मुसम्मात सुनरी !
टक्का कटपीस-एक गज।
छींट-डेढ़ गज।
मलेछिया साटिन-एक गज।
साड़ी-एक नग।
बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा।
खेलावन यादव के दरवाजे पर खड़े होने को भी जगह नहीं। सुबह से पुर्जी बाँट रहे हैं, दोपहर हो गई।...साड़ी नहीं है !...नहीं ?...बालदेव जी ! हमको एक साड़ी...रौफा की माए एकदम नगन हो गई है बालदेव जी !
बालदेव जी कहते हैं, "देखिए ! मौजे-भर में सिरफ सात साड़ियाँ दी गई थीं। चार फर्दी हैं, वह तो मालिक लोगों के घर में पहनने की चीज है...चौदह रुपए जोड़ी। बाकी तीन साड़ियों को हमने इस तरह बाँट किया है, ऐसे लोगों को दिया है जो एकदम बेपरदे..."
"बेपरदे तो सारा गाँव है बालदेव जी !"
खेलावन यादव कहते हैं, "इतने दिनों से जब कमरुद्दीबाबू पूर्जी बाँटते थे, उस समय गाँव की औरतें बेपरदे और नगन नहीं थीं क्या ? भाई, जितना है उसी में इनसाफ से बाँट-बखरा कर लो।"
कालीचरन जिद्द कर रहा है, पुर्जी पर दो गज छींट और लिख दीजिए: हरमुनियाँ का खोल बनावाएँगे। बालदेव जी नहीं मानते।...आदमी के पहनने के लिए कपड़ा नहीं, हरमुनियाँ-ढोलक को चपकन सिलाकर पहनावेगा ?...देखो तो भला !
बालदेव जी का राह चलना मुश्किल हो गया है। कपड़ा की मेंबरी मिली है कि बलाए है ! दिसा-मैदान जाते समय भी लोग पीछा नहीं छोड़ते हैं।...जायहिन्द बालदेव जी ! आए थे तो आपके ही पास । दुलारी का गौना है।...अच्छा-अच्छा चलिए, हम दिसा से आते हैं।...कपड़ा अब कहाँ है ? रिचरब (रिजर्व) में भी नहीं है। सिरिफ कफन और सराध का कपड़ा है।...उसी में से? कैसे देंगे? कफन और सराध का कपड़ा गौना में ?
बालदेव जी को क्या मालूम कि दुलारी का गौना पाँच साल पहले हो गया है और उसके तीन बच्चे भी हैं।
लछमी दासिन ने रामदास को भेजा था, “आचारज जी आ रहे हैं। आपको तो आजकल छुट्टी ही नहीं रहती है। उधर जाते भी नहीं। कंठी लेने की बात हुई थी?...सो, आपकी क्या राय है ? आचारज जी आ रहे हैं। चादर-टीका के लिए चादर के अलावे पूजा-विदाई के लिए भी एक जोड़ी धोती चाहिए-बिना कोर की, महीन . मारकीन की या ननकिलाठ की धोती।...और कोठारिन जी को भी कपड़ा नहीं है।"
बड़ी मुश्किल है ! रिचरब में थोड़ा कपड़ा है सो सादी-बिहा और सराध के लिए। कैसे दिया जाए ! ओ ! आचारज जी महन्थसाहेब के सराध में ही आए हैं। तब ठीक है।...सिरिमती...नहीं, सिरिमती नहीं। दासिन लछमी कोठारिन-ननकिलाठ, दस गज ! फैन मारकीन, दस गज। चद्दर, एक !
