shabd-logo

भाग 3

22 जुलाई 2022

54 बार देखा गया 54

ऐसी मुसीबत में रघुनाथ को किसी और ने नहीं, उन्हीं के बेटों ने डाला था!

बेटों में भी संजय ने! खास तौर से संजय ने!

और यह लंबी कहानी है - राँची से केलिफोर्निया तक फैली।

संजय ने प्यार किया था सोनल को! यह प्यार किसी सड़कछाप टुच्चे युवक का दिलफेंक प्यार नहीं था, इसमें गुणा भाग भी था और जोड़ घटाना भी! जितना गहरा था, उतना ही व्यापक! सोनल संजय के प्रोफेसर सक्सेना की इकलौती बेटी थी! थ्रूआउट फर्स्ट क्लास, नेट और दर्शन से पीएचडी। नौकरी तो पक्की थी बनारस के विश्वविद्यालय में जहाँ उसके मामा कुलपति थे - लेकिन उसमें अभी देर थी; तब तक शादी का इंतजार था!

शादी के आड़े आ रहे थे उसके ओठों से बाहर आ गए दाँत और चिपटी नाक जिनकी क्षतिपूर्ति वह अपने सर्टिफिकेट से करती थी! रही सही कसर पूरी कर रही थी सक्सेना की फैलाई हुई यह अफवाह - कि उन्हें एक ऐसे जहीन साफ्टवेयर इंजीनियर युवक की जरूरत है जो एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी के तीन साल के कंट्रैक्ट पर केलिफोर्निया जा सके। इस जरूरत का मतलब पूरा इंस्टीट्यूट समझता था।

संजय फाइनल की परीक्षा दे चुका था, रिजल्ट की घोषणा बाकी थी!

इधर कई बार माँ बाप का संदेश आया था कि आओ, लड़की देख जाओ!

लड़की क्या देखना, वह देखी भाली थी! रघुनाथ जिस कालेज में पढ़ाते थे, उसी के मैनेजर और पूर्व विधायक की बेटी थी! गोरी, लंबी, सुंदर, आकर्षक। एम.ए.। अच्छी हाउसवाइफ! मैनेजर पुराने जमाने के जमींदार, अथाह संपत्ति के स्वामी! रघुनाथ की कोई हैसियत नहीं थी उनके आगे। न कायदे का घर दुआर, न जमीन जायदाद। आठ बीघे खेत और एक हल की खेती! बचपन और जवानी तंगहाली में गुजारी थी। बच्चों को पढ़ाया भी तो खेत रेहन रख कर और कालेज से लोन ले कर। जाहिर है, मैनेजर ने 'साफ्टवेयर इंजीनियर' देखा था, अपने कालेज के मास्टर रघुनाथ को नहीं।

यह संबंध सपने से भी आगे की चीज था रघुनाथ के लिए। फायदे ही फायदे थे इससे! जनपद में पहचान और प्रतिष्ठा जो मिलती, सो अलग! वे क्या से क्या होने जा रहे थे!

तो, गाँव आने से पहले सक्सेना सर से विदा लेने गया था संजय!

इसे यों भी कह सकते हैं कि उसे डिनर पर बुलाया था सक्सेना सर ने!

गर्मी की शाम! अपने लान में सक्सेना बेंत की कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे। माली गमलों में पानी दे रहा था। बँगले के अंदर की बत्तियाँ जल रही थीं। किसी कमरे से संगीत की धुन आ रही थी! रिटायरमेंट के करीब, दिल के मरीज प्रो. सक्सेना संजय की मौजूदगी से बेखबर चुपचाप बैठे थे और सामने देख रहे थे। काफी देर बाद उन्होंने पूछा - 'कौन-सा इंस्ट्रुमेंट है?'

संजय ने नासमझी में सिर हिलाया!

'और राग? कौन-सा राग है?'

संजय निरुत्तर, फिर सिर हिलाया!

वे मुसकराए और ऊँची आवाज में पुकारा - 'सोनू!'

