बड़ी अजीब है ये दुनिया अजीब-सी है दुनियादारी आधी दुनिया में फैली है भयंकर स्वार्थ की बीमारी स्वार्थ तो है ही भ्रम भी है अनंत काल तक जीने का खूबसूरत सा वहम भी है लोभ म
ना कोई ताला है ना कोई पिंजरा है तुम तो सिर्फ अपने मन में ही कैद हो ये जरूरी नहीं कि कि ऊंचे आकाश में पंख खोल उड़ जाओ पर कम से कम इतनी तो उन्मुक
सबसे मुश्किल चीज़ है 'इंसान होना 'सबसे आसान 'मुकर जाना ....'सबसे बड़ी खुशी है 'अपने 'सबसे बड़ा दुख 'खो देना ....'सबसे ज़्यादा तकलीफ देता है 'इंतजार 'सबसे बड़ी राहत है 'म
सावित्री बाई फुले - नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता, देश की पहली महिला शिक्षिका की जयंती है, जानें उनके संघर्ष की कहानीसावित्रीबाई फुले को समाज सेविका, कवयित्री और दार्शनिक के तौर पर पहचाना जाता है। लेक
बिना पतझड़ के पेड़ में नए पत्ते नहीं आतेबिना संघर्ष के जीवन मेंअच्छे दिन नहीं आते।बिना भट्टी में तपे लोहे सेऔजार बन नहीं पाते।बिना भारी दाब और ताप झेलेकोयले से हीरे बन नहीं पाते।बिना छेनी हथौड़े की
मैं हेमलता ,अंत में अपना परिचय देने के लिए माफ़ी लेकिन अगर आप को मेरा लेख अच्छा लगा तभी आप मेरे बारे में जानना चाहेंगे नहीं तो पहले परिचय देने पर भी आप परिचय नहीं देखेंगे ! मै एक हीलर हूं कृपया मेर
दो बार आजीवन कारावास की सजा पाने वाले स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर... विनायक दामोदर सावरकर स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ कवि और लेखक भी थे । सावरकर दुनिया के शायद अकेले स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्
दुर्गावती जब रण में निकली, हाथों में थी तलवारें दो। धरती कांपी आकाश हिला, जब चलने लगीं तलवारें दो।। अदम्य साहस और शौर्य की प्रतीक, रण में मुगलों के छक्के छुड़ाने वाली महान वीरांगना, गोंडवाना क
तुम खोजोगो मुझे हर तरफ, मैं तुम्हें ना मिलूंगा।ना धरती पर ना गगन पर , ना आग की लपटों में मिलूंगा।ना मिलूंगा बहती हवाओं में,ना सरिता ,सागर में मिलूंगा।ना मिलूंगा दुनिया के किसी कोने में,मैं मेरे शब्दों
तुम खोजोगो मुझे हर तरफ, मैं तुम्हें ना मिलूंगा।ना धरती पर ना गगन पर , ना आग की लपटों में मिलूंगा।ना मिलूंगा बहती हवाओं में,ना सरिता ,सागर में मिलूंगा।ना मिलूंगा दुनिया के किसी कोने में,मैं मेरे शब्दों
होठों पर मुस्कान लिए है . .और अंदर से उदास है हम ...बाहर भीड़ में हंसते हैं ...और अकेले में रोते है हम ...एक आपके चले जाने से ...कितना अकेले हो गए है हम ...🙁🙁✍🏻 ©रिया सिंह सिकरवार "अनामिका " ( बिहा
नव वर्ष का शुभागमन,सुख समृद्धि हो अपार।उत्तम स्वास्थ्य की कामना,हर्षोल्लास छाए चहुंओर।।लिए नया वह स्वरूप हो,साथ सादगी और संयम हो।नव वर्ष हो सबका मंगलमय,साथ शांति और सौहार्द्र हो।।होंगी क्या फिर चुनौति
पत्र लेखन का जमाना, बदल गया चलन आज। कल लिखते बातें कितनी, जो बयां नहीं करते उतनी।। दूर होने पर आती याद, पत्र लेखन करते फरियाद। मनमीत की याद में आंसू, निकलते थे दिन रात।। कभी बेटी को शादी बाद, आती थी म
कल्पना की उड़ान भरी, चांद सितारों की दुनिया। चांद की चांदनी रात में, झील सितारों की बगिया।। कल्पना की पराकाष्ठा पर, चांद पर भी घर बसने लगे। ऑक्सीजन की आपूर्ति को, मास्क सभी लोग पहने लगे।। कल्पना की उड
2050 की दुनिया में,हर इंसान रोबोट होगा।खाने में स्वाद नमक नहीं,कैप्सूल का उपयोग होगा।।वक़्त न पास किसी के,देखें आस पड़ोस भी।भीड़ भाड़ न होगी कहीं,न होंगे रिश्ते नाते भी।।सैर सपाटे के लिए सभी,हवा में उ
अलौकिक शक्तियों से,जुड़े हुए हम प्रकृति से।अदम्य साहस दिखा हम,शक्ति अर्जित कर प्रभु से।।अलौकिक तेज धरा पर,अवतरित बसंत सा कोमल।सूरज लालिमा छाई छटा,किरणों से प्रकाश निर्मल।।अलौकिक शक्तियों से,लबरेज स्फू
मृत्यु के करीब पहुंच ईश्वर ने पूछा,बता हे मानुष तेरी आखिरी इच्छा।मानुष ने सोचा विचारा अंत समय,अब पूछने से क्या फायदा होगा,क्या पूरी हो सकती आखिरी इच्छा,मृत्यु के करीब हूं अंत समय निकट,क्या खोया क्या प
अनकही ख्वाहिश ऐसी,जो बयां न की अब तक।ख्वाहिशों का अंत नहीं,मन मृगतृष्णा होता यहीं।।कभी खाने में स्वाद की,सैर सपाटे की ख्वाहिश।अनकही ख्वाहिश ऐसी,कहें अगर ख्वाहिश कैसी।।कभी बच्चों से जुड़े हुए,मंजिल मिल
किरदार अपना अपना,जीवन में सभी निभाते हैं।कभी हंसते कभी रोते हैं,कभी सुख दुःख देखते हैं।।किरदार अपना अपना,जीवन मंत्र सार सबका।कभी खुशी कभी रंजोगम,कभी लोक कल्याण सबका।।किरदार अपना अपना,निभाना पड़ता सभी