रामदास याद दिला देता है, "लँगोटा-कोपीन के लिए भी एक गज।"
बड़ी मुश्किल है ! बालदेव जी को अब रोज दस-पन्द्रह बार से ज्यादे झूठ बोलना पड़ता है। क्या किया जाए ? बड़ा संकट का काम है।...इधर जिला कांग्रेस की मिटिन भी है। मेनिस्टर साहब आ रहे हैं। गाँव से झंडा-पत्तखा और जत्था भी ले जाना होगा। जिला सिकरेटरी गंगुली जी ने चिट्ठी दी है। परचा भी आया है...।
चलो ! चलो ! पुरैनियाँ चलो ! मेनिस्टर साहब आ रहे हैं। औरत-मर्द, बाल-बच्चा, झंडा-पत्तखा और इनकिलास-जिन्दाबाघ करते हुए पुरैनियाँ चलो !...रेलगाड़ी का टिकस ?...कैसा बेकूफ है ! मेनिस्टर साहब आ रहे हैं और गाड़ी में टिकस लगेगा ? बालदेव जी बोले हैं, मेनिस्टर साहब से कहना होगा, कोटा में बहुत कम कपड़ा मिलता है।...चलो-चलो, पुरैनियाँ चलो। भुरुकवा उगते ही कालीथान के पास जमा होकर जुलूस बनाकर चलो !
"बोलिए एक बार-काली माय की जाये !"
"जाये ! जाये !"
"बोलिए एक बार परेम से-गन्ही महतमा की जै!"
"जाये ! जाये !"
फरर...........र, पेड़ पर घोसलों में सोए हुए पंछी पंख फड़फड़ाकर उड़े। कालीचरन कहता है, यदि गुलेटा रहता तो अँधेरे में भी अभी एक-दो हरियल को मारकर गिरा देते। बासुदेव कहता है-चुप रहो। बालदेव जी ने नहीं सुना, नहीं तो अभी फिर अनसन...।
गिनती करो। कितनी औरत, कितने मरद ? अभी बच्चों को मत लो, झंझट होगा। कालीचरन और गूदर सबों की देह छू-छूकर गिनते हैं। कालीचरन कहता है-पाँच कोरी चार औरत। गूदर हिसाब करता है-चार कोरी दस मरद ।...मातबर लोग काहे जाएगा ? मातबर लोग तो हमेशा गदारी करते हैं।...बालदेव जी ने आज फिर एक नई बात कही-गदारी ! गदारी !...गदारी ?
जुलूस में गाने के लिए बालदेव जी को दो ही गीत याद हैं। एक नीमक कानून के के समय का सीखा हुआ-'आओ बीरो मरद बनो अब जेहल तुम्हें भरना होगा। दूसरा, बियालिस, मोमेंट के समय जेहल में सुना था-'जिन्दगी है किरान्ती की किरान्ती में लुटाए जा। लेकिन यह तो सोशलिस्ट पाटीवाला गाता है।...पुराना ही ठीक है...आओ बीरो मरद बनो...! आज बालदेव जी खुद गाते हैं : सुनरा भी गीत का आखर धरता है :
तन्त्रिमाटोली के मंगलू ततमा को कँपकँपी लग जाती है। जेहल ! अरे बाप !...ये लोग जेहल ले जा रहे हैं। पन्द्रह साल पहले उसको चोरी के केस में सजा हुई थी। जेल के जमादार की पेटी की मार वह आज भी नहीं भूला है। चार हौद (होज) पानी रोज भरना पड़ता था। नहीं !...वह पेशाब करने के बहाने पीछे रह जाता है और नजर बचाकर घर की ओर भागता है। सब पगला गया है !
