कल से यदि बरखा नहीं हुई तो सारा पख सूखा रहेगा।...ततमाटोली की औरतों ने बाबूटोला की औरतों को निमन्त्रण दिया है-“एक साथ सब मिलकर जाट-जट्टिन खेलें, जरूर बरखा होगी।"

गुआरटोली और कायस्तटोली के बीच में जो पन्द्रह रस्सी मैदान खाली है, उसी में औरतें जमा हुई हैं।

...जाट के पास हजारों-हजार भैंसे हैं। वह उन्हें चराने के लिए कोशी के किनारे जाता है। जट्टिन घर में रहती है; दूध, घी और दही की बिक्री करती है, हिसाब रखती है।...सास या पति से झगड़कर, रूठकर जट्टिन नैहर चली गई। जाट उसे ढूँढ़ने जा रहा है। जट्टिन बड़ी सुन्दरी थी, उसकी सुन्दरता की चारों ओर चर्चा होती थी।

सुनरी हमर जटिनियाँ हो बाबूजी,

पातरि बाँस के छौंकिनियाँ हो बाबूजी,

गोरी हमर जटिनियाँ हो बाबूजी,

चाननी रात के इँजोरिया हो बाबूजी !

नान्हीं-नान्हीं तवा, पातर ठोरवा...

छटके जैसन बिजलिया...।

इसलिए जाट को गाँव के हरेक मालिक, नायक या मंडल पर सन्देह ।...जट्टिन नैहर नहीं जा सकेगी, किसी ने जरूर उसे अपने घर में रख लिया होगा।...रास्ते में कितने गाँव हैं, कितनी नदियाँ हैं, कितने घाट हैं और घटवार हैं। वह रास्ते के हर गाँव के मालिक मड़र (मंडल प्रमुख, मालिक), और नायक के यहाँ जाता है :

नायक जी हो नायक हो,

खोले देहो किवड़िया हो नायक जी,

ढूँढ़े देहो जटिनियाँ हो नायक जी...

जट्टिन बनी है रमपियरिया, और जाट बनी है कोयरीटोला की मखनी। मखनी ठीक मर्दों-जैसी लगती है।

'जाट-जट्टिन' अभिनय के साथ और भी सामयिक अभिनय तथा व्यंग नाट्य बीचबीच में होते हैं।...फुलिया बनी है डाक्टर। उसने कमल के फल की डंडी को किस तरह जोड़-जोड़कर डाक्टर के गले में झूलनेवाला आला बनाया है। सनिचरा का नया पैजामा माँग लाई है और बिहुला नाचवालों के यहाँ से साहबी टोपा और कोट माँग लाई है।

“ए मैन ! इदार आता हाए। बोलो क्या होता हाए !"

“हुजूर ! थोड़ा सिर दुखता है, थोड़ा आँख भी दुखता है, थोड़ा कान भी दरद करता है और कलेजा भी धुक-धुक करता है। सर्दी भी होता है, गर्मी भी लगता है। भूख नहीं लगता है और जब भूख लगता है तो खाना नहीं मिलता है।"

...रोगी बनी है धानुकटोले की सुरती ! खूब बात जोड़ती है...हा-हँ-हँ-हँ-हँ !...

"अरे बाप रे बाप ! ऐसा बेमारी तो कभी नाहीं देखा। तुम्मारा नेबज देके ! (देखकर) उँहू ! तुम नेही बचेगा। तुमारा बेमारी को कीड़ा हो गया।...जकसैन लगेगा।"

दूसरी रोगिनी आती है-कुर्मीटोले की तराबत्ती।

“ऐ औरत ! तुमको क्या हुआ ?"

"हमरा दिल दकदक करता है।"

"अरे बाप ! यहाँ तो सबों का दिल धकधक करता हाए। अमारा भी दिल धकधक करने लगा !"

डाक्टर और रोगिनी दोनों डरते हुए एक-दूसरे को बाँहों में पकड़ लेती हैं-दिल धकधक दिल दकदक !

...औरतों की मंडली हँसते-हँसते लोटपोट हो जाती है। बूढ़ियों की खाँसी उभर आती है। हो-हो-हो, खों-खों, अक्खों !...खूब किया !

मर्दो को 'जाट-जट्टिन' देखने का एकदम हक नहीं है। यदि यह मालूम हो गया कि किसी ने छिपकर भी देखा है तो दूसरे ही दिन पंचायत में चली जाएगी बात !... जिसकी मूंछे नहीं उगी हैं, वह देख सकता है।

अन्त में औरतें मिलकर हल जोतती हैं। हल और बैल किसी का ले आती हैं और जोतते समय गाँव के बड़े-बड़े किसानों को गाली देती हैं- "अरे बिस्नाथ तहसीलदरवा ! जल्दी पानी ला रे ! पियास से मर रहे हैं रे !"

"अरे ! सिंघवा सिपहिया रे ! पानी लाओ रे !"

"अरे रमखैलोना रे !...पानी ला रे !"

...इस गाली को कोई बुरा नहीं मानते। बल्कि किसी बड़े किसान का नाम छूट जाए तो उसे तकलीफ होती है।...बहुत दुख होता है।

इस बार डाक्टर को भी गाली दी जाती है-“अरे डकटरवा रे !...अरे परसन्तो रे, जल्दी से बोतल में पानी लेके आ रे !..."

हो-हो-हा-हा...

आसमान में काले बादल घुमड़ रहे हैं।...बिजली भी चमक रही है।

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

18 जुलाई 2022
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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

18 जुलाई 2022
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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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