कलम की नोक से कैसी शिकायत ?
कलेजे से कहो, कुछ कह सको तो !
उड़े पंछी गगन पर, सूर्य किरनें-
चरण सुहला, दिखातीं विश्वास का
यही हमने वहुत सीखा खुले में
परंतप ! यह तुम्हारा, यह हमारा
बहो मत बहक के पंखों चढ़े से
जरा ठहरे रहो, यदि रह सको तो ।
कलम की नोक से कैसी शिकायत ?
कलेजे से कहो, कुछ कह सको तो !
तुम्हारी याद ने मेंहदी रचाकर
प्रणय के झलमले से गीत गाये !
ये धोखा है बड़ा बलवान, मीठा,
मधुर तुमको, न आना था, न आये!
अचानक स्वप्न से आकर कहा यों
चलो वृन्दा-विपिन यदि सह सको तो !
कलम की नोक से कैसी शिकायत ?
कलेजे से कहो, कुछ कह सको तो !