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***अबला नारी ***

4 अक्टूबर 2021

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जिंदगी के सफर की,
मैं हूँ एक अबला नारी।
पर सबला बनकर जीती हूँ।

नहीं पसंद मुझे कैद में रहना,
आवाज मैं मन की सुनती हूँ।

रीति रिवाज और तौर तरीके,
सबका आदर करती हूँ।

थोड़ी सी मैं हूँ पुरानी,
पर नई सोच भी रखती हूँ।

धर्म, संस्कार और आधुनिक युग के,
साथ भी थोड़ा चलती हूँ।

नहीं आती मुझे चाटुकारिता,
गर्म ठंडी सी बहती हूँ।

जरूरी नहीं सब खुश हों मुझसे,
खरी खोटी भी कहती हूँ।

नहीं करनी बस कोई गद्दारी,
ताकत मन में रखती हूँ।

कुछ कहकर, कुछ चुपरहकर,
रिश्तों को निभाकर चलती हूँ।

आंच न आये कोई वजूद पर,
नज़र झुकाकर चलती हूँ।

ठंडी हवा और खुले आसमान में,
हौसलों की उड़ान मैं भरती हूँ।

खुलकर जीती एकांत वास में,
ईश शरण में रहती हूँ।

@ vineetakrishna 


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Ranjeeta Dhyani

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