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***तारों के नीचे ***

4 अक्टूबर 2021

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याद आ रहा  वो गुजरा जमाना,
भूला भूला सा कुछ आज।
ज़ब होती थीं चाँद सितारों की बातें,
हर बात पऱ मेरी था तुम्हें नाज।

तारों के नीचे बैठ के हम तुम,
रातें वो गुजारा करते थे।
तुम रहते थे छत पऱ अपनी,
बन चाँद मिल जाया करते थे।

कितने हसीन थे दिन वो प्यारे
हर ख़ुशी हमारी होती थी।
ज़ब मिलते थे दो दिल मतवाले,
चाँदनी भी फीकी होती थीं।

पैसे की खतिर क्यों तुमने,
इस दिल को यूँ बर्बाद किया।
क्यों ठुकराया एक पावन मन,
क्यों बुझा दिया आरती का दिया।

तुम इतना बदल जाओगे एक दिन,
ये तो कभी न सोचा था।
हर बात तुम्हारी थी झूठी,
हर बात में निकला धोखा था।

तारों के नीचे बैठ के अब भी,
नीली छतरी निहारा करते हैं।
क्यों दर्द दिया हमको इतना,
तेरी और इशारा करते हैं।

@ vineetakrishna


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