हम भी कुछ करते रहते हैं, उस बबूल की छांह में
हम भी श्रम के गीत सुनाते हैं ढोलक पर गाँव में
हम में भी आ गई हरारत, बजी आज सहनाई है
केरल से काश्मीर तलक हम हैं, हम भाई-भाई रहें
कावेरी, कृष्ण, की नर्मदा गंगा जमना सिन्धु रहे
हमें न तोड़ सकेगा कोई, हम माँ-जाये बन्धु रहे !
चरण-चरण चल पड़ी मातृ-भू वरण-वरण सन्तान लिये
हैं छत्तीस करोड़ कि उनका अमित उचित अभिमान लिये ।
वेदों की अर्चना, तपों की धुन, गीता का गान लिये
जी में प्रभु को लिये, शीष पर आजादी का मान लिये ।
रण-वेदी पर, बलि-बेदी पर, श्रम-वेदी पर जहाँ रहें
लेकर शीश हथेली पर उठ बोलो कहाँ रहें?