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भाग 16

18 जुलाई 2022

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मुसम्मात सुनरी !

टक्का कटपीस-एक गज।

छींट-डेढ़ गज।

मलेछिया साटिन-एक गज।

साड़ी-एक नग।

बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा।

खेलावन यादव के दरवाजे पर खड़े होने को भी जगह नहीं। सुबह से पुर्जी बाँट रहे हैं, दोपहर हो गई।...साड़ी नहीं है !...नहीं ?...बालदेव जी ! हमको एक साड़ी...रौफा की माए एकदम नगन हो गई है बालदेव जी !

बालदेव जी कहते हैं, "देखिए ! मौजे-भर में सिरफ सात साड़ियाँ दी गई थीं। चार फर्दी हैं, वह तो मालिक लोगों के घर में पहनने की चीज है...चौदह रुपए जोड़ी। बाकी तीन साड़ियों को हमने इस तरह बाँट किया है, ऐसे लोगों को दिया है जो एकदम बेपरदे..."

"बेपरदे तो सारा गाँव है बालदेव जी !"

खेलावन यादव कहते हैं, "इतने दिनों से जब कमरुद्दीबाबू पूर्जी बाँटते थे, उस समय गाँव की औरतें बेपरदे और नगन नहीं थीं क्या ? भाई, जितना है उसी में इनसाफ से बाँट-बखरा कर लो।"

कालीचरन जिद्द कर रहा है, पुर्जी पर दो गज छींट और लिख दीजिए: हरमुनियाँ का खोल बनावाएँगे। बालदेव जी नहीं मानते।...आदमी के पहनने के लिए कपड़ा नहीं, हरमुनियाँ-ढोलक को चपकन सिलाकर पहनावेगा ?...देखो तो भला !

बालदेव जी का राह चलना मुश्किल हो गया है। कपड़ा की मेंबरी मिली है कि बलाए है ! दिसा-मैदान जाते समय भी लोग पीछा नहीं छोड़ते हैं।...जायहिन्द बालदेव जी ! आए थे तो आपके ही पास । दुलारी का गौना है।...अच्छा-अच्छा चलिए, हम दिसा से आते हैं।...कपड़ा अब कहाँ है ? रिचरब (रिजर्व) में भी नहीं है। सिरिफ कफन और सराध का कपड़ा है।...उसी में से? कैसे देंगे? कफन और सराध का कपड़ा गौना में ?

बालदेव जी को क्या मालूम कि दुलारी का गौना पाँच साल पहले हो गया है और उसके तीन बच्चे भी हैं।

लछमी दासिन ने रामदास को भेजा था, “आचारज जी आ रहे हैं। आपको तो आजकल छुट्टी ही नहीं रहती है। उधर जाते भी नहीं। कंठी लेने की बात हुई थी?...सो, आपकी क्या राय है ? आचारज जी आ रहे हैं। चादर-टीका के लिए चादर के अलावे पूजा-विदाई के लिए भी एक जोड़ी धोती चाहिए-बिना कोर की, महीन . मारकीन की या ननकिलाठ की धोती।...और कोठारिन जी को भी कपड़ा नहीं है।"

बड़ी मुश्किल है ! रिचरब में थोड़ा कपड़ा है सो सादी-बिहा और सराध के लिए। कैसे दिया जाए ! ओ ! आचारज जी महन्थसाहेब के सराध में ही आए हैं। तब ठीक है।...सिरिमती...नहीं, सिरिमती नहीं। दासिन लछमी कोठारिन-ननकिलाठ, दस गज ! फैन मारकीन, दस गज। चद्दर, एक !