जींस की पैंट और टी शर्ट में उछलती हुई सोनल आई - ' हाँ, पापा!'

संजय खड़ा हो गया। सक्सेना मुसकराए, पहले संजय को देखा, फिर सोनल को! सोनल भी मुसकराई। संजय सोनल से मिला तो कई बार था, लेकिन देखा पहली बार। उसे लगा कि किसी लड़की को टुकड़ों में नहीं, 'टोटैलिटी' में देखना चाहिए! कितना फर्क पड़ जाता है? साथ ही लड़की और पत्नी को एक ही तरह से नहीं देखना चाहिए। रूप रंग, हाव भाव, नाज नखरे लड़की में देखे जाते हैं, पत्नी में नहीं! ये सब पुराने कंसेप्शन हुए - हमारे पापा मम्मी के जमाने के, हमारे नहीं!

सक्सेना ने चुप्पी तोड़ी - 'यह है सोनल! जिसमें मेरे प्राण बसते हैं। सितार, सरोद, संतूर - माने सोनल। सोनल माने संगीत। चीपनेस इसे पसंद नहीं। फिल्मी गानों को संगीत नहीं मानती! शायद इसलिए कि खुद कथक की डांसर रही है! खैर, तो क्या खिला रही हो हम लोगों को भाई?'

'वह तो तभी पता चलेगा जब खाएँगे!' सोनल शरमा कर भाग गई!

'बैठो संजू!' कहते हुए सक्सेना भी बैठ गए - सिर झुकाए। कुछ सोचते! भर्राए स्वर में बोले - 'कैसे रहूँगा इसके बगैर? रहूँगा कैसे, समझ में नहीं आता। चौदह साल की थी जब माँ गुजरी थी इसकी!'

इसके बाद उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे - 'तीन चार साल से लगातार आते रहे हैं लड़के। एक से एक। तुम्हारे सीनियर भी, क्लासफेलो भी! लेकिन बेटा, भारी संकट में हूँ। तुम्हीं उबार सकते हो इससे! पिछले साल ही कहा था इसने कि शादी करूँगी तो संजय से। नहीं तो जरूरी नहीं है शादी। अपने अंदर छिपाए रहा इस बात को। आज कह रहा हूँ वह भी इसलिए कि फैसले की घड़ी आ गई है! तीन ही चार महीने का समय है केलिफोर्निया जाने का। इसी बीच शादी है, एयर टिकट है, पासपोर्ट है, वीजा है, सारी तैयारियाँ हैं। सोनल अमेरिका और हनीमून को ले कर उत्साहित है।'

उन्होंने आँखें पोंछीं और संजय को देखा - 'हर बाप के सपने होते हैं। मेरे भी हैं। न होते तो सैंट्रो कार क्यों लेता? अपने लिए फिएट तो थी ही! नई घर गृहस्थी के सामान क्यों जुटाता? तुम्हारे ही नगर में एक कालोनी है - 'अशोक विहार'। उसमें एक छोटा-सा बँगला बनवाया है! सब कुछ कंप्लीट है, बस फिनिशिंग बाकी है। सोचा था कि यहाँ से रिटायर करूँगा तो 'काशी वास' करूँगा! हर आदमी यह चाहता है। तुम्हारे पापा मम्मी भी चाहते होंगे। लेकिन सोचता हूँ कल सोनल विश्वविद्यालय में ज्वाइन करेगी, तो कहाँ रहेगी? मेरा तो सारा जीवन राँची में बीता, सारे दोस्त-मित्र, रिश्ते-नाते यहीं हैं, वहाँ जा कर क्या करेंगे? सो, बँगला उसी के नाम ट्रांसफर कर दे रहा हूँ।'

संजय चिंतित। उसकी आँखों में पापा मम्मी के चेहरे घूम रहे थे। उसे लगने लगा था कि उसने उन्हें 'हाँ' करने में जल्दी कर दी थी! बोला - 'बहुत देर कर दी सर, सोनल का मन बताने में!'