सहर पुरैनियाँ !...यही है सहर पुरैनियाँ-पक्की सड़क, हवागाड़ी, घोड़ागाड़ी और पक्का मकान !...'एक रत्ती चिनगी चिनगल जाए, सहर पुरैनियाँ लूटल जाए ?...क्या है, बोलो तो?' 'आग !'...गाँव के बच्चे आज भी बुझौवल बुझाते समय शहर पुरैनियाँ का नाम लेते हैं। मेरीगंज के इस जुलूस में चार आदमी ऐसे भी हैं जो शहर पुरैनियाँ पहले भी आए हैं। बहुत तो आज ही पहली बार रेलगाड़ी पर चढ़े हैं। कलेजा धकधक करता है। जिसके हाथ में गन्ही महतमा का झंडा रहता है, उससे गाटबाबू, चिकिहरबाबू, टिकस नहीं माँगता है।...सचमुच में रेलगाड़ी 'जै जै काली छै छै पैसा' कहते हुए दौड़ती है ! जै जै काली ?...यही है कालीपुल। बालदेव जी दिखलाते हैं-यही कालीपुल है। पुल बाँधने के समय पाँच आदमी की बलि दी गई थी।...बाप रे ! पाँच ?...जै काली ! नीमक कानून के समय इसी पुल के नीचे पुलिस के सिपाहियों ने जाड़े की रात में भोलटियरों को लाकर, पानी में भिंगो-भिंगोकर पीटा था। पानी में डुबो देता था, सिर को हाथ से गोते रहता है। दम फूलने लगता था, नाक में पानी चला जाता था।...वह है इसपिताल। अपने गाँव का इसपिताल तो इसके सामने बुतरू (बच्चा) है...जेहल ? यही जेहल ? जेहल नहीं ससुराल यार हम बिहा करन को जाएँगे...आओ बीरो जेहल भरो।...फुलिया पुरैनियाँ टीसन से ही कुछ ढूँढ़ रही है...खलासी जी तो काला कुरता पहनते हैं।...यह है कचहरी। यहीं कर-कचहरी में लोग मर-मुकदमा करने के लिए आते हैं ! इसी तरह उपसर्ग लगाकर सब बोलते हैं-कर-कचहरी, खर-खजाना, गर-गरामित, घर-घरहट, चर-चुमौना, जर-जमीन, पर-पंचायत, फर-फौजदारी, बर-बारात, मर-मुकदमा या मर-महाजन !
शहर के लोग भी अचरज से इस जुलूस को देख रहे हैं। इनकिलास...जिन्दाबाघ ! ...कचहरी के मोड़ पर, फल की दुकान पर बैठे हुए मौलवी साहब हँसते हैं- “सब कपड़ा लेने आए हैं ! जाओ-जाओ, मिलेगा कपड़ा इन्कलाब बोलता है। मतलब भी समझता - है या..."
झंडा ? बड़ा झंडा आसमान में लहरा रहा है, वही है रामकिसून आसरम। ऐ ! यहाँ सब कोई खड़े हो जाओ। कपड़ा ठिकाने से पहन लो। उस कल के पास जाकर मुँह धो लो। डरते हो काहे ? बालदेव जी हैं। यहाँ से सत्तरबन्दी होकर चलना होगा। बालदेव जी सबसे आगे रहेंगे। सबसे पहले कालीचरन नारा लगाएगा-इनकिलाब; तब तुम लोग एक साथ कहना-जिन्दाबाघ । वैसे गड़बड़ा जाता है। कालीचरन कहेगा-अंग्रेजी राज; तुम लोग कहना-नास हो। लगाओ लारा कालीचरन ! कालीचरन छाती का जोर लगाकर चिल्लाता है-"इनकिलाब !"
“नाश हो, ज़िन्दा...नाश !"
"ऐ ! ठहरो, नहीं हुआ।"
शिवनाथ चौधरी जी, गंगुली जी, शशांक जी, नाथबाबू, सभी आश्चर्य से देखते हैं। चौधरी जी बालदेव पर बड़े खुश हैं। नाथबाबू कहते हैं, “ऐसे ही सभी वरकर अपने फील्ड में वर्क करें तब तो ? दो महीने में इतने गाँव को अकेले ही आरगेनाइज कर लिया है। चवन्निया मेम्बर कितना बनाया है ? पाँच सौ ? तब तो तुम...आप जिला कमिटी के मेम्बर हो गये।" गांगुली जी तो बालदेव को पहले से ही आप कहते हैं, आज नाथबाबू भी आप कहते हैं।
चौधरी जी कहते हैं, “अरे बालदेव, चरखा-सेंटर खुलवाओ। रचनात्मक काम कुछ होता है या नहीं ?"
