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वर्षा ने आज विदाई ली

19 अप्रैल 2022

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वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली

प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली।

सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे

डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे।

पहले उदार थी गगन वृष्टि अब तो उदार हो उठे खेत

यह ऊग ऊग आई बहार वह लहराने लग गई रेत।

ऊपर से नीचे गिरने के दिन रात गए छवियाँ छायीं

नीचे से ऊपर उठने की हरियाली पुन: लौट आई।

अब पुन: बाँसुरी बजा उठे ब्रज के यमुना वाले कछार

धुल गए किनारे नदियों के धुल गए गगन में घन अपार।

अब सहज हो गए गति के वृत जाना नदियों के आर पार

अब खेतों के घर अन्नों की बंदनवारें हैं द्वार द्वार।

नालों नदियों सागरो सरों ने नभ से नीलांबर पाए

खेतों की मिटी कालिमा उठ वे हरे हरे सब हो आए।

मलयानिल खेल रही छवि से पंखिनियों ने कल गान किए

कलियाँ उठ आईं वृन्तों पर फूलों को नव मेहमान किए।

घिरने गिरने के तरल रहस्यों का सहसा अवसान हुआ

दाएँ बाएँ से उठी पवन उठते पौधों का मान हुआ।

आने लग गई धरा पर भी मौसमी हवा छवि प्यारी की

यादों में लौट रही निधियाँ मनमोहन कुंज विहारी की।

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रचनाएँ
बीजुरी काजल आँज रही
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सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया हैं |
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बीजुरी काजल आँज रही-गीत

19 अप्रैल 2022
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गगन की रानी के छुप-छुप बीजुरी काजल आँज रही बादलों के घिर आने से प्रात भी अच्छी सांझ रही । सांवली और कुआँरी-सी मगन माटी ने खोले केश गोद पर लहर-लहर आये विविध रंगों के हिलते वेश । छू उठी, छुपा हृ

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वर्षा ने आज विदाई ली

19 अप्रैल 2022
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वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली। सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे। पहले उदार थ

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सिर पर पाग, आग हाथों में

19 अप्रैल 2022
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सिर पर पाग, आग हाथों में रख पानी का घड़ा जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा । मटर इसी पर झूल उठी है सरसों कैसी फूल उठी है गंगा इसकी छवि विलोक कर सीधा रस्ता भूल उठी है। श्रम, तेरे मन्दिर का एक पुजा

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चोरल

19 अप्रैल 2022
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(1) चढ़ चलो कि यह धारों की शोभा न्यारी सागौन-वनश्री, सावन के बहते स्वर, पाषाणों पर पंखे झल-झल दोलित-सी नभ से बातें करती बैठी अपने घर ! संध्या हो आयी तारे पहरा देते इसके अन्तर को छविधर घहरा देते

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यह तो करुणा की वाणी है

19 अप्रैल 2022
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तुम इस बोली में मत बोलो यह तो करुणा की वाणी है। उतरो, चढ़ो, चलो, घूमो पलटो, पर हार नहीं मानो; पत्थर, मिट्टी, लोहा, सोना रोकें, उपहार नहीं मानो । बिन्दु-बिन्दु टुकड़े होते हैं तुम संग्रह का गर

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छबियों पर छबियाँ बना रहा बनवारी

19 अप्रैल 2022
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जब तरल करों से बाँट रहा बून्दें अपार हिल रहा है हवा के झोंकों पर जो बार-बार जो खींच रसा के कीचड़ से रस-रूप-ज्वार पत्तों, डालों, फूलों को बाँट रहा उदार ! तब कौन कि जो उसकी लहरों को टोके ऊँचे उठ

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आता-सा अनुराग

19 अप्रैल 2022
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माटी से उठ कर आता-सा अनुराग जब फूल-फूल बनता कलियों का भाग, तब मुझको मिलते, आते मेरे बाँटे संकेत भेजते वायु और सन्नाटे। मैं चल पड़ता हूँ, कलियों के मधु-गाँव हौले से रखता हूँ, गन्धों पर पाँव मैं

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तारों के हीरे गुमे

19 अप्रैल 2022
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तारों के हीरे गुमे मेघ के घर से जब फेंक चुके सर्वस्व तभी तुम बरसे ! खो बैठे चांदनियों-सी उजली रातें जब तम करता हँस कर प्रकाश से बातें । जब उषा कर रही हाथ जोड़ सन्ध्या-सी जब रात लग उठी विधवा-सी

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यह उत्सव है

19 अप्रैल 2022
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भर-भर आया है सावन नयनों का पुतली पर कोई झूल गया चुप-चुप-सा इस प्रथम चरण ने वरण कर लिये सपने हम सब समेट लाये थे अपने-अपने, शिशु अन्धुकार पर बिखर गगन के तारे स्तन नहीं मिला, फिरते थे मारे-मारे

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