'देर सबेर कुछ नहीं होता संजू, हर चीज का समय होता है! अब यही देखो, मेरे साले प्रो. अस्थाना को बनारस में ऐसे ही वक्त पर कुलपति क्यों होना था जब सोनल थीसिस जमा कर रही थी!' उन्होंने सिगरेट सुलगाई - 'ऐसे तो सिगरेट मना है लेकिन कभी-कभी एक दो कश ले लेता हूँ!.... तो तुम्हारे पापा, उनकी परेशानियाँ समझ सकता हूँ। बताते रहे हो उनके बारे में। अभी तक बहन अविवाहित है, परेशान हैं उसकी शादी को ले कर। छोटा भाई है तुम्हारा, पिछले तीन चार साल से 'कैट' 'मैट' दे रहा है, लोक सेवा आयोग के टेस्ट दे रहा है और किसी में नहीं आ रहा है - उसकी परेशानी! बाई द वे, मेरी तो सलाह है कि वह फ्रस्ट्रेटेड हो कर कुछ कर बैठे इससे पहले किसी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में एडमीशन करा दो। ऐसे नहीं, तो डोनेशन दे कर! अरे, कितना लगेगा - डेढ़ लाख? दो लाख? और क्या? तुमने बताया था कि तुम्हारी पढ़ाई के लिए लोन भी लेते रहे हैं, रेहन भी रखे हैं खेत - इन सारी परेशानियों से निपटने के लिए कितने की जरूरत होगी उन्हें? उनसे बतिया कर तो देखो। क्या चाहते हैं वे? कितना चाहते हैं? देखो, बारात, धूम-धाम, बाजा-गाजा - ये सब फालतू की चीजें हैं। कोई जरूरत नहीं इस दिखावे और तमाशे की। शादी के लिए कोर्ट है और दोस्त मित्रों के लिए रिसेप्शन। यह मैं कर ही दूँगा, फिर? .....ऐसे एक बात बता दूँ, जिस कंपनी में और जिस कंट्रैक्ट पर अमरीका जाना है, उससे तीन साल में कोई भी इतना कमा लेगा कि अगर उसका बाप चाहे तो गाँव का गाँव खरीद ले। समझे?

'सवाल यह नहीं है सर, पिता जी लोक-लाज, जात-पात में विश्वास करनेवाले जरा पुराने खयालों के आदमी हैं'|

सक्सेना गंभीर हो गए। कुछ देर तक चुप रहे। इसी बीच सोनल साड़ी में आई - खाने पर बुलाने - 'देखो संजू! 'ला आफ ग्रेविटेशन' का नियम केवल पेड़ों और फलों पर ही नहीं लागू होता, मनुष्यों और संबंधों पर भी लागू होता है। हर बेटे बेटी के माँ बाप पृथ्वी हैं। बेटा ऊपर जाना चाहता है - और ऊपर, थोड़ा सा और ऊपर, माँ बाप अपने आकर्षण से उसे नीचे खींचते हैं। आकर्षण संस्कार का भी हो सकता है और प्यार का भी, माया मोह का भी! मंशा गिराने की नहीं होती, मगर गिरा देते हैं! अगर मैंने अपने पिता की सुनी होती तो हेतमपुर में पटवारी रह गया होता! तो यह है! मुझे जो कहना था, कह चुका। तुम्हें जो ठीक लगे, करो! हाँ, जाने से पहले सोनल से भी बात कर लेना!'

