तारों के हीरे गुमे मेघ के घर से
जब फेंक चुके सर्वस्व तभी तुम बरसे !
खो बैठे चांदनियों-सी उजली रातें
जब तम करता हँस कर प्रकाश से बातें ।
जब उषा कर रही हाथ जोड़ सन्ध्या-सी
जब रात लग उठी विधवा-सी, बन्ध्या-सी ।
सपनों-सा स्वर पर पानी उतर रहा था
सन्ध्या को वैभव ऊगा सँवर रहा था।
मस्ती उतरी थी, भू पर हो दीवानी
जब बरस उठी थी रिमझिम एक कहानी ।
डालों फूला 'छू जाना' झूल रहा था
तरुयों को पहना स्वयं दुकूल रहा था ।
रानी-सी मलयज मन्द-मन्द झरती थी
वह कोटि-कोटि कलियां जीती-मरती थीं ।
चाँदी के डोले, चाँदी के ढीमर थे
चाँदी के राजकुमार मजे अम्बर थे।
चाँदी उतरी थी तम पर राज रही थी
चाँदी के घर चाँदी की लाज रही थी।
तम तरुओं के नीचे बारी-बारी
छुपता-मिलता-सा, बना आज से सारी
गति का रथ उसकी रुका, बेड़ियाँ पहने
बन्दी बैठा था, पहन जेल के गहने !
दौड़ी आती जल-ज्योति अलकनन्दा-सी
तम के झुरमुट, वृन्दावन की वृन्दा-सी ।
सोने के घर से नीलम बरस रहे थे
चाँदी से ढल-ढल कर तम बरस रहे थे ।