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कवि और प्रेमी

18 फरवरी 2022

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प्राप्त है इनको सखे! कुछ ज्ञान भी, अज्ञान भी। 

वायु हैं ये, 

विश्व के मन को बहा कर 

सत्य-सुषमा की दिशा की ओर करते हैं। 

मानवों में देवता जो सो रहे, उनको जगाते हैं । 

रात्रि के ये क्रोध हैं, 

हुंकार भरते हैं तिमिर में 

और हाहाकार करके भोर करते हैं । 

  

आंख के हैं अश्रु कोई भी न जिनको जानता है। 

सिन्धु-तट की वह मधुरता हैं 

न जो मिटती कभी है । 

  

बालुका पर मनुज के पद-चिन्ह जो पड़ते, 

ये जुगा उनको भविष्यत के लिए धरते।  

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रचनाएँ
सीपी और शंख
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सीपी और शंख' रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा अंग्रेजी से अनूदित विश्व की श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह है। बावजूद इसके ये दिनकर जी के व्यक्तित्व के रूपों को उद्घाटित करती उनकी अपनी मौलिक रचनाएँ भी प्रतीत होती हैं, क्योंकि उन्होंने भावों से प्रेरणा लेते हुए अपनी तरफ से ऐसे-ऐसे चित्रों की सृष्टि कर डाली है जो मूल में कहीं नहीं। इसलिए इन कविताओं में दिनकर जी के अपने चिन्तन और भाषा का परस्पर अन्योन्य सम्बन्ध भी परिलक्षित होते हैं।
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झील

18 फरवरी 2022
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मत छुओ इस झील को।  कंकड़ी मारो नहीं,  पत्तियाँ डारो नहीं,  फूल मत बोरो।  और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।     खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,  लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।  

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वातायन

18 फरवरी 2022
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मैं झरोखा हूँ  कि जिसकी टेक लेकर  विश्व की हर चीज बाहर झाँकती है।     पर, नहीं मुझ पर,  झुका है विश्व तो उस जिन्दगी पर  जो मुझे छूकर सरकती जा रही है।     जो घटित होता है, यहाँ से दूर है।  जो

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समुद्र का पानी

18 फरवरी 2022
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बहुत दूर पर  अट्टहास कर  सागर हँसता है।  दशन फेन के,  अधर व्योम के।     ऐसे में सुन्दरी! बेचने तू क्या निकली है,  अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर  सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?     सरकार!  और

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नाम

18 फरवरी 2022
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तुम कहाँ से आ रहे हो?  नाम क्या है?  वह पुकारु शब्द मत मुझको बताओ,  जो तुम्हारा आवरण है ।     पर, कहो वह नाम  जिसको फूल औ’ नक्षत्र, ये कहते नहीं हैं ।  नाम जो असहाय मर जाता उसी दिन  जिस दिवस ह

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कवि और प्रेमी

18 फरवरी 2022
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प्राप्त है इनको सखे! कुछ ज्ञान भी, अज्ञान भी।  वायु हैं ये,  विश्व के मन को बहा कर  सत्य-सुषमा की दिशा की ओर करते हैं।  मानवों में देवता जो सो रहे, उनको जगाते हैं ।  रात्रि के ये क्रोध हैं,  हुं

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तुम सड़क पर जा रहे थे

18 फरवरी 2022
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तुम सड़क पर जा रहे थे,  मैं बगल की वीथि पर;  तुम बहुत थे तेज,  मेरी चाल अतिशय मन्द थी।  और तब मैंने तुम्हें देखा ।  मगर, यह क्या हुआ?  पड़ गये मेरे चरण किस व्यूह में?  पाश था वह कौन जिसमें पाँव

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काढ़ लो दोनों नयन मेरे

18 फरवरी 2022
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काढ़ लो दोनों नयन मेरे,  तुम्हारी और अपलक देखना तब भी न छोड़ूँगा ।  तुम्हारे पाँव की आहट इसी सुख से सुनूँगा,  श्रवण के द्वार चाहे बन्द कर दो।  चरण भी छीन लो यदि;  तुम्हारी ओर यों ही रात-दिन चलता रह

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क्या करोगे देवा जिस दिन मैं मरूँगा?