29
रचनाएँ
रेहन पर रग्घू
0.0
रेहन पर रग्घू प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया मे जो निर्मम ध्वंस हुआ है- तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है- उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है रेहन पर रग्घू। यह उपन्यास वस्तुतः गांव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे है समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है। उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक। अचानक कुछ ऐसा यथार्थ इतना महत्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय कोमल अच्छी चीजें टूटने बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में आख्तियार किया गया वह न केवल विलक्षण और अचूक है बल्कि रेहन पर रग्घू को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है
1

भाग 1

22 जुलाई 2022
2
0
0

जनवरी की वह शाम कभी नहीं भूलेगी! शाम तो मौसम ने कर दिया था वरना थी दोपहर! थोड़ी देर पहले धूप थी। उन्होंने खाना खाया था और खा कर अभी अपने कमरे में लेटे ही थे कि सहसा अंधड़। घर के सारे खुले खिड़की दरवा

2

भाग 2

22 जुलाई 2022
0
0
0

पहाड़पुर में रघुनाथ एक ही थे। वैसे कहने को तो रामनाथ, शोभनाथ, छविनाथ, शामनाथ, प्रभुनाथ वगैरह वगैरह भी थे लेकिन वे रघुनाथ नहीं थे। और रघुनाथ का यह था कि वे जब कभी जहाँ कहीं नजर आ जाते, गाँव घर के लोग

3

भाग 3

22 जुलाई 2022
0
0
0

ऐसी मुसीबत में रघुनाथ को किसी और ने नहीं, उन्हीं के बेटों ने डाला था! बेटों में भी संजय ने! खास तौर से संजय ने! और यह लंबी कहानी है - राँची से केलिफोर्निया तक फैली। संजय ने प्यार किया था सोनल को! य

4

भाग 4

22 जुलाई 2022
0
0
0

जुलाई में शादी हो गई चिरंजीवी संजय और आयुष्मती सोनल की - कोर्ट में। न बारात, न बाजा-गाजा! प्रीतिभोज के लिए न्यौता आया था रघुनाथ के नाम भी, पर वे नहीं गए! ऐसी चोट लगी थी रघुनाथ और शीला को जिसे न वे

5

भाग 5

22 जुलाई 2022
0
0
0

सरला दुविधा में थी - ब्याह करे या न करे? पक्का सिर्फ इतना था कि उसे वह शादी नहीं करनी है जो पापा तय करेंगे! कई लोचे थे उसकी दुविधा में! अब से कोई सात आठ साल पहले। उसने अपने अंदर कुछ अजब सा बदलाव मह

6

भाग 6

22 जुलाई 2022
0
0
0

सरला के इस दुःस्वप्न को और भी बदरंग बना दिया था उसकी पड़ोसिनों ने! वह जिस बहुमंजिली इमारत के प्रथम तल के किराए के फ्लैट में रहती थी, उसके अगल बगल भी दो दो छोटे कमरों के फ्लैट थे। उनमें उसी के स्कूल क

7

भाग 7

22 जुलाई 2022
0
0
0

जिस दिन मैनेजर कालेज आए उस दिन रघुनाथ गाजीपुर गए थे - सरला के लिए लड़का देखने! बीसेक रोज बाद फिर मैनेजर कालेज आए, अबकी फिर रघुनाथ बाहर। आजमगढ़ गए थे लड़का देखने। यह पाँचवाँ या छठा साल था! शादी हाथ म

8

भाग 8

22 जुलाई 2022
0
0
0

सरला घर आई - छुट्टी के दिन। रविवार को। पहले वह अकसर आती थी। शनिवार की शाम को आती थी, रविवार को रहती थी और सोमवार को तड़के चली जाती थी! मिर्जापुर से घर की दूरी है ही कितनी? बीच में बनारस में एक बस बदल

9

भाग 9

22 जुलाई 2022
0
0
0

सरला चली तो गई, लेकिन रघुनाथ का सुकून और चैन लिए गई। रघुनाथ कई रातों तक सो नहीं सके! उन्हें नींद ही नहीं आ रही थी! जाने किन जन्मों का पाप था जो इस जन्म में भोग रहे थे। बच्चों को ऐसे संस्कार कहाँ से म

10

भाग 10

22 जुलाई 2022
0
0
0

काफी समय लग गया रघुनाथ को घर पर रहने की आदत डालने में। वे रहे तो गाँव में ही, लेकिन गाँव के नहीं रहे। गाँव ही वह नहीं रहा तो वह गाँव के क्या रहते ? पहाड़पुर जाना जाता था अपने बगीचों, बँसवार और पोखर क

