सिर पर पाग, आग हाथों में
रख पानी का घड़ा
जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा ।
मटर इसी पर झूल उठी है
सरसों कैसी फूल उठी है
गंगा इसकी छवि विलोक कर
सीधा रस्ता भूल उठी है।
श्रम, तेरे मन्दिर का एक
पुजारी कितना बड़ा?
आज अपनी पर आये खड़ा !
सिर पर पाग, आग हाथों में
रख पानी का घड़ा
जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा ।
सरजू इसे राम कहती है
यमुना घनश्याम कहती है
ग्रामीणों की टोली, पागल
इसको राम-राम कहती है !
कला ! कल्पना से कह इस पर
बन्दनवारें चढ़ा !
सफल कर जीवन यह बेगढ़ा !
सिर पर पाग, आग हाथों में
रख पानी का घड़ा
जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा ।
उठती हुई जवानी इसकी
कितनी ताने टूट रहीं
इसकी अमर उमर दुनिया में
अनुपम रहीं, अटूट रहीं !
रस, कि राग का विष इससे
मत माँगो यह अलमस्त खड़ा !
सिर पर पाग, आग हाथों में
रख पानी का घड़ा
जवानी, देख कि प्रियतम खड़ा ।