18 फरवरी 2022
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क्या करोगे देवा जिस दिन मैं मरूँगा?  क्या करोगे जब क्लश यह टूट जाएगा ?  क्या करोगे जब तुम्हारा पेय मैं  नि:स्वाद हूँगा, सूख जाऊँगा ?    मैं तुम्हारा अनावरण हूँ  तुम मुझे ही ओढ़ कर सब कार्य करते ह

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जान सकता हूँ अगर साहस करूं

18 फरवरी 2022
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जान सकता हूँ अगर साहस करूं  श्रृंखला वह जो पवन में, वह्नि में, तूफान में है  और चल उत्ताल सागर में ।  जान सकता हूँ अगर साहस करूं  चेतना का रुप वह जिसमें  वृक्ष से झर का मही पर पत्र गिरते हैं । 

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समानांतर

18 फरवरी 2022
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याद आता है सतत वह दूसरा जलयान  एक प्रात:काल जिस पर दृष्टि भूली थी  चीर कर पौ के सुनहले आवरण को।  यों लगा, मानो, अँधेरे की हथेली पर  जगमगाता हो हमारा बिम्ब  अथवा अन्य युग कोई  कि कोई दूसरा जीवन स

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समाधान

18 फरवरी 2022
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 वे छोटे-छोटे समाधान, छोटे उत्तर  थे मुझे बहुत प्रिय, उन्हें निकट मैं रखता था ।  जब बड़े प्रश्न मन को खरोंच कर व्रण करते,     तब भी मैं लेकर आड़ इन्हीं नन्हे-नन्हे निष्कर्षों की  मानस की शान्ति बचा

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वेदना का रसायन

18 फरवरी 2022
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 दो, निरन्तर टीस दो, छोड़ो न मुझको,  मांस में यों ही शलाकाएँ चुभाओ,  देह को यों ही रहो धुनती, तपाती, ऐंठती  मेरी मनोरम वेदने!     हर टीस, हर ऐंठन नया कुछ स्वाद लाती है;  तोड़ कर पपड़ी हदय में ताजगी

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रूपान्तरण

18 फरवरी 2022
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पूछो कुछ मत और, मुझे सोने जाने दो।  उतर गया जब सम्मोहन, यह विश्व हो गया  अनजाना-सा । आयु लगी लगने कुछ ऐसी,  मानो, वह व्यर्थ ही बहुत लम्बी हो। जाने,  मैंने क्या खो दिया कि सब सूना लगता है ।     ऐ

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सुख

18 फरवरी 2022
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सुख क्या है? बतला सकते हो?  पंडुक की सुकुमार पाँख या लाल चोंच मैना की ?  चरवाहे की बंसी का स्वर?  याकि गूँज उस निर्झर की जिसके दोनों तट  हरे, सुगन्धित देवदारुओं से सेवित हैं?     सुख कोई सुकुमार

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आधा चाँद

18 फरवरी 2022
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सरसी में लो उतर गया अब चाँद,  व्योम अभी कितना निश्चल लगता है !     तारों की जो फसल ताल में लहराती है,  हँसिया बन कर चाँट काटने को आया है ।     किन्तु, एक मेढ़क उस पर यों झपट रहा है,  मानो, वह चन

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ज्योतिषी

18 फरवरी 2022
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दूर-वीक्षण-यन्त्र से तुम व्योम को ही देखते हो?  एक ग्रह यह भूमि भी तो है ।  कभी देखो इसे भी यन्त्र के बल से ।     न समझो यह कि धरती तो  हमारी सेज है, उत्संग है, पथ है,  उसे क्या चीर कर पढ़ना?  य

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वेनिस

18 फरवरी 2022
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मैं न भूलूँगा कभी रमणीय उस अदभुत नगर को  पश्चिमी जा में सलिल पर जो अवस्थित है ।  यह नगर संकेत है मानव-मिलन का ।  संघटन है वह अमित एकान्तताओं का ।     एकान्तताएँ द्वीप हैं ।  प्रत्येक औरों से अलग

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नामांकन

18 फरवरी 2022
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 सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैंने तुम्हारा नाम  याद है, तुम हंस पड़ीं थीं, 'क्या तमाशा है !  लिख रहे हो इस तरह तन्मय  कि जैसे लिख रहे होओ शिला पर।  मानती हूं, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा।  वायु

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मनुष्य की कृतियाँ

18 फरवरी 2022
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आदमी की उँगलियों में कल्पना जब दौड़ती है,  पत्थरों में जान पड़ जाती ।  मूर्तियाँ सप्राण होकर जगमगाती हैं ।  स्पर्श में संजीवनी है ।  आदमी का स्पर्श उँगली से उतर का  पत्थरों की मूर्तियों में वास करत

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