काढ़ लो दोनों नयन मेरे,
तुम्हारी और अपलक देखना तब भी न छोड़ूँगा ।
तुम्हारे पाँव की आहट इसी सुख से सुनूँगा,
श्रवण के द्वार चाहे बन्द कर दो।
चरण भी छीन लो यदि;
तुम्हारी ओर यों ही रात-दिन चलता रहूँगा।
कथा अपनी तुम्हारे सामने कहना न छोड़ूँगा,
भले ही काट तो तुम जीभ, मुझको मूक कर दो।
भुजाएँ तोड़ कर मेरी भले निर्भुज बना दो,
तुम्हें आलिंगनों के पाश में बाँधे रहूँगा।
ह्रदय यदि छीन लोगे,
उठेंगी धड़कनें कुछ और होकर तीव्र मानस में ।
जला कर आग यदि मस्तिष्क को भी क्षार का दोगे,
रुधिर की वीचियों पर मैं तुम्हें ढोता फिरूंगा ।
(राइनेर मारिया रिल्के-जर्मन कवि)