shabd-logo

छबियों पर छबियाँ बना रहा बनवारी

19 अप्रैल 2022

23 बार देखा गया 23

जब तरल करों से बाँट रहा बून्दें अपार

हिल रहा है हवा के झोंकों पर जो बार-बार

जो खींच रसा के कीचड़ से रस-रूप-ज्वार

पत्तों, डालों, फूलों को बाँट रहा उदार !

तब कौन कि जो उसकी लहरों को टोके

ऊँचे उठते हरिताभ तत्व को रोके

बूंदें नीचे को झरझर गिरती सहस बार

तरु ऊगे, उठे, बढ़े, निकल आये हजार

किरनें इन पर झुक-झुक कर हेरा-फेरी

सौन्दर्य-कोष देने में करें न देरी ।

ऊंचे उठतों की कौन करे बदनामी ?

चढ़ने-बढ़ने में ये हैं अपने स्वामी ।

फूलों से देखो कीचड़ का यह नाता

किस ढब गढ़ता है स्वाद, सुगन्ध विधाता !

चढ़ कर गिरते हैं मातृ-भूमि की गोद

है कौन कि छीने इनका उठता मोद ।

लीला-ललाम, यों सुबह-शाम पर वारी

कुंजों को गढ़ता, देखो कुंजबिहारी !

यह फूलों और फलों को दुलार रहा है

तुमको मौन उन्मत्त पुकार रहा है ।

यों लूट-लूट प्रकृति की महिमा सारी

छवियों पर छवियाँ बना रहा बनवारी

दुनिया बांढ़ों से इसे पुकार रही है

झरने की वानी चरन पखार रही है ।

रातों के तारे नित पहरा देते हैं

दिन में दिनमणि यौवन गहरा देते हैं ।।

9
रचनाएँ
बीजुरी काजल आँज रही
0.0
सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया हैं |
1

बीजुरी काजल आँज रही-गीत

19 अप्रैल 2022
2
0
0

गगन की रानी के छुप-छुप बीजुरी काजल आँज रही बादलों के घिर आने से प्रात भी अच्छी सांझ रही । सांवली और कुआँरी-सी मगन माटी ने खोले केश गोद पर लहर-लहर आये विविध रंगों के हिलते वेश । छू उठी, छुपा हृ

2

वर्षा ने आज विदाई ली

19 अप्रैल 2022
0
0
0

वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली। सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे। पहले उदार थ

3

सिर पर पाग, आग हाथों में

19 अप्रैल 2022
0
0
0

सिर पर पाग, आग हाथों में रख पानी का घड़ा जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा । मटर इसी पर झूल उठी है सरसों कैसी फूल उठी है गंगा इसकी छवि विलोक कर सीधा रस्ता भूल उठी है। श्रम, तेरे मन्दिर का एक पुजा

4

चोरल

19 अप्रैल 2022
0
0
0

(1) चढ़ चलो कि यह धारों की शोभा न्यारी सागौन-वनश्री, सावन के बहते स्वर, पाषाणों पर पंखे झल-झल दोलित-सी नभ से बातें करती बैठी अपने घर ! संध्या हो आयी तारे पहरा देते इसके अन्तर को छविधर घहरा देते

5

यह तो करुणा की वाणी है

19 अप्रैल 2022
0
0
0

तुम इस बोली में मत बोलो यह तो करुणा की वाणी है। उतरो, चढ़ो, चलो, घूमो पलटो, पर हार नहीं मानो; पत्थर, मिट्टी, लोहा, सोना रोकें, उपहार नहीं मानो । बिन्दु-बिन्दु टुकड़े होते हैं तुम संग्रह का गर

6

छबियों पर छबियाँ बना रहा बनवारी

19 अप्रैल 2022
0
0
0

जब तरल करों से बाँट रहा बून्दें अपार हिल रहा है हवा के झोंकों पर जो बार-बार जो खींच रसा के कीचड़ से रस-रूप-ज्वार पत्तों, डालों, फूलों को बाँट रहा उदार ! तब कौन कि जो उसकी लहरों को टोके ऊँचे उठ

7

आता-सा अनुराग

19 अप्रैल 2022
0
0
0

माटी से उठ कर आता-सा अनुराग जब फूल-फूल बनता कलियों का भाग, तब मुझको मिलते, आते मेरे बाँटे संकेत भेजते वायु और सन्नाटे। मैं चल पड़ता हूँ, कलियों के मधु-गाँव हौले से रखता हूँ, गन्धों पर पाँव मैं

8

तारों के हीरे गुमे

19 अप्रैल 2022
0
0
0

तारों के हीरे गुमे मेघ के घर से जब फेंक चुके सर्वस्व तभी तुम बरसे ! खो बैठे चांदनियों-सी उजली रातें जब तम करता हँस कर प्रकाश से बातें । जब उषा कर रही हाथ जोड़ सन्ध्या-सी जब रात लग उठी विधवा-सी

9

यह उत्सव है

19 अप्रैल 2022
0
0
0

भर-भर आया है सावन नयनों का पुतली पर कोई झूल गया चुप-चुप-सा इस प्रथम चरण ने वरण कर लिये सपने हम सब समेट लाये थे अपने-अपने, शिशु अन्धुकार पर बिखर गगन के तारे स्तन नहीं मिला, फिरते थे मारे-मारे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए