गगन की रानी के छुप-छुप बीजुरी काजल आँज रही
बादलों के घिर आने से प्रात भी अच्छी सांझ रही ।
सांवली और कुआँरी-सी मगन माटी ने खोले केश
गोद पर लहर-लहर आये विविध रंगों के हिलते वेश ।
छू उठी, छुपा हृदय गुस्ताख, तुम्हारी निखरी-सी पहचान
और वे मृग-तृष्णा हो गये तुम्हारी यादों के मेहमान ।
मधुर निर्यात और आयात, साधते हो दोनों के खेल
छनक में निकल चले-से दूर पलकों में पल-पल बढ़ता मेल ।
तुम्हारे खो जाने में दूख, तुम्हारे पा जाने में आज-
भूमि का मिल जाता है छोर, गगन का मिल जाता है राज ।
तुम्हारी टीसें हबस रहीं, बेलि पर सपने साज रहीं
गगन की रानी चुप-चुप बीजुरी काजल आँज रही ।