11

भाग 11

22 जुलाई 2022
0
0
0

रात घिर आई थी। गाँव में सन्नाटा पसरा था। हलकी-हलकी झीसियाँ पड़ रही थीं! सिवान मेढकों की टर्र-टर्र और झींगुरों के झन्न्‌-झन्न्‌ से गूँज रहा था। ट्रैक्टर के काम शुरू कर देने के बावजूद ठाकुर हारा हुआ मह

12

भाग 12

22 जुलाई 2022
0
0
0

पहलवान माने छब्बू पहलवान। पहाड़पुर के ही दक्खिनी हिस्से में घर था बजरंगी सिंह का। वे छब्बू पहलवान के नाम से जाने जाते थे इलाके में। गाँव का नाम दूर-दूर तक रोशन किया था उन्होंने! दंगलों में जहाँ-जहाँ

13

भाग 13

22 जुलाई 2022
0
0
0

छब्बू के मारे जाने का सदमा जिसे सबसे ज्यादा था, वह रघुनाथ थे! जाने क्या था कि छब्बू जब कभी बगीचे की तरफ आते, नहर या अखाड़े पर आते या अपनी भैंस के साथ उत्तरी सिवान में आते - रघुनाथ के दुआर को जरूर देख

14

भाग 14

22 जुलाई 2022
0
0
0

रघुनाथ दालान में करवट लेटे थे! 'नहीं-नहीं' करने के बावजूद शीला कमर की उभरी हुई हड्डी के आसपास हल्दी प्याज चूना का घोल छोप रही थी! और मुँह के अंदर ही अंदर कुछ बुदबुदाती भी जा रही थी नाक सुड़कते हुए।

15

भाग 15

22 जुलाई 2022
0
0
0

इन्हीं दिनों रघुनाथ को एक इलहाम हुआ। कि 'शरीफ' इंसान का मतलब है निरर्थक आदमी; भले आदमी का मतलब है 'कायर' आदमी। जब कोई आपको 'विद्वान' कहे तो उसका अर्थ 'मूर्ख' समझिए, और जब कोई 'सम्मानित' कहे तो 'दयनीय

16

भाग 16

22 जुलाई 2022
0
0
0

घर में फोन अब जी का जंजाल हो गया था! जब रघुनाथ ने कनेक्शन लिया था तो राजू की जिद पर - कि संजू अमेरिका से जब बात करना चाहेगा तो कैसे करेगा? कोई संदेश ही देना हो तो? भाभी ही मम्मी से कुछ बोलना या पूछना

17

भाग 17

22 जुलाई 2022
0
0
0

रघुनाथ ने कहा था पाँच दिन लेकिन लग गए पचास दिन! इसमें उनका कोई दोष नहीं था। सोचा था कि जब जाना ही है तो यहाँ की सारी समस्याएँ निपटा कर जाएँ, यह न हो कि रहें वहाँ और मन लगा रहे यहाँ! बहुत सोच-विचार क

18

भाग 18

22 जुलाई 2022
0
0
0

वह घर जिसे राँची के प्रोफेसर राजीव सक्सेना ने रिटायर होने के बाद अपने रहने के लिए बनारस में बनवाया था और जिसे अपनी बेटी सोनल के नाम कर दिया था, वह 'अशोक विहार' में था। बनारस में मुहल्ले थे, नगर, विहा

19

भाग 19

22 जुलाई 2022
0
0
0

इसी छोटे से-अशोक विहार के लेन नं. 4 के डी-1 में अमेरिका से आई सोनल सक्सेना रघुवंशी। तीन साल बाद। उसके डैडी आए थे सोनल की 'सैंट्रो' पहुँचाने और विश्वविद्यालय में ज्वाइन कराने। इतना ही नहीं किया उन्हो

