प्राप्त है इनको सखे! कुछ ज्ञान भी, अज्ञान भी।
वायु हैं ये,
विश्व के मन को बहा कर
सत्य-सुषमा की दिशा की ओर करते हैं।
मानवों में देवता जो सो रहे, उनको जगाते हैं ।
रात्रि के ये क्रोध हैं,
हुंकार भरते हैं तिमिर में
और हाहाकार करके भोर करते हैं ।
आंख के हैं अश्रु कोई भी न जिनको जानता है।
सिन्धु-तट की वह मधुरता हैं
न जो मिटती कभी है ।
बालुका पर मनुज के पद-चिन्ह जो पड़ते,
ये जुगा उनको भविष्यत के लिए धरते।