तुम इतनी देर तक घूरते रह अँधेरे को कि
तुम्हारी पुतलियों का रंग काला हो गया
किताबों को ओढ़ा इस तरह कि
शरीर कागज़ हो गया
कहते रहे मौत आये तो इस तरह
जैसे पानी को आती है
वो बदल जाता है भांप में
आती है पेड़ को तो दरवाज़ा बन जाता है
जैसे आती है आग को वह राख बन जाती है
तुम गाय का थन बन जाना
दूध बनकर बरसना
भांप बनकर चलाना बड़े-बड़े इंजन
भात पकाना
जिस रस्ते को हमेशा बंद रहने का शाप मिला
उसपर दरवाज़ा बनकर खुलना
राख से मांजना
बीमार माँ की पलंग के नीचे रखे बासन
तुम एक तीली जलाना उसे देर तक घूरना