जीवन के धूम्र-वलय पास उठे, दूर चले;
कितने हँस बोल चले, कितने मजबूर चले ।
काली छाया है, पर कोमलता इतनी है !
छन-छन जल-जल कर भी अगरु-गंध कितनी है ?
आज भव्य रूप लिये, रंग लिये डोल रही,
छाया है, किन्तु अमर वेद-ऋचा बोल रही,
इधर चले धूम्र-वलय, लिपट गये, घेर चले,
साँसों की फूंकों, मनमाने मुँह फेर चले ।
जीवन के धूम्र-वलय पास उठे, दूर चले;
कितने हँस बोल चले, कितने मजबूर चले ।
अनबोली साधे हैं, वलय-वलय बोल उठे!
अनहोनी मंजिल है, झूले ले डोल उठे!
वर दे यह, मेरे वलयों को प्रभु तू वर ले!
जीवन के धूम्र-वलय, तेरे कंकण कर ले !
चाह चले, नेह चले, संकट-दल चूर चले !
जीवन के धूम्र-वलय, पास उठे, दूर चले !
जीवन के धूम्र-वलय पास उठे, दूर चले;
कितने हँस बोल चले, कितने मजबूर चले ।