रामदास याद दिला देता है, "लँगोटा-कोपीन के लिए भी एक गज।"

बड़ी मुश्किल है ! बालदेव जी को अब रोज दस-पन्द्रह बार से ज्यादे झूठ बोलना पड़ता है। क्या किया जाए ? बड़ा संकट का काम है।...इधर जिला कांग्रेस की मिटिन भी है। मेनिस्टर साहब आ रहे हैं। गाँव से झंडा-पत्तखा और जत्था भी ले जाना होगा। जिला सिकरेटरी गंगुली जी ने चिट्ठी दी है। परचा भी आया है...।

चलो ! चलो ! पुरैनियाँ चलो ! मेनिस्टर साहब आ रहे हैं। औरत-मर्द, बाल-बच्चा, झंडा-पत्तखा और इनकिलास-जिन्दाबाघ करते हुए पुरैनियाँ चलो !...रेलगाड़ी का टिकस ?...कैसा बेकूफ है ! मेनिस्टर साहब आ रहे हैं और गाड़ी में टिकस लगेगा ? बालदेव जी बोले हैं, मेनिस्टर साहब से कहना होगा, कोटा में बहुत कम कपड़ा मिलता है।...चलो-चलो, पुरैनियाँ चलो। भुरुकवा उगते ही कालीथान के पास जमा होकर जुलूस बनाकर चलो !

"बोलिए एक बार-काली माय की जाये !"

"जाये ! जाये !"

"बोलिए एक बार परेम से-गन्ही महतमा की जै!"

"जाये ! जाये !"

फरर...........र, पेड़ पर घोसलों में सोए हुए पंछी पंख फड़फड़ाकर उड़े। कालीचरन कहता है, यदि गुलेटा रहता तो अँधेरे में भी अभी एक-दो हरियल को मारकर गिरा देते। बासुदेव कहता है-चुप रहो। बालदेव जी ने नहीं सुना, नहीं तो अभी फिर अनसन...।

गिनती करो। कितनी औरत, कितने मरद ? अभी बच्चों को मत लो, झंझट होगा। कालीचरन और गूदर सबों की देह छू-छूकर गिनते हैं। कालीचरन कहता है-पाँच कोरी चार औरत। गूदर हिसाब करता है-चार कोरी दस मरद ।...मातबर लोग काहे जाएगा ? मातबर लोग तो हमेशा गदारी करते हैं।...बालदेव जी ने आज फिर एक नई बात कही-गदारी ! गदारी !...गदारी ?

जुलूस में गाने के लिए बालदेव जी को दो ही गीत याद हैं। एक नीमक कानून के के समय का सीखा हुआ-'आओ बीरो मरद बनो अब जेहल तुम्हें भरना होगा। दूसरा, बियालिस, मोमेंट के समय जेहल में सुना था-'जिन्दगी है किरान्ती की किरान्ती में लुटाए जा। लेकिन यह तो सोशलिस्ट पाटीवाला गाता है।...पुराना ही ठीक है...आओ बीरो मरद बनो...! आज बालदेव जी खुद गाते हैं : सुनरा भी गीत का आखर धरता है :

तन्त्रिमाटोली के मंगलू ततमा को कँपकँपी लग जाती है। जेहल ! अरे बाप !...ये लोग जेहल ले जा रहे हैं। पन्द्रह साल पहले उसको चोरी के केस में सजा हुई थी। जेल के जमादार की पेटी की मार वह आज भी नहीं भूला है। चार हौद (होज) पानी रोज भरना पड़ता था। नहीं !...वह पेशाब करने के बहाने पीछे रह जाता है और नजर बचाकर घर की ओर भागता है। सब पगला गया है !