20

भाग 20

22 जुलाई 2022
0
0
0

शीला को सोनल ने वह मान-सम्मान दिया जो कोई बहू क्या देगी अपनी सास को? सुबह-शाम 'मम्मी', दोपहर-रात 'मम्मी', घर में 'मम्मी' बाहर 'मम्मी' - बस हर तरफ मम्मी की गूँज! जब कि शीला सोनल के साथ आई थी लोकलाज के

21

भाग 21

22 जुलाई 2022
0
0
0

शीला सोनल के आग्रह पर तब तक रुकी रही जब तक खाना बनानेवाली नौकरानी की व्यवस्था नहीं हो गई। जिस दिन शीला गई, उसी दिन सोनल ने गेट और घर की तालियों के 'डुप्लिकेट' बनवाए और उन्हें रघुनाथ को दे दिया। दोपहर

22

भाग 22

22 जुलाई 2022
0
0
0

>रघुनाथ जब भी शाम को घूमते, टहलते या मिलने-जुलने बाहर जाते थे, कोशिश करते थे कि नौ बजे तक लौट आएँ! रात का खाना वे हमेशा सोनल के साथ खाते थे। यह सोनल की जिद थी! दोपहर को ऐसा तभी संभव हो पाता था जब उसकी

23

भाग 23

22 जुलाई 2022
0
0
0

रघुनाथ गाँव से लौटे लेकिन 'खुदगर्ज और कृतघ्न' बेटे के जाने के बाद! यह उनकी राय थी अपने छोटे बेटे धनंजय के बारे में। उसे पता था कि इसी नगर के 'अशोक विहार' में उसकी भाभी के साथ बाप भी रहता है लेकिन ठहर

24

भाग 24

22 जुलाई 2022
0
0
0

भ्रम और भरोसा - ये ही हैं जिंदगी के सोत! इन्हीं सोतों से फूटती है जिंदगी और फिर बह निकलती है - कलकल छलछल! कभी-कभी लगता है कि ये अलग-अलग दो सोते नहीं है। सोता एक ही है - उसे भ्रम कहिए या भरोसा। यह न ह

25

भाग 25

22 जुलाई 2022
0
0
0

रघुनाथ अपने जीवन की लंबाई नापते थे अपने पैरों से - उसकी चाल और ताकत से; फेफड़ों में आती-जाती साँसों से। एक समय था जब वे पंद्रह-सोलह मील चले जाते थे ननिहाल। धूप में! बिना थके, बिना कहीं बैठे - और तरोता

26

भाग 26

22 जुलाई 2022
0
0
0

जीवनाथ वर्मा जाते-जाते एक नई मुसीबत खड़ी कर गए थे यह कहते हुए कि अपनों के लिए बहुत जी चुके रग्घू, अब अपने लिए जियो! यह वह बात थी जो कभी उनके अपने दिमाग में ही नहीं आई! अपनों से अलग भी अपना कुछ होता ह

27

भाग 27

22 जुलाई 2022
0
0
0

जनवरी की वह शाम कभी नहीं भूलेगी! शाम तो मौसम ने कर दिया था वरना थी दोपहर! थोड़ी देर पहले धूप थी। उन्होंने खाना खाया था और खा कर अभी अपने कमरे में लेटे ही थे कि सहसा अंधड़। घर के सारे खुले खिड़की-दरवा

28

भाग 28

22 जुलाई 2022
0
0
0

रघुनाथ को कुछ पता नहीं कि वे अपने कमरे में कैसे पहुँचे ? कौन ले गया? कब ले गया? कैसे ले गया? कपड़े किसने उतारे? बदन किसने पोंछा और तीस साल पुराना खादी आश्रमवाला वह गाउन या ओवरकोट किसने पहनाया जिसके रो

29

भाग 29

22 जुलाई 2022
0
0
0

ज्यादा नहीं, हफ्ते दस दिन लगे सोनल को इस घर के एकांत और सन्नाटे के हिसाब से खुद को ढालने में! और जब ढल गई तब मजा आने लगा! अपने 'अकेलेपन' को एंज्वाय करने लगी। वह डेढ़-दो बिस्वे की रियासत की रानी थी -

---

किताब पढ़िए