कहाँ हारे ,कहां बिखरे, कहां टूटे, कहां सिमटे, कहां गिरे और कहाँ सम्मलें कुछ पता नहीं। छोटी-छोटी कोशिकाओं के साथ जीते हैं अपनी जिंदगी। कहां मिटे,कहां लड़खड़ाए,कहाँ छलके और कहाँ बहके कुछ
प्रिय सखी । कैसी हो ।और गर्मी का क्या हालचाल है हमारे शहर मे तो अप्रैल के महीने मे ही जून जैसी गर्मी पड़ रही है ।पर दोष दे भी तो किस को ये हमारा ही किया धरा है भगवान को तो खा
**नारी हैं हम**तिनका तिनका जोड़ कर हमें अपना आशियाँ बनाना आता है। हम नारी है हमें कम में भी अपना संसार चलाना आता है। कुछ सपने हम भी देखते हैं वक़्त के झरोकें से ,मौका मिलते ही उसे पुरा करना
मेरा परिचय पूछ रहे हो, कैसे मैं पहचान बताऊँ, खिलते मुरझाते फूलों के, कैसा परिचय पत्र दिखाऊँ; नहीं प्रमाण पत्र है कोई, शिखर विजय या सिन्धु थाह की खोज रहा है अभी स्वयं ही, खुद को खुद अस्तित्व हमारा;
*रंग रंगीली होली *रंग रंगीली होली आई ।लाई खुशियों की सौगात।। भूल के सारे गिले शिकवे। प्रेम के रंग में रंग जाए एक साथ।। होली की इस हर्षित बेला पे,सबको मिले यश कीर्ति ,सम्मान औ
ज़िंदगी के इस सफर में,मुझे चलते ही जाना है।लाख आये मुश्किलें पर,आगे बढ़ते ही जाना है।सूरज की प्रचंड किरनों में,तप कर ज्वाला जैसा बनना है।चन्दा कि शीतल चांदनी बनकर,आसमान मे जगमगाना है।फूलों की महकती खुश्
**तू चल..**.कुछ करना हैअगर जीवन तुझे तो तू डटकर चल। इस भीड़ भरी दुनिया से तू जरा हटकर चल।बने बनाए रास्ते पर तो सभी चलते हैं यहां। कभी इतिहास को तू थोड़ा पलट कर चल। किसी और के साथ का तू
हैलो सखी। कैसी हो ।खाटू नरेश की नगरी खाटू से मेरा नमस्कार ग्रहण करो। हां सखी कल ही रात ट्रेन से चले थे खाटूश्यामजी के लिए सुबह छह बजे पहुंच गये थे यहां पर ।सारी रात ट्रेन मे चलने पर
पंचम शक्ति स्कंद माताश्रुति और समृद्धि से युक्त छान्दोग्य उपनिषद के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कंद है। उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचव दुर्गा स्कंदम
*डूबा समंदर भी*डूबा समंदर भी आज संसार की ऐसी हालत देखकर। चाओं तरफ छाई है मायूसी इस कदर। डरता है आज इंसान,इंसान की परछाई से। अपनों को देख पाना भी हो जाता है मुश्किल ऐसा है ये कुदरत का कह
मेरा मन...खामोसी को ख़ुद में समेटे हुए,मुस्कुराता हुआ मेरा मन!जीवन की पग डंडी पे ख़ुद को पाने की चाह में भटकता हुआ मेरा मन!तेरी हर रहमत पे शुक्रिया करती हूँ हर पल परकुछ है जिसे न पाने कि रंजिस में सजा
हैं यह नश्वर प्राण हैं यह नश्वर जीवन नश्वर है अपनी काया नश्वर हैं अंत नश्वर ही नश्वर हैं पर एक सृजन है प्रकृति एक सृजन है आत्मा एक सृजन है परमात्मा को जानना एक सृजन हैं आशा की किरण एक सृजन
***कागज**मन के कोरे कागज पे उभरती है अकसर एक तस्वीर पुरानी। अंगराई लेती है यादों कि सुबह में एक अल्हड़ प्रेम कहानी। सम्हाल लेती हूँ अपने दिल के,मासूम अरमां ये सोचकर। कागज की कश्ती है मे
**ये गुरुवाणी है या उनकी चित्रकारी**प्रकृति का है सौंदर्य अनोखा। चारों ओर छाई छटा मनोहारी है।। सोच रहा ये पुलकित मन मेरा।ना जाने इतनी खूबसूरत यह किसकी चित्रकारी है।। इन खूबसूरत वा
प्रिय सखी। कैसी हो।दो चार दिन हम पटल से नदारद क्या हुए हमारी सखी हमे मंच के डायरी सेक्शन में दिखाई नही दे रही। अभी समूह मे पूछा है।नही सखी तुम कैसे गायब हो सकती हो।तुम ही तो मेरे विचार और
*आजकल कुछ -कुछ अपने मन का करने लगी हूँ मैं*आजकल कुछ- कुछ अपने मन का करने लगी हूँ मैं। सुबह की चाय के साथ चंद पलों के लिए ही पर हर रोज अखबार के पन्ने पलटने लगी हूँ मैं। रखती
**दहेज**देखो आज ईश्वर के दरबार में वक्त से पहले यह कौन आई है, फिर दहेज के भेंट चढ़ी इस अबला ने ईश्वर सेगुहार लगाई है।।हे ईश्वर मेरा क्या कसूर है मुझे बस इतना बतला दो, कोई मुझ जैसी फिर बलि न चढ़े सके उ
*रिश्ते*जिंदगी जीने का खूबसूरत आधार होते हैं ये रिश्ते। हर खुशी में चार चाँद लगा दे ,बड़े अनमोल होते हैं ये रिश्ते।। बड़े नाजुक होते हैं रिश्ते की ये डोर । कितनी भी कोशिश कर लो इ
* मोहे रंग दे *मोहे रंग दे अपने रंग में ऐसे सांवरिया। और किसी को मैं नजर ना आऊं।। तुझको पहनू तुझको हीओढूं अपने तन पे ।बस तुझमें ही सिमटती जाऊं। । मोहे रंग दे अपने रंग में ऐसे सांवरिया।&
**जिंदगी तेरे हर एहसास को जिऊँ*"🌹🌹दिल तो ये कहता है जिंदगी तेरे हर एहसास को जिऊँ। तुम्हें खुद में समेटकर आते जाते हर एक सासँ में जिऊँ। गुजरे हर लम्हें को भुला दूँ, बस आने वाले खूबसूर