आज कुटिया पधारे जो श्रीराम जी, देख शबरी कि आँखे सजल हो गयीं।राह में फूल नित जो सजाती रही, साधना आज उसकी सफल हो गयी।।रूप सुन्दर मनोहर धनुष हाथ में, और हैं साथ में भ्रात उनके लखन।राम ने जब कुटी में किया आगमन, देखते ही प्रफुल्लित हुआ आज मन।।प्रेम से दौड़ शबरी मिली राम से, आज कठनाइयाँ सब सरल हो गयी।राह म
गीतमधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।महकी हुई फिजाएं, मनको लुभा रही है।जब फूल-फूल तितली, खुशबू बिखेरती थी।महकी हुई हवाएं, संवाद छेड़ती थी।कोयल सदा वनों में, हैं राग प्रीत गाये।मौसम वही सुहाना, मुझको सदा लुभाये।महकी हुई धरा मन, मेरा लुभा रही है।मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।भौंरे क
(यह मेरी प्रथम कविता थी जो दशम कक्षा में 02-04-1970 को लिखी थी) जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय ; आज विश्व के श्रवणों में, गूँजे तेरी पावन लय । नमो नमो हे जगद्गुरु, तेरी इस पुण्य धरा को
"होली गीत" होरी खेलन हम जईबे हो मैया गाँव की गलियाँसरसों के खेतवा फुलईबे हो मैया गाँव की गलियाँ।।रंग लगईबें, गुलाल उड़ेईबें, सखियन संग चुनर लहरैबेंभौजी के चोलिया भिगेईबें हो मैया गाँव की गलियाँ.....होरी खेलन.....पूवा अरु पकवान बनेईबें, नईहर ढंग हुनर दिखलईबेंबाबुल के महिमा बढ़ेईबें हो मैया गाँव की गलिय
बनारस की गली में दिखी एक लड़की देखते ही सीने में आग एक भड़की कमर की लचक से मुड़ती थी गंगा दिखती थी भोली सी पहन के लहंगा मिलेगी वो फिर से दाईं आंख फड़की बनारस की गली में... पुजारी मैं मंदिर का कन्या वो कुआंरी निंदिया भी आए ना कैसी ये बीमारी कहूं क्या जब से दिल बनके धड़की बनारस की गली में... मालूम ना श
वन निकले सजन, मेरा सूना अंगन, छोड़ चले गए हमारे सजना| मुझे लगी लगन, मेरा सूना अंगन, न आये मिलने को हमारे सजना|| जब याद सजन की आये, मेरा अंग- अंग दहलाये|ना खबर पिया आये, मिलाने को जिया घबराये||1|| भटके वन-वन, करें कठिन तपन, मोह माया को तजि गए हमारे सजना|जब हमको बताके जात
*गीत* मैं तो हूं केवल अक्षर तुम चाहो शब्दकोश बना दो लगता वीराना मुझको अब तो ये सारा शहर याद तू आये मुझको हर दिन आठों पहर जब चाहे छू ले साहिल वो लहर सरफ़रोश बना दो अगर दे साथ तू मेरा गाऊं मैं गीत झूम के बुझेगी प्यास तेरी भी प्यासे लबों को चूम के आयते पढ़ूं मैं इश्क़ की इस कदर मदहोश बना दो तेरा
श्वासों की आयु है सीमितये नयन भी बुझ ही जाएँगे !उर में संचित मधुबोलों केसंग्रह भी चुक ही जाएँगे !संग्रह भी च
संदेसे आते हैं हमें तड़पाते हैं Ke Ghar Kab Aaoge - Sandese Aate Hain LyricsSndese ate hain hamen tadpaate hainJo chitthhi ati hai wo puchhe jaati haiKe ghar kab aoge likho kab aogeKe tum bin ye ghar suna suna haiKisi dilawaali ne, kisi matawaali neHamen khat likha ha
झड़ने दो पुराने पत्तों को.🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂गिरने दो फूलों को जमीं पर.🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼कि नए पत्ते फिर आएंगे शाखों पर.🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿कि नए फूल फिर उगेंगे डाली पर.🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹ताकेंगे आसमान की ओर.🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴गिरने से मत डरो, झड़ने से ना डरो.बीज भी जमीन में गिरकर ही पौधे