सहर पुरैनियाँ !...यही है सहर पुरैनियाँ-पक्की सड़क, हवागाड़ी, घोड़ागाड़ी और पक्का मकान !...'एक रत्ती चिनगी चिनगल जाए, सहर पुरैनियाँ लूटल जाए ?...क्या है, बोलो तो?' 'आग !'...गाँव के बच्चे आज भी बुझौवल बुझाते समय शहर पुरैनियाँ का नाम लेते हैं। मेरीगंज के इस जुलूस में चार आदमी ऐसे भी हैं जो शहर पुरैनियाँ पहले भी आए हैं। बहुत तो आज ही पहली बार रेलगाड़ी पर चढ़े हैं। कलेजा धकधक करता है। जिसके हाथ में गन्ही महतमा का झंडा रहता है, उससे गाटबाबू, चिकिहरबाबू, टिकस नहीं माँगता है।...सचमुच में रेलगाड़ी 'जै जै काली छै छै पैसा' कहते हुए दौड़ती है ! जै जै काली ?...यही है कालीपुल। बालदेव जी दिखलाते हैं-यही कालीपुल है। पुल बाँधने के समय पाँच आदमी की बलि दी गई थी।...बाप रे ! पाँच ?...जै काली ! नीमक कानून के समय इसी पुल के नीचे पुलिस के सिपाहियों ने जाड़े की रात में भोलटियरों को लाकर, पानी में भिंगो-भिंगोकर पीटा था। पानी में डुबो देता था, सिर को हाथ से गोते रहता है। दम फूलने लगता था, नाक में पानी चला जाता था।...वह है इसपिताल। अपने गाँव का इसपिताल तो इसके सामने बुतरू (बच्चा) है...जेहल ? यही जेहल ? जेहल नहीं ससुराल यार हम बिहा करन को जाएँगे...आओ बीरो जेहल भरो।...फुलिया पुरैनियाँ टीसन से ही कुछ ढूँढ़ रही है...खलासी जी तो काला कुरता पहनते हैं।...यह है कचहरी। यहीं कर-कचहरी में लोग मर-मुकदमा करने के लिए आते हैं ! इसी तरह उपसर्ग लगाकर सब बोलते हैं-कर-कचहरी, खर-खजाना, गर-गरामित, घर-घरहट, चर-चुमौना, जर-जमीन, पर-पंचायत, फर-फौजदारी, बर-बारात, मर-मुकदमा या मर-महाजन !

शहर के लोग भी अचरज से इस जुलूस को देख रहे हैं। इनकिलास...जिन्दाबाघ ! ...कचहरी के मोड़ पर, फल की दुकान पर बैठे हुए मौलवी साहब हँसते हैं- “सब कपड़ा लेने आए हैं ! जाओ-जाओ, मिलेगा कपड़ा इन्कलाब बोलता है। मतलब भी समझता - है या..."

झंडा ? बड़ा झंडा आसमान में लहरा रहा है, वही है रामकिसून आसरम। ऐ ! यहाँ सब कोई खड़े हो जाओ। कपड़ा ठिकाने से पहन लो। उस कल के पास जाकर मुँह धो लो। डरते हो काहे ? बालदेव जी हैं। यहाँ से सत्तरबन्दी होकर चलना होगा। बालदेव जी सबसे आगे रहेंगे। सबसे पहले कालीचरन नारा लगाएगा-इनकिलाब; तब तुम लोग एक साथ कहना-जिन्दाबाघ । वैसे गड़बड़ा जाता है। कालीचरन कहेगा-अंग्रेजी राज; तुम लोग कहना-नास हो। लगाओ लारा कालीचरन ! कालीचरन छाती का जोर लगाकर चिल्लाता है-"इनकिलाब !"

“नाश हो, ज़िन्दा...नाश !"

"ऐ ! ठहरो, नहीं हुआ।"

शिवनाथ चौधरी जी, गंगुली जी, शशांक जी, नाथबाबू, सभी आश्चर्य से देखते हैं। चौधरी जी बालदेव पर बड़े खुश हैं। नाथबाबू कहते हैं, “ऐसे ही सभी वरकर अपने फील्ड में वर्क करें तब तो ? दो महीने में इतने गाँव को अकेले ही आरगेनाइज कर लिया है। चवन्निया मेम्बर कितना बनाया है ? पाँच सौ ? तब तो तुम...आप जिला कमिटी के मेम्बर हो गये।" गांगुली जी तो बालदेव को पहले से ही आप कहते हैं, आज नाथबाबू भी आप कहते हैं।

चौधरी जी कहते हैं, “अरे बालदेव, चरखा-सेंटर खुलवाओ। रचनात्मक काम कुछ होता है या नहीं ?"

