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गीत

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रूबरू मै रहू ,उसके आगोश मे,,  मय की उसमे रहू,आंऊ न होश मे,वो जो सजदा करे,,आऊ  मै जोश मे,रूबरू मै रहू उसके आगोश मे।।उसको पाने की बस,  जुस्तजू इक रहे,खो न ,दू मै उसे ,बस यही होश रहे।

कृष्णा के काले जादू से कौन यहां बच पाया है, गोकुल बृंदावन के वासी सब पर जादू छाया है, कान्हा की मुरली जब बाजे, उस जादू से कोई नहीं बच पाए, लाज शरम सब छोड़ कर भागे, प्रेम की धुन पर सभी गोपियां, नाचें त

 मिल जाएगा ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::विस्मृत मन में ख्वाब सुनहरे ,यूं ही उलझ उलझ जाए रे,टूटी हुई सी तारे मन की, फिर से राग सुना जाए रे।तिल तिल मरती हुई सांसो म

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::है फैली चहुँ ओर समाज मे ,रूढ़िवादी परम्पराएं ।कुप्रथाएं खुद के होने का ,पल पल ही एहसास कराए ।इन सबसे ऊपर उठने को ,जागरूक हम समाज करे ।हम सब कुल के गौरव अपने,&n

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::                       अहंकार:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

=========================है सिलसिला ये कैसा,  राह- ए- मजार में ,खबर नही किसी को,  पर चल रहे हैं सब।मन मे लिए उमंगे न , जाने किस बात की,पाने को सुख कौन सा , मचल रहे हैं सब ।==================

                    शोषक और शोषित वर्ग::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::टूटी हुई कलम  से तुमने ,गैरो  का  इतिहास लिखा ,

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●दिल मे उतरकर अपनो सा,             अहसास करा जाती  है ।और कभी दिल को ही भेद ,              विक्षुप्त

 शीर्षक -  अपनी अपनी अवकातें =======================मौन ही रहकर करता हूं मैं,अर्थपूर्ण गम्भीर इशारे ,मेरे मन की लब्ज़ है ये जिसे,टिमटिमा के कहते हैं तारे ।चिर गगन के खुले पटल पर , ल

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::झलकता शब्द से भी है ,हमारा आचरण हरदम ,बयां आंखे भी करती है ,कभी छुपकर कभी हो नम ।हमारा मौन रहना भी, बहुत कुछ बोल जाता है ,क

-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:बड़ी भूल हुई इस जीवन में,शुभ कर्म अलंकृत कर न सके।बन मानव तो हम यार गए ,यश भूषण अंग पर धर न सके ।बेअदब हो गए दुनिया  में,नैतिकता का अवरोध रहा ।हम भूल गए निज ध

===============================थाम लेती है किनारे अपनी बाहों में ,रूठकर आती हुई  लहरों के वेग को ।समा लेती है अपने अंदर समंदर जैसे ,दौड़कर आती सरिताओं के आवेग को।फिसलता हुआ पगडंडियों पर चल रहा था

    कविता का नाम - पथिकरचनाकार -रामावतार चन्द्राकरऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,पग पग देख के चलना,शूल है बिखरे हुए हर पथ पर,तुम मत कभी मचलना ।              &nbs

                          :-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:- सौगन्ध  मुझे करनी 

 ====================कितने बरष है बीत गए पर ,अब भी आंखों में मुस्काये,जब कोई छेड़े तार दिल की,दिल मे हलचल सी उठ जाए,रह रह कर वो  चेहरा मेरे, ख्वाबो में है आ ही जाता ,सच ही कहा है कहने वा

तेरी तरह सब जीना चाहेसबको जीवन का अधिकार!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!क्यों मनमौजी बना है फिरतामूक जीवन क्यों छेड़ते हो तुमजो तेरे घट माँझ बिराजतसबके भीतर देखो ना 

1-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳अवनी के आभूषण बनकर ,                 सुंदरता मैनें ही बढ़ाया ।मेरे ही फल -फूल- पत्र से ,           

रचनाकार  -  कुर्मी रामावतार चन्द्राकर====================होना मत हैरान सखे ,जो बांटा है मिल जाएं तो,खाएं थे जिस पेड़ से आम ,वो पत्थर गर बरसाए तो।गुजरी हुई वो समय की कतरन,अवसि लौट के आएगी,देर

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::पाने को मंजिल की खुशबू ,कितने फूलों को मसल दिया,कुमुदनी इंदु को अर्पित की ,सूरज को नव कमल दिया।आह्लाद हुआ मन जिसको पाकर, जाने किसने रहमत की,कर्मों

माँ बाप ने जन्म दिया बेटे कोलगी अंचल में सुलझाने माँ बेटे कोगीले में सोकर सूखे में सुलाती माँ बेटे कोपेट नहीं भरा होगा फिर पेट भरा माँ बेटे काखुद के तन पर कपडे नहीं लेकिन ढाका माँ बेटे कालगी संजोने सप

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