कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे !
तुम भले भूल जाओ, मैं कैसे भूलूँ
हथकड़ियों के शृंगार पहिन कर देखे
मैंने तो ये साम्राज्य मिटाकर देखे ।
कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे !
मैं सह न सका उठ पड़ा चुनौती लेने
सिंहासन उस दिन मूँछ मरोड़ रहा था
ले कृषक और मजदूर तराजू अपनी
निर्लज्ज विदेशी रक्त निचोड़ रहा था
पैदल थे बस संकल्पों ही का रथ था
जीतें या हारें, सूली अपना पथ था
मैंने शत-शत मदहोश जगाकर देखे
कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे !
यदि जरा देख पाता था साहस मेरा
परदेसी घातक मित्र बना है तेरा
मैं प्राण चढ़ाकर तुझे तार देता था
पिस्तौल उठाता, और मार देता था
मेरे रुधिरों के चित्र सांस तूली थी,
बन रहा चित्र माँ का था जब गोधूली थी,
मेरी पीढ़ी जागृत-बलि थी, फूली थी,
प्रभुता के घर तो सिर्फ एक सूली थी ।
युग अगर ठीकरा लेने से बच जाता
तो देश सहस्रों युग ठीकरे उठाता
अब तुम पद लोलुप देशभक्त अनदेखे ।
कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे !
तुम बलात्कार सायुज्य राग के मेरे
तुम अरे मुनाफाखोर त्याग के मेरे
ब्रिटिशों के युग में तुमने स्वर्ण समेटा
अब बापू की यादों अमरत्व लपेटा
गांधी युग की कुरबानी दुनिया देखे
कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे !