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छलिया

19 अप्रैल 2022

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तुम खड़े रहो अनहोनी चितवन के छलिया;

मैं उस दुकूल पर अपनी खीजें लिख डालूँ !

गंगा के तट अपना पनघट आबाद रहे,

वे रीतें, उनकी रीझें भी, कुछ लिख डालूं ।

ये किसने आँखें चार चुरा लीं अनजाने !

तुम लहरों पर लहरीले, लौ पर लाल-लाल,

कितना तुमको जी में कोई रक्खे संभाल !

कैसे माने कोई कि तुम्हारी गायें थीं,

गोपियाँ साथ थीं और नाचते ग्वाल-बाल ?

मैंने सपनों का मोट बाँधकर साथ लिया,

तुम खड़े रहो अनहोनी चितवन के छलिया !

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रचनाएँ
धूम्र-वलय
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माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।
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धूम्र-वलय

19 अप्रैल 2022
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जीवन के धूम्र-वलय पास उठे, दूर चले; कितने हँस बोल चले, कितने मजबूर चले । काली छाया है, पर कोमलता इतनी है ! छन-छन जल-जल कर भी अगरु-गंध कितनी है ? आज भव्य रूप लिये, रंग लिये डोल रही, छाया है, क

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ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें

19 अप्रैल 2022
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तेरा चौड़ा छाता रे जन-गण के भ्राता शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते भू-स्वामी, निर्माता ! कीच, धूल, गन्दगी बदन पर लेकर ओ मेहनतकश! गाता फिरे विश्व में भारत तेरा ही नव-श्रम-यश ! तेरी एक मुस्कर

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तुम्हारा चित्र

19 अप्रैल 2022
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मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर हरे-हरे घन श्यामल वन पर द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर चुम्बन आज पवित्र बन गया, मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया। तुम आए, बोले, तुम खेले दिवस-रात्र

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तुम्हारे लेखे

19 अप्रैल 2022
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कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे ! तुम भले भूल जाओ, मैं कैसे भूलूँ हथकड़ियों के शृंगार पहिन कर देखे मैंने तो ये साम्राज्य मिटाकर देखे । कुछ हुआ नहीं हो भले तुम्हारे लेखे ! मैं सह न सका उठ पड़ा

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कुसुम झूले

19 अप्रैल 2022
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कुसुम झूले, कुसुमाकर मिले हृदय फूले, सखि तृण-तरु खिले ! मिल गयी दिशि-दिशि, दृगंचल में सजल श्रुत, सुगंधित, श्रमित, घबरायी नजर वृक्ष वल्लरियों उठाता गुदगुदी वायु की लहरों संजोता बेसुधी कली है कु

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बोलो कहाँ रहें

19 अप्रैल 2022
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हम भी कुछ करते रहते हैं, उस बबूल की छांह में हम भी श्रम के गीत सुनाते हैं ढोलक पर गाँव में हम में भी आ गई हरारत, बजी आज सहनाई है केरल से काश्मीर तलक हम हैं, हम भाई-भाई रहें कावेरी, कृष्ण, की न

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वे चरण

19 अप्रैल 2022
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मैंने वे चरण निहार लिये, अब देखा क्या, अनदेखा क्या ? दो बाँहों की कोमल धारा, दो नयनों की शीतल छाया, मैं ब्रह्म रूप समझा, मानो- तुम कहते रहे जिसे माया । इस सनेह-धारा के तट पर, आँसू भरे अलख पनघ

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मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को-गीत

19 अप्रैल 2022
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मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को बस बंधी मूठ-सा उन्हें छुपा ही रहने दो ! चटखन के क्षण में नजरें दूर रखो रानी ! मलयज को तो मीठी सपनों-सी बहने दो ! मिट-मिट कर सहस सुगंध लुटाने वालों से पुरुषार

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जलना भी कैसी छलना है-गीत

19 अप्रैल 2022
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जलना भी कैसी छलना है ? प्रणति-प्रेयसी प्राण-प्रान सँग-सँग झूलें । जलना पलना है । जलना मी कैसी छलना है ? बरसों के ले भादों-सावन बरसा कर संस्कृति पावन-धन पूछ रहे दृग-जल यमुना से कितनी दूर और

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कलेजे से कहो

19 अप्रैल 2022
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कलम की नोक से कैसी शिकायत ? कलेजे से कहो, कुछ कह सको तो ! उड़े पंछी गगन पर, सूर्य किरनें- चरण सुहला, दिखातीं विश्वास का यही हमने वहुत सीखा खुले में परंतप ! यह तुम्हारा, यह हमारा बहो मत बहक के

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यमुना तट पर

19 अप्रैल 2022
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चाँदी की बाँहों, निशि के घूँघट पट पर ! पाषाण बोलता देखा, यमुना तट पर ! माना वंशी की टेर नहीं थी उसमें गायों की हेरा-फेर नहीं थी उसमें गोपियाँ, गोप गोविन्द न दीख रहे थे पर प्रस्तर प्रिय-पथ चढ़ना

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भूल है आराधना का

19 अप्रैल 2022
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भूल है आराधना का प्रथम यौवन भूल है आनन्द की पहली कमाई देखते ही रह गये भू से गगन तक किस तरह श्रृंगार कर-कर भूल आई ? दिशि बिदिशि साकार हरित दुकूल देखूँ? यह नये मेहमान इनको भूत देखूँ ? सीढ़ियों से

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छलिया

19 अप्रैल 2022
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तुम खड़े रहो अनहोनी चितवन के छलिया; मैं उस दुकूल पर अपनी खीजें लिख डालूँ ! गंगा के तट अपना पनघट आबाद रहे, वे रीतें, उनकी रीझें भी, कुछ लिख डालूं । ये किसने आँखें चार चुरा लीं अनजाने ! तुम लहरों पर

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अमर विराग निहाल-गीत

19 अप्रैल 2022
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अमर विराग निहाल ! चरण-चरण -संचरण -राग पर प्रिय के भाग निहाल ! अनबोली साँसों की जाली गूंथ-गूंथ निधि की छवि आली अनमोली कुहकन पर लिख-लिख मान भरी मीड़ें मतवाली स्वर रंगिणि, तुम्हारी वीणा पर अनुरा

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मत गाओ

19 अप्रैल 2022
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आरती तुम्हारी ऊँची जरा उठाओ ! गंधों को मादक होने दो, मत गाओ ! बन जायें धुएँ के कंकण धीरे-धीरे, इतने हौले-हौले घड़ियों पर छायो ! छवि के प्रभु की अलबेली मूरत बोले पुतली पर ऐसा अमृत भर-भर लायो ! क

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