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भाग 41

18 जुलाई 2022

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नौ आसामी का चालान कर दिया।

नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है।

गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।...लेकिन, यह मत समझो कि मुफ्त में यह काम हुआ है।...दारोगा साहब कहने लगे कि खेलावन जी, आपके बारे में एस.पी. साहब को सन्देह हो गया है कि आपने सभी यादवों को हँसेरी में जाने के लिए जरूर हुकुम दिया होगा।...खेलावन जी की हालत खराब हो गई। वह तो तहसीलदार भाई थे, तो पाँच हजार पर बात टूट गई। नहीं तो...नहीं तो अभी बड़े घर की हवा खाते रहते खेलावन जी ! सिंघ जी घर में नहीं थे; शिवशक्करसिंह भी नहीं। अब सिंघ जी लोगों के मन में क्या है सो कौन जाने ?...दरोगा भी तो राजपूत ही है। आदमी के मन का कुछ ठिकाना नहीं, कब क्या करे।...मुफ्त में सबकी गर्दन नहीं छूटी है। पाँच हजार !

तहसीलदार बिस्नाथ को कुछ लगा कि नहीं ?...सुमरितदास बेतार को आज तीन दिनों से पेट में सूल हो गया है, नहीं तो सब बात कह जाता।...अरे ! बहुत दिनों जिएँगे सुमरितदास जी ! बहुत उमेर है !"

"तो हमारा उमेर तुम लोग क्या लगाते हो ?"

“यही चालीस।"

"चालीस नहीं पैंतीस।...जामुन का सिरका बिना पानी के पी गए थे, इसीलिए दाँत सब झड़ गए।"

“अच्छा सुमरितदास जी, कुछ पता है कि...?"

"अरे ! यह मत समझो कि सुमरितदास सूल से घर में पड़ा हुआ था। रामझरोखे बैठके सबका मुजरा लें...। पूछो, क्या जानना चाहते हो ?"

“क्या तहसीलदार साहेब को भी रुपैया लगा है ?"

"तहसीलदार बिस्नाथपरसाद को इतना बेकूफ नहीं समझना। वह दारोगा तो यह तहसीलदार। 'तुम कौआ तो हम कैथ' वाली कहानी नहीं सुने हो ?"

"तहसीलदार हरगौरी बेचारा..."

"अति संघर्ष करे जो कोउ, अनल प्रगट चन्दन ते होहिं ! सियावर रामचन्द्र की जै!"

"लेकिन राजपूतटोले को तो इसपी साहेब भी नहीं छोड़ सकते हैं। जानते हो इसपी साहेब क्या कहते थे ? '...यह समझ में नहीं आता है कि तहसीलदार बिस्नाथपरसाद की जमीन से बीहन बचाने के लिए तहसीलदार हरगौरीसिंह क्यों गए ! जरूर कोई बात है !'...सिंघजी को एक चरन लगेगा।"

"गवाही में किन लोगों के नाम हैं?"

"अरे, गवाही क्या ? बोलो तुम्हीं, ईमान-धरम से कि संथाल लोग ने जोर-जबर्दस्ती किया है या नहीं ?"

“इसमें क्या सन्देह है !"

“तो गवाही के लिए कोई बात नहीं।...लेकिन गाँव की तकदीर चमकी है। इतना बड़ा केस कभी हाथ नहीं लगेगा। इसमें जो गवाही देने जाएगा, उसके तो तीन-तीन खिलानेवाले रहेंगे। तीनों एक ही केस में नत्थी हैं। समझे ? खबरदार ! मेरा नाम नहीं लेना। हाँ !...और मेरा भी तो फैसला नहीं हुआ है। हमको क्या देते हैं लोग ? जितना कागज-पत्तर, लिखा-पढ़ी होगी, सब तो सुमरितदास के मत्थे पड़ेगा। लेकिन इस बार नहीं। पहले फैसला कर लें।"

“संथालों में किस-किसकी गवाही हुई है ?"

“अरे, संथालटोली में गवाह आवेगा कहाँ से, सभी तो आसामी हैं। बड़का माझी का बारह साल का बेटा भी।...दारोगा जी ने जब पूछा कि बताओ क्यों बीचड़ लूट रहे थे, तो बिरसा ने जवाब दिया कि हम लगाया है। इसके बाद, दारोगा जी ने झाड़-झपटके पूछा तो बिरसा के बाद सबों ने तुरन्त कबूल कर लिया कि बीचड़ तहसीलदार बिस्नाथपरसाद का है। औरतों और बच्चों ने भी कहा-तहसीलदार का बीचड़ है। तब ? उखाड़ता था जबर्दस्ती क्यों तुम लोग ? तो जवाब दिया कि जमींदारी परथा खत्तम हो गई, लेकिन हमारे गाँव के जमींदारों ने मिलकर हमारी जमीन छुड़ा ली है। इसीलिए लूट लिया।..."