खादी भंडारवाले छत्तीसबाबू कहते हैं, “खादी भंडार में खाँटी गाय का घी भेजो देहात से बालदेव !"

सचमुच बालदेव जी गियानी आदमी हैं, बड़े आदमी हैं। जिस सीढ़ीवाली चौकी पर बाबू-बबुआन लोग टोपी पहनकर बैठे हैं उसी पर बालदेव जी बैठे हैं।...अरे, वह कौन है ? बौना ? डेढ़ हाथ का आदमी ! देखने में चार साल के लड़के जैसा लगता है। दाढ़ी-मूंछ देखो ! बोली कितनी भारी है ! धुधुक्का (लाउड-स्पीकर का भोंपा) में तो सबों की बोली भारी मालूम होती है। किसी की बोली समझ में नहीं आती है। न जाने कौन देश की बोली बोलता है-हिन्दुस्तान, आजादी और गाँधी जी को छोड़कर और कोई बात नहीं बूझी जाती है...ताली काहे बजाया ? बस, सभा खतम ? मेनिस्टर साहब कहाँ हैं ? कौन ? वही दुबला-पतला, बड़ी-बड़ी मोंचवाला आदमी ? बोलता था एकदम परेम से...आस्ते-आस्ते। माथा की टोपी भी लब्बड़-झब्बड़। उस बार गाँव में दारोगा साहेब आये थे, देखा था ? सारे देह में चमोटी लपेटा हुआ था। मेनिस्टर साहब ऐसे ही हैं ? यह कैसा हाकिम !

कालीचरन कहता है, “मेनिस्टर साहब नहीं, यह रजिन्नरबाबू थे। सुराजी कीर्तन में रोज सुनते हो नहीं...देसवा के खातिर मजरूलहक भइले फकिरवा हो, दीन भेलै रजिन्नरपरसाद देसवासियो।...देस के खातिर अपना सब हक-हिस्सा, जगह-जमीन, मालमवेशी गँवाकर फकीर हो गए।...आहा-हा !...हूँ ! आजकल मेनिस्टर से भी जादे पावरवाला आदमी हैं। ठीक है, होगा नहीं ? देश के खातिर अपना मजरूलहक माने बिलकुल हक खतम कर दिया।..."

चौधरी जी ने बालदेव जी को दस रुपैया का नोट दिया है-“सबों को जलपान करा देना।"

जै, जै ! चलो ! चलो !

कालीचरन कहाँ है ? बासुदेव भी नहीं है। नहीं, नहीं, लौटते समय लारा लगाने की जरूरत नहीं। लेकिन कालीचरन और बासुदेव कहाँ रह गए ? भीड़ में से किसी ने कहा-वे दोनों एक पैजामावाला सुराजीबाबू के साथ न जाने कहाँ जा रहे थे। बोला, कल जाएँगे।...पैजामावाला सुराजीबाबू ? लेकिन बिना पूछे क्यों गया ? सहरवाली बात है। बालदेव जी कालीचरन पर आजकल खुश नहीं, कालीचरन भी आजकल बालदेव जी से अलग-थलग रहता है।

"कालीचरन नहीं, कामरेड कालीचरन। कामरेड माने साथी। हम सभी साथी, आप भी साथी। यहाँ कोई लीडर नहीं। सभी लीडर, सभी साथी हैं।...अच्छा कामरेड, आपके गाँव में सबसे ज्यादे किस जाति के लोग हैं ?...यादव ! ठीक है। भूमिहार ?...एक घर भी नहीं ? गुड ! जुलूस में कितने आदमी थे, सब क्या बालदेव जी से प्रभावित हैं ? माने ब्लाइंड फौलोअर,...यानी आँख मूंदकर विश्वास करनेवाले तो नहीं ? अन्ध-भक्त तो नहीं ?"

“जी, अन्धा भक्त तो महन्थ सेवादास था, सो मर गया। उसकी कोठारिन तो..."

