मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को
बस बंधी मूठ-सा उन्हें छुपा ही रहने दो !
चटखन के क्षण में नजरें दूर रखो रानी !
मलयज को तो मीठी सपनों-सी बहने दो !
मिट-मिट कर सहस सुगंध लुटाने वालों से
पुरुषार्थ ! कला का नव-संदेश सुनो
सुखों-साँसों की होड़ा-होड़ी में
उस ह्रदय देश का विषय-प्रवेश सुनो !
तरुओं के कांधे चिड़ियाँ चहक उठीं
चुप रहो, उन्हें अपनी ही धुन कहने दो,
कोमल झोंके दे रहा पवन कलियों को
उनको मादक अपमान अकेले सहने दो !
मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को
बस बंधी मूठ-सा उन्हें छुपा ही रहने दो !