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दीपोत्सव

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अंधियारे की सांझ से उजाले का प्रकाश है दीपावली तो खुशियों और आनंद का त्योहार है दीपों से हर घर सजा धजा रहता तरह तरह मिष्ठान्नों से भंडार भरा होता सब मिलजुल दीप जलाते और गले मिल बधाईयां देते क्योंकि

मन में दीप जलाऊंघोर तिमिर है मन भीतरकाम, क्रोध, तृष्णाराग, द्वेष, पापबुद्धिकैसे तिमिर भगाऊंमन में दीप जलाऊंदीप कहाॅ ढूंढूं ऐसातिमिर भगाये मन भीतरआलोकित हो मन मेराआशाओं का पथ पकङेमन में दीप जलाऊंसंस्का

सत्य का मार्ग प्रशस्त हो,राह अपनी अडिग रहे।पल पल जुड़ा सत्य से,मार्गदर्शन वही प्रशस्त रहे।।अनुसरण सत्यता का रहे,प्रयास भी वही सफल रहे।सत्य का मार्ग प्रशस्त हो,बुलंदियों को हम छूते रहे।।आदर्श आचरण व्यव

प्रिय सखी।कैसी हो ।हम अच्छे है । दीपावली पर ढेर सारी मिठाई ,कचोरी रसगुल्ले बनाएं है अब तुम्हें कैसे खिलाएं।पर मेरी तरफ से तुम्हें दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं।आज का दैनिक विषय है :- दीपोत्सवदीपावली

आसमान का तारा हूँ मैं,चमक है फीकी सी,और कुछ बेजान,कही गुमनाम सा,तारो की भीड़ मे,खोया हुआ धूल भर सा,ही तो हूँ,मुस्कुराता हुआ – हँसता हुआ,इस खामोश आसमान मे,टिमटिमाता हूँ कभी,और कभी गुम हो जाता हूँ,दूर

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कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को पंच दिवसीय दीपोत्सव का आरम्भ भगवान धन्वन्तरी की पूजा-अर्चना के साथ शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाता है, जो सुख, समृद्धि का खुशियों भरा दीपपर्व ’तमसो मा ज्योतिर

दीपोत्सव के बारे में जानकारी|

स्त्री का प्यार सबके नसीब में नही होता  वो जीवन में सिर्फ़ एक ही मर्द से  दिल से प्यार कर पाती हैं ,  वो मर्द उसका प्रेमी हो या फिर पति  वो टूट क़र जीवन में एक बार ही  किसी मर्द को चाहती हैं।

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आवो हम इस दीपावली पर।कुछ ऐसा करके दिखाये।।भूखे प्यासे जो हैं मानव।उनके घर हम दीवाली मनाये।।आवो हम इस --------------------।।भेद मिटाकर छोटे बड़े का हम।सबको बांटे अपनी खुशी हम।।कोई नहीं हो निराश और उदास।

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दीपोत्सव - आओ दीपावली मनाए खुशियों के दीप जलाए आओ हम सब दीपावाली मनाए । निराशा का अंधकार मिटाएं आशाओ की उमंग जगाए  । प्रेम भाईचारे और एकता का संदेश जन जन तक पहुंचाए । आए हम सब एक साथ दिल से द

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दीपोत्सव - आओ दीपावली मनाए खुशियों के दीप जलाए आओ हम सब दीपावाली मनाए । निराशा का अंधकार मिटाएं आशाओ की उमंग जगाए  । प्रेम भाईचारे और एकता का संदेश जन जन तक पहुंचाए । आए हम सब एक साथ दिल से द

त्योहार दीवाली का है तो मन वीणा के तार झंकृत ना हो जाये ऐसा संभव कैसे हो सकता है ।त्योहार की संकल्पना वास्तव में भारतीय परंपरा का एक अद्भुत पहलू है , जिसमे अंतरिक्ष की ज्यामिति , भूगोल की तारतम्यता ,

बैठती हूँ छत के मुँडेर पर देर तक,चंदा और तारों से गप्पें होती अक्सर,कभी तारे बताते अपनी कही-सुनी,तो कभी चंदा सुनाता अपनी कहानी,आज रात बदला सा है नज़ारा,एक कोने चुपचाप खड़ा चाँद,और झुण्ड बना कर चमक रहा स

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