ऐ मां मेरी यादों को दिल में बसा लेना| अब जाता है लड़ने को, ये देश भक्त दीवाना| विजय पाकर के ही आए, बस इतनी दुआ देना| ऐ मां मेरी यादों को दिल में बसा लेना| है दिल में मां मेरे, सरहद क
एकाकी मुझको रहने दो.-----------------------------पलकों के अब तोड़ किनारे,पीड़ा की सरिता बहने दो,विचलित मन है, घायल अंतर,एकाकी मुझको रहने दो।।शांत दिखे ऊपर से सागर,गहराई में कितनी हलचल !मधुर हास्य के पर्दे में है,मेरा हृदय व्यथा से व्याकुलमौन मर्म को छू लेता है,कुछ ना कहकर सब कहने दो !एकाकी मुझको रहने
नशा "नाश" का दूसरा नाम है.ये नाश करता है बुद्धि का.ये नाश करता है धन का.ये नाश करता है संबंधों का.ये नाश करता है नैतिक मूल्यों का.नाश नहीं निर्माण की तरफ बढ़ोयुवाओं तुम नशामुक्त समाज बनानेका संकल्प लो.शिल्पा रोंघे
मन की बंजर भूमि पर,कुछ बाग लगाए हैं !मैंने दर्द को बोकर,अपने गीत उगाए हैं !!!रिश्ते-नातों का विष पीकर,नीलकंठ से शब्द हुए !स्वार्थ-लोभ इतना चीखे किस्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !आँधी से लड़कर प्राणों के,दीप जलाए हैं !!!मैंने दर्द को बोकर अपने....अपनेपन की कीमत देनी,होती है अब अपनों को !नैनों में आने को, रिश
कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ?जिससे पहुँचे भाव हृदय तक,मैं वह गीत कहाँ से लाऊँ ?इस जग के ताने-बाने मेंअपना नाता बुना ना जाएना जाने तुम कहाँ, कहाँ मैंमार्ग अचीन्हा, चुना ना जाए !बिन संबोधन, बिन बंधन मैं स्नेहपाश बँध जाऊँ !कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ?नियति-नटी के अभिनय से
💥💥भौरा जिया 💥💥तुम जो गये हमसे दूर पिया ,दिल के और भी करीब हो गये।यह बात अलग है तुम्हें खो कर, हम मुफलिस और गरीब हो गये।मेरी साँसें, मेरी धड़कन, गाती रहती है इक गीत ।तेरे सिवा न दूजा होगा, तू तो जन्मो का मेरा मीत। दूर मुझे क्यों खुद किया । तुम जो गये हमसे दूर पिया ।।आज जो ये चाँ
🧚🏻♂🧚🏻♂🧚🏻♂🧚🏻♂🧚🏻♂🧚🏻♂🧚🏻♂ लोक गीत÷÷÷ बिटिया मेरी हुई सियानी """""""""""""****"""""""""बिटिया रानी अब तो हुई है सियानी।मुझे बोलेगी छोटी परी अब नानी।। होsssss माँ के अंगना में खेली- कूदीकरती रहती थी हरदम ठिठोलीबड़े जतन से पिता पढ़ायेपढ़ा कर उसे राह दिखायेघर की र
विधान---- आल्हा छंद मात्रिक- -- 31 मात्रा (16 , 15)पदान्त- ---21 🌹गीत🌹 """"**""""नारी ही है जननी तेरी, नारी ही तेरी पहचान। नारी का सम्मान करो रे, करो नहीं अपमान ।।नारी माता वो ही त्राता, है तेरी नारी से शान। रखो हमेशा उस नारी का, तुम भी सच्चे दिल से
घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक हैहर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध हैरूई के तकिये, रज़ाई, चादरें खेस है जिसमें के माँ की गन्ध हैताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँजंग लगी छर्रों की इक बन्दूक हैघर मेरा टूटा ..."शैल्फ" पे चुप सी कतारों में खड़ी अध्-पड़ी
"गीत"हिंदी हिंद की जान है, आन बान और शान हैभारत के हर वासी का, युग-युग से पहचान हैहर बोली में लहजा हिंदी, हर माथे पर सोहे बिंदीघर-घर में इंसान है, आँगन मुख मुस्कान है.......लिखना रुचिकर पढ़ना रुचिकर, रुचिकर है आठो डाँड़ीहिंदी के हर शब्द में बहती, गंगा यमुना की नाड़ीस्वर व्यंजन की आरती, प्रिय प्रतीक माँ