"...ठीक है। अच्छी बात है। आपने सारी बातें समझ लीं न ? मेम्बरी की जिल्द ले जाइए। कुछ लिटरेचर दे दीजिए इनको राजबल्ली जी ! जरा कामरेड सैनिक जी को इधर भेज दीजिएगा।...ये हैं कामरेड गंगाप्रसाद सिंह यादव सैनिक जी, और आप लोग हैं, कामरेड कालीचरन और...क्या नाम ? हाँ, बासुदेव जी। आज मेरीगंज से रामकृष्ण आश्रम में जो जुलूस आया था, इन्हीं लोगों की सर्दारत में। पार्टी प्लेज पर साइन कर दिया है। मेरीगंज में सबसे ज्यादे यादवों की आबादी है। वहाँ आपका जाना ही ठीक होगा। वहाँ आर्गेनाइज करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।..वही, बस बालदेव है एक।...अच्छा कामरेड कालीचरन ! आपको और भी कुछ पूछना है ?" सोशलिस्ट पार्टी के जिला-मन्त्री जी पूछते हैं।

"जी, यदि हम कोई काम करने लगें, दस पबलिक की भलाई का काम, और उसको कोई 'हिंसाबात' कहकर रोके तो हम क्या करेंगे ?" कालीचरन को बस यही पूछना है।

जिला-मन्त्री जी कुछ सोचने लगते हैं। लेकिन कामरेड राजबल्ली जी को कुछ सोचने में समय नहीं लगता; बस, तुतलाने में कुछ देरी लगे तो लगे-“अ-अ-अरे ! काम-काम-रेड, उससे साफ ल-प-लप-लफ्जों में कह दीजिए कि फो-फो-फो-फो ट्टी-टी-टू के मुभमेंट में अहिंसा के भरोसे रहते तो आ-आ-आ-ज ग-ग-द्दी नसीब नहीं होती। उससे साफ लप-लप-लफ्जों में कह दीजिए कि तुम रि-रि-रि-ऐक्शनरी हो ! डि-डि-डि-डिमडिमोर-लाइज्ड हो। यह ले जाइए, 'डा-डा-डा डायले डायलेक्टि...द...द...द...द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद', 'स-स-समाजवाद ही क्यों', दो किताबें। इसमें सबकुछ लिखा हुआ है। 'लाल प-प-पताका' की एक कापी ले जाइए ! इसका ग्राह-ग्राह-आ-ह-ग्राहक बनाइए। लाल झंडा ले लिया है न ?"

लाल झंडा!

उठ मेहनतकश अब होश में आ

हाथ में झंडा लाल उठा,

जुल्म का नामोनिशान मिटा

उठ होश में आ बेदार हो जा!

कॉमरेड कालीचरन और कॉमरेड बासुदेव !...सुशलिंग पाटी!...रास्ते में कालीचरन बासुदेव को समझाता है, “यही पाटी असल पाटी है। गरम पाटी है। 'किरांतीदल' का नाम नहीं सुना था ?...'बम फोड़ दिया फटाक से मस्ताना भगतसिंह,' यह गाना नहीं सुने हो ? वही पाटी है। इसमें कोई लीडर नहीं। सभी साथी हैं, सभी लीडर हैं। सुना नहीं। हिंसाबात तो बुरजुआ लोग बोलता है। बालदेव जी तो बुरजुआ है, पूँजीबाद है।...इस किताब में सबकुछ लिखा हुआ है। बुरजुआ, बेटी दुरजुआ, पूँजीबाद, पूँजीपति, जालिम जमींदार, कमानेवाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो।...अब बालदेव जी की लीटरी नहीं चलेगी। हर समय हिंसाबात, कुछ करो तो बस अनसन।...कपड़ा की मेम्बरी किसी तरह मिल जाए, तब देखना !"

स्टेशन पर बासुदेव जी ने एक किताब खरीदी, सिर्फ एक आने में। 'लाल-किताब' ! एक आदमी झोली में लेकर बेच रहा था-ईशू सन्देश !

दो किताबें हुईं अब-'ईशू सन्देश' और 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' !

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

18 जुलाई 2022
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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

18 जुलाई 2022
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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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