"हा-हा-हा-हा ! साफ जवाब ! जमीन छुड़ा लिया तो बीहन लूट लिया ! हा-हा-हा ! सच ? काली किरिया ! ऐसा ही जवाब दिया ?"

“नहीं तो तुम समझते हो कि सुमरितदास झूठ कहता है ? अरे, यदि संथालों ने ऐसा बयान नहीं दिया होता तो क्या समझते हो, तुम लोग अभी घर में बैठकर हा-हा ही-ही करते ? अभी जेहलखाना में कोल्हू पेड़ते रहते। समझे ! दारोगा जी ने भी सोचा कि आग लगते झोंपड़ा, जो मिले सो लाभ !...इसीलिए न कहा कि तहसीलदार इतना बेकूफ नहीं। तब, दारोगा जी का इलाका है, जो ऊपरी झाड़-झपड़, पान-सुपाड़ी वसूल सकें। इसमें तहसीलदार साहेब क्या कर सकते हैं ?...सिंघ जी को पाँच हजार और शिवशक्करसिंह को भी उतना ही लगेगा।...डागडर से भी कुछ पूछा है दारोगा साहब ने। पता नहीं, अंग्रेजी में क्या डिमडाम बात हुई। इसपी साहेब से भी डागडर साहेब अंग्रेजी में ही बोल रहे थे। आदमी काबिल है यह डागडर !...हरेक लहास के बारे में क्या लिखा है, जानते हो ? लिखा है कि संथालों की मार से मालूम होता है और घाव के मुँह देखकर मालूम होता है कि किसी ने अपनी जान बचाने के लिए ही इस पर हमला किया है।...और, इधरवालों के लहास को लिखा...।"

"...लहास ?"

....लहास ! लाश ! पुलिस-दारोगा, मलेटरी ! मार ! जेहल !...कालापानी ! नहीं, फाँसी !...सचमुच ! यदि तहसीलदार बिस्नाथपरसाद नहीं होते तो आज फाँसी !... कालीचरन के आफिस में जाने से और बातों का पता लग जाएगा।

सोशलिस्ट पार्टी के आफिस में भीड़ लगी हुई है। कालीचरन ने कहा है, आज सुरा जी, सोशलिस्ट और भगवान कीर्तन एक साथ गाए जाएंगे। सबसे पहले पुराने जमाने का कीर्तन नारदी-भठियाली कीर्तन होगा। बूढ़े लोगों के गले में अब भी जादू है !

आजु से बिराजु श्याम कदली के छैयाँ,

आवत मोहनलाल बंशी बजैयाँ !

पीतबसन मकराकृत कुंडल...!

यही नारदी है ! मृदंग कैसा बजता है-धिधनक-तिधनक ! धिधनक-तिधनक !

"अब किरांती कीर्तन। '...गंगा रे जमुनवाँ' बहुत पुराना हो गया। वह रुलानेवाला कीर्तन मत गवाइए कालीचरन जी !..."

बम फोड़ दिया फटाक से मस्ताना भगतसिंह !

....है ! वाह रे सुनरा ! क्या सँभाला है ! वाह ! भारत का वीर लड़ाका था, मस्ताना भगतसिंघ ! “सिंघ ? भगतसिंघ कौन बता कौन जात था ?

मस्ताना भगतसिंघ जानते हो ? “कालीचरन जी कहते थे, पाँच बार फाँसी की रस्सी खींचा । दस-दस आदमी एक-एक ओर लटक गए। खींचने लगे, खींचते रहे और उधर भगतसिंघ के मुँह से निकलता जाता था-इनकिलाब, जिंदाबाघ ।

“इनकिलाब, जिंदाबाद ?”

