जलना भी कैसी छलना है ?
प्रणति-प्रेयसी प्राण-प्रान सँग-सँग झूलें ।
जलना पलना है ।
जलना मी कैसी छलना है ?
बरसों के ले भादों-सावन
बरसा कर संस्कृति पावन-धन
पूछ रहे दृग-जल यमुना से
कितनी दूर और चलना है ?
कितनी दूर और चलना है ?
जलना भी कैसी छलना है ?
अमर साँस दुहराहट खाकर
बोल उठी धीमे सकुचाकर
मंदिर का दीपक हूँ, मुझको
युगों युगों हँस हँस जलना है ।
जलना भी कैसी छलना है ?
प्रणति-प्रेयसी, प्राण-प्राण अब सँग सँग झूलें ।
जलना पलना है ।
जलना भी कैसी छलना है ?