खादी भंडारवाले छत्तीसबाबू कहते हैं, “खादी भंडार में खाँटी गाय का घी भेजो देहात से बालदेव !"
सचमुच बालदेव जी गियानी आदमी हैं, बड़े आदमी हैं। जिस सीढ़ीवाली चौकी पर बाबू-बबुआन लोग टोपी पहनकर बैठे हैं उसी पर बालदेव जी बैठे हैं।...अरे, वह कौन है ? बौना ? डेढ़ हाथ का आदमी ! देखने में चार साल के लड़के जैसा लगता है। दाढ़ी-मूंछ देखो ! बोली कितनी भारी है ! धुधुक्का (लाउड-स्पीकर का भोंपा) में तो सबों की बोली भारी मालूम होती है। किसी की बोली समझ में नहीं आती है। न जाने कौन देश की बोली बोलता है-हिन्दुस्तान, आजादी और गाँधी जी को छोड़कर और कोई बात नहीं बूझी जाती है...ताली काहे बजाया ? बस, सभा खतम ? मेनिस्टर साहब कहाँ हैं ? कौन ? वही दुबला-पतला, बड़ी-बड़ी मोंचवाला आदमी ? बोलता था एकदम परेम से...आस्ते-आस्ते। माथा की टोपी भी लब्बड़-झब्बड़। उस बार गाँव में दारोगा साहेब आये थे, देखा था ? सारे देह में चमोटी लपेटा हुआ था। मेनिस्टर साहब ऐसे ही हैं ? यह कैसा हाकिम !
कालीचरन कहता है, “मेनिस्टर साहब नहीं, यह रजिन्नरबाबू थे। सुराजी कीर्तन में रोज सुनते हो नहीं...देसवा के खातिर मजरूलहक भइले फकिरवा हो, दीन भेलै रजिन्नरपरसाद देसवासियो।...देस के खातिर अपना सब हक-हिस्सा, जगह-जमीन, मालमवेशी गँवाकर फकीर हो गए।...आहा-हा !...हूँ ! आजकल मेनिस्टर से भी जादे पावरवाला आदमी हैं। ठीक है, होगा नहीं ? देश के खातिर अपना मजरूलहक माने बिलकुल हक खतम कर दिया।..."
चौधरी जी ने बालदेव जी को दस रुपैया का नोट दिया है-“सबों को जलपान करा देना।"
जै, जै ! चलो ! चलो !
कालीचरन कहाँ है ? बासुदेव भी नहीं है। नहीं, नहीं, लौटते समय लारा लगाने की जरूरत नहीं। लेकिन कालीचरन और बासुदेव कहाँ रह गए ? भीड़ में से किसी ने कहा-वे दोनों एक पैजामावाला सुराजीबाबू के साथ न जाने कहाँ जा रहे थे। बोला, कल जाएँगे।...पैजामावाला सुराजीबाबू ? लेकिन बिना पूछे क्यों गया ? सहरवाली बात है। बालदेव जी कालीचरन पर आजकल खुश नहीं, कालीचरन भी आजकल बालदेव जी से अलग-थलग रहता है।
"कालीचरन नहीं, कामरेड कालीचरन। कामरेड माने साथी। हम सभी साथी, आप भी साथी। यहाँ कोई लीडर नहीं। सभी लीडर, सभी साथी हैं।...अच्छा कामरेड, आपके गाँव में सबसे ज्यादे किस जाति के लोग हैं ?...यादव ! ठीक है। भूमिहार ?...एक घर भी नहीं ? गुड ! जुलूस में कितने आदमी थे, सब क्या बालदेव जी से प्रभावित हैं ? माने ब्लाइंड फौलोअर,...यानी आँख मूंदकर विश्वास करनेवाले तो नहीं ? अन्ध-भक्त तो नहीं ?"
“जी, अन्धा भक्त तो महन्थ सेवादास था, सो मर गया। उसकी कोठारिन तो..."
