भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।
भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे।
आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि जो भोपाल गैस त्रासदी में जिंदा बचे गए थे वह आज भी कई बीमारियों से जूझ रहे हैं। हर साल दोषियों को सजा दिलाने और मुआवजा दिलाने के वादे तो किए जाते हैं लेकिन बरसी बीत जाने के बाद इन वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है।यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से रिसी मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) गैस ने लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।
34 साल बाद भी इसका शिकार हुए लोगों को आज भी राहत नहीं मिली है। इस हादसे का खामियाज पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी भी भुगत रही है। हजारों पीड़ित अब भी उन गुनाहगारों को सजा मिलने के इंतजार में हैं जिनकी वजह से कई चिराग बुझ गए और कइयों के घर, परिवार और सूकून छीन गया।
न तो मुआवजा मिला और न हीं वे स्वास्थ्य सुविधाएं जो उनके जीवन को कष्टों से मुक्ति दिला सकें। हाल यह है कि पीड़ितों का जख्म पहले के मुकाबले कम होने के बजाय कहीं बढ़ता जा रहा है। गैस पीड़ित मर रहे हैं और सरकारें हैं कि वे उन्हें गैस पीड़ित मानने को तैयार नहीं है। सरकार लगातार आंकड़े छुपा रही है। वहीं आरोपियों को सरकार के रवैए के कारण ही सजा नहीं मिल पा रही है।
एक तरफ जहां पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला, वहीं उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। गैस पीड़ितों के नाम पर कई अस्पताल खुले मगर वहां चिकित्सक तक नहीं हैं। गैस पीड़ित अब भी दुष्प्रभाव भुगत रहे हैं। बड़ी संख्या में नवजात शिशु भी विकलांग हो रहे हैं। वहीं यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास की बस्तियों के लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल पा रहा है। गुर्दा, हृदय रोग सहित अन्य बीमारियों के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।