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झूलती मौत

9 अक्टूबर 2021

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ये जीवन जन्म की ही नहीं,
मृत्यु की भी रेखा है।
हर किसी ने यहाँ,
झूलती मौत को देखा है।

कोई नहीं बच सका,
इस दर्द भरे कहर से।
उठ जाती हैं लाशें,
आँखों के सामने ही,
इस भरे शहर से।

रोती बिलखती सी,
इस जिंदगी की कहानी है।
फिर भी नहीं सुधरने की,
सभी ने ठानी है।

झूलती मौत का साया,
सब ओर मंडराता है।
फिर भी बुरे कर्मों से,
न कोई आघाता है।

हमसे अच्छे तो वो शैतान हैं,
जो खुलकर वार करते हैं।
सामने ही तानकर,
अपनी तलवार रखते हैं।

इंसान तो ऊपर से,
निहतथा दिखाई देता है।
पर मुड़ते ही पीठ में,
खंजर भौंक देता है।

मुख में राम बगल में छुरी,
हो गया इंसान का साया है।
ऊपर से गोरी और अंदर छिपी,
काली भयानक छाया है।

मौत से बचकर न यहाँ से,
किसी को जाना है।
तो फिर क्यों इस जिंदगी से,
इतना घबराना है।

वीरों की तरह,
झूलती मौत का इंतजार करो।
दुश्मनों से भिड़ने का,
हमेशा सीना तैयार करो।

जो मौत से भिड़ गया,
वही तो अमर कहलाया है।
रोती हुई मौत ने भी उसको,
हँसकर गले लगाया है।
@ vineetakrishna 


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