"...ठीक है। अच्छी बात है। आपने सारी बातें समझ लीं न ? मेम्बरी की जिल्द ले जाइए। कुछ लिटरेचर दे दीजिए इनको राजबल्ली जी ! जरा कामरेड सैनिक जी को इधर भेज दीजिएगा।...ये हैं कामरेड गंगाप्रसाद सिंह यादव सैनिक जी, और आप लोग हैं, कामरेड कालीचरन और...क्या नाम ? हाँ, बासुदेव जी। आज मेरीगंज से रामकृष्ण आश्रम में जो जुलूस आया था, इन्हीं लोगों की सर्दारत में। पार्टी प्लेज पर साइन कर दिया है। मेरीगंज में सबसे ज्यादे यादवों की आबादी है। वहाँ आपका जाना ही ठीक होगा। वहाँ आर्गेनाइज करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।..वही, बस बालदेव है एक।...अच्छा कामरेड कालीचरन ! आपको और भी कुछ पूछना है ?" सोशलिस्ट पार्टी के जिला-मन्त्री जी पूछते हैं।
"जी, यदि हम कोई काम करने लगें, दस पबलिक की भलाई का काम, और उसको कोई 'हिंसाबात' कहकर रोके तो हम क्या करेंगे ?" कालीचरन को बस यही पूछना है।
जिला-मन्त्री जी कुछ सोचने लगते हैं। लेकिन कामरेड राजबल्ली जी को कुछ सोचने में समय नहीं लगता; बस, तुतलाने में कुछ देरी लगे तो लगे-“अ-अ-अरे ! काम-काम-रेड, उससे साफ ल-प-लप-लफ्जों में कह दीजिए कि फो-फो-फो-फो ट्टी-टी-टू के मुभमेंट में अहिंसा के भरोसे रहते तो आ-आ-आ-ज ग-ग-द्दी नसीब नहीं होती। उससे साफ लप-लप-लफ्जों में कह दीजिए कि तुम रि-रि-रि-ऐक्शनरी हो ! डि-डि-डि-डिमडिमोर-लाइज्ड हो। यह ले जाइए, 'डा-डा-डा डायले डायलेक्टि...द...द...द...द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद', 'स-स-समाजवाद ही क्यों', दो किताबें। इसमें सबकुछ लिखा हुआ है। 'लाल प-प-पताका' की एक कापी ले जाइए ! इसका ग्राह-ग्राह-आ-ह-ग्राहक बनाइए। लाल झंडा ले लिया है न ?"
लाल झंडा!
उठ मेहनतकश अब होश में आ
हाथ में झंडा लाल उठा,
जुल्म का नामोनिशान मिटा
उठ होश में आ बेदार हो जा!
कॉमरेड कालीचरन और कॉमरेड बासुदेव !...सुशलिंग पाटी!...रास्ते में कालीचरन बासुदेव को समझाता है, “यही पाटी असल पाटी है। गरम पाटी है। 'किरांतीदल' का नाम नहीं सुना था ?...'बम फोड़ दिया फटाक से मस्ताना भगतसिंह,' यह गाना नहीं सुने हो ? वही पाटी है। इसमें कोई लीडर नहीं। सभी साथी हैं, सभी लीडर हैं। सुना नहीं। हिंसाबात तो बुरजुआ लोग बोलता है। बालदेव जी तो बुरजुआ है, पूँजीबाद है।...इस किताब में सबकुछ लिखा हुआ है। बुरजुआ, बेटी दुरजुआ, पूँजीबाद, पूँजीपति, जालिम जमींदार, कमानेवाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो।...अब बालदेव जी की लीटरी नहीं चलेगी। हर समय हिंसाबात, कुछ करो तो बस अनसन।...कपड़ा की मेम्बरी किसी तरह मिल जाए, तब देखना !"
स्टेशन पर बासुदेव जी ने एक किताब खरीदी, सिर्फ एक आने में। 'लाल-किताब' ! एक आदमी झोली में लेकर बेच रहा था-ईशू सन्देश !
दो किताबें हुईं अब-'ईशू सन्देश' और 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' !