आरती तुम्हारी ऊँची जरा उठाओ !
गंधों को मादक होने दो, मत गाओ !
बन जायें धुएँ के कंकण धीरे-धीरे,
इतने हौले-हौले घड़ियों पर छायो !
छवि के प्रभु की अलबेली मूरत बोले
पुतली पर ऐसा अमृत भर-भर लायो !
कुछ ऐसे रीझो, उन्हें विवश कर लाओ,
आरती तुम्हारी ऊँची जरा उठायो !
चाह के वर्ष, वाह के हर्ष से दूर रहें
कुछ ऐसी सौंहें, मन-ही-मन तुम खाओ,
झर उठे प्राण-प्रतिमा प्रिय पाषाणों में
साँसों से साँसों के कुछ और निकट आओ !
तुम भाने दो - उन्हें और तुम मत भाओ 1
गंधों को मादक होने दो, मत गाओ !
आरती तुम्हारी ऊँची जरा उठाओ !