हाँ, आज, कौन इतने जोरों से नारा लगा रहा है ? सोमा जट ? “अरे बाप ! तीन दिन से एकदम लापता था ! एकदम लापता ! लेकिन जानते हो, हँसेरी में सबसे ज्यादा मार किसने किया था ? चार को सोमा ने अकेले गिराया है।-हाँ खबरदार ! तहसीलदार साहेब ने मना किया है, सोमा का नाम कोई नहीं ले | दागी है ! लेकिन, देखते हैं, इधर सुधर रहा है। कालीचरन जी सुधार देंगे।

अब एक सुराजी कीर्तन होना चाहिए। हाँ, भाई ! सब संतन की जै बोलो | गाँव के देवताओं के परताप से, काली माय की कृपा से, महात्मा जी की दया से और किरांती 'इनकिलास जिंदाबाघ' से, गाँव के लोग बालबाल बच गए। सभी कीर्तन होना चाहिए।

भारत का डंका लंका में

बजवाया बीर जगाहिर ने

राजबलली महतो भी हरमुनिया बजाता है। कहाँ सीखा ? “सिरिफ दाँत बड़े हैं सामनेवाले । गाने के समय मुँह कुदाली की तरह हो जाता है। “ भारथ का डंका लंका में-

“बालदेव जी कहाँ हैं ? सुना कि बालदेव जी साधु हो रहे हैं। कंठी ले ली है। कंठी पर किसका नाम जपा करेंगे ? महतमा जी का या सतगुरु का ?

चर्खा स्कूल की मास्टरनी जी कितना मुटा गई हैं ! अरे बाप रे ! ...सिर्रिफि कालीचरन जी से ही हँसकर बोलती हैं। कालीचरन जी आज कुर्ता में गोल-गोल क्या लगाए हुए हैं ? सुसलिट पाटी का मोहर है ? ...देखा, कालीचरन जी मोहरवाले लीडर हो गए हैं। बालदेव जी को, बावनदास को या तहसीलदार साहब को मोहर है ? मास्टरनी जी उसमें क्‍या लगा रही हैं ? फूल ? वाह ! अब और बना ! फूलमोहर छाप सिकरेट ! ...डाकडर साहब का नौकर कहाँ आया है ! ..ऐ ! चुप रहो ! चुप रहो ! शांती, शांती !”

“कालीचरन जी को डाक्टरबाबू बुलाते हैं,” प्यारू मंगलादेवी से कहता है। अज्जा ! काली ! डाक्टरबाबू को निमंत्रण नहीं दिया ? तहसीलदार साहेब, खेलावन जी वगैरह तो कचहरी गए हैं। डाक्टर साहेब तो थे। “जाओ, बुला रहे हैं -

क्या बात है ?- जरूर कोई बात है। -सुमरितदास बेतार कहाँ है ?

एक बार बोलिए प्रेम से-

काली माई की जै !

महात्मा गाँधी की जै

सोसलिट पाटी की जै

इनकिलास

“कालीचरन जी !”

“जी !!

“एक बात कहूँ ! बुरा मत मानिएगा। “हरगौरी बाबू की माँ रो रही है और दूसरे टोले में भी औरतें रो रही हैं। आप लोग कीर्तन कर रहे हैं, यह अच्छा नहीं लग रहा है। मुझे लगता है कि आज के कीर्तन से आपके भगवान भी दुखी होंगे ।”

“हम लोग भगवान को नहीं मानते,” कामरेड बासुदेव ने बीच में ही टोक दिया ।

“तुम चुप रहो !” कालीचरन कहता है, “हर जगह मत टपका करो |”

सब चुप हैं। हरगौरी की माँ अब भी रो रही है-राजा बेटा रे ! गौरी बेटा रे!

कालीचरन की आँखें भी सजल हो जाती हैं। बचपन से ही वह हरगौरी के साथ खेला-कूदा था। पूँजीवादी हो या बूर्जुआ, आखिर वह बचपन का साथी था। वह आज नहीं है। उसकी माँ रो रही है। यह हरगौरी की माँ नहीं रो रही है-सिर्फ माँ रो रही है !

“वासुदेव !”

“सबों से जाकर कहो-कीर्तन बंद करें । और कोठी के बगीचे में कल सोक-सभा होगी। ऐलान कर दो। समझे !”

बासुदेव सोचता है, सब बात तो समझे, मगर सोक-सभा का क्‍या मतलब ? उसमें गीत नहीं गावेगा, भाखन नहीं होगा ? बस, पाँच मिनट चुपचाप खड़ा रहना होगा ? वाह रे सभा !

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

18 जुलाई 2022
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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

18 जुलाई 2022
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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

18 जुलाई 2022
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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

18 जुलाई 2022
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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

18 जुलाई 2022
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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

18 जुलाई 2022
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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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