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कहानी

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बहुत पहले एक किसान हुआ करता था। वह बहुत ज्यादा कंजूस और लोभी था। उसके व्यवहार से सम्बन्धित रिश्तेदार और नजदीकी लोग परेशान थे। कुछ व्यपारी ने उससे सौदेबाजी करने की भी कोशिश की थी, लेकिन वे सभी विफल हो गए और सभी ने इसे ज्यादा नकारात्मक माना। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उ

कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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एलीना अपने नौवें जन्मदिन पर एक स्मार्टफोन चाहती था। उसकी मां और सौतेले पिता उसे फोन देने के लिए अनिच्छुक थे, क्योंकि वे मानते थे कि स्मार्टफोन बच्चे के लिए एक लक्जरी गैजेट हैं। सोचने विचारने के बाद आखिरकर एलीना के माता-पिता अपनी पुत्री को आश्चर्यचकित करने के लिए तैयार

कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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सफर के दौरान एक छोटा बच्चा शायद ही कभी अपनी आंखें खोल रहा था। वह बच्चा मेट्रो पर यात्रा के दौरान अपने चाचा की गोद में पड़ा था। वह हमेशा अपने सिर को अपने गोद में रखकर आराम करना पसंद करता था, क्योंकि वह सुरक्षित महसूस करता था। उसने ट्रेन की छत पर खाली जगह को देखना शुरू किय

कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

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पिछले एकघंटे से उसके हाथ मोबाइल पर जमे हुए थे। पबजी गेममें उसकी शिकारी निगाहें दुश्मनों को बड़ी मुश्तैदी से साफ कर रहीं थी। तकरीबन आधेघंटे की मशक्कत के बाद वो जोर जोर से चिल्लाने लगा। हुर्रे, हुर्रे, हिप हिप हुर्रे। आखिकार लेबल 30 पार कर हीं लिया। डेढ़ घंटे की जद्दोजहद के

कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

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माइकल नाम का एक चालक था। वह अपने काम में इतना व्यस्त रहता था कि शायद ही कभी अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ भोजन कर पाता। जॉर्ज के परिवार ने अक्सर शिकायत की कि वह उनके साथ पर्याप्त समय नहीं बिता रहा है, लेकिन उसका एकमात्र जवाब था ‘मैं यह सब तुम्हारे लिए कर रहा हूं, मैं अप

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पिताजी जोऱ से चिल्लाते हैं ।प्रिंस दौड़कर आता है, औरपूछता है…क्या बात है पिताजी?पिताजी- तूझे पता नहीं है, आज तेरी बहन रौनक आ रही है?वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी..अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ,हाँ और सुन…तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा जो तूने कल खरीदी है…उसे अच्छा लगेगा,प्रिंस – लेक

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एक आदमी फूल की दुकान के सामने रूका, जिसका उद्देश्य दो सौ मील दूर रहने वाली मां को गुलदस्ता भेजने के लिये बुकिग कराना था, ताकि कुछ फूलों को दो सौ मील दूर रहने वाली मां को भेजा जा सके। जैसे ही वह अपनी कार से निकल कर बाहर आया तो उसने देखा

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नोबुनगा(Nobunaga) नाम के एक महान जापानी योद्धा ने दुश्मन पर हमला करने का फैसला किया। हालांकि विपक्ष की तुलना में उनके सैनिकों की संख्या केवल 1/10 थी। वह यह जानता था कि इस युद्ध को जीत जीत जाएगा, लेकिन उनके सैनिकों को इस बात पर संदेह था। (i

सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे, मैं घर के कामों में व्यस्त थी। चोर! चोर! शोर सुनकर मैं बेडरूम की खिड़की से झाँककर देखने लगी। एक लड़का तेजी से दौड़ता हुआ गली में दाखिल हुआ उसके पीछे तीन लोग थे जिसमें से एक मंदिर का पुजारी था, सब दौड़ते हुये चिल्ला रहे थे, "पकड़ो,पकड़ो चोर है काली माँ का टिकुली(बिंदी) चुर

पहाड़ों से पलायनपहाड़ों से पलायन, यहां शिक्षा की अच्छी व्यवस्था ,अस्पताल की व्यवस्था व रोजगार नहीं है। लोग अच्छे रोजगार बेहतर शिक्षा की तलाश में शहरों को पलायन कर गए हैं। वे पहले छोटे शहरों में आते हैं वहां से अच्छी सुविधओं की तलाश मे बड़े शहरों को कूच कर जाते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती, साफ हवा पानी से

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आजकल घर से यूनिवर्सिटी पढ्ने के लिये जाना मुझे उन दिनों की याद दिलाता है कॉलेज और यूनिवर्सिटी पढ्ने जाता था । मोबाईल की जगह हाथ और बैग मे किताबें ही होती थी।काश वो आदत दोबारा पड़ जाये ।आजकल गौरव सोलंकी की पुस्तक "ग्यारहवीं A के लड़के"पढ़ रहा हुँ।इसके किरदार आपके शहर में भी होंगे तो जरूर, भले ही आपक

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अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंप

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उस समय जोग्शवरी रेल्वे स्टेशन मे प्लेटफार्म के आगे की तरफ से उसके कुछ मध्य भाग तक कम रोशनी हुआ क

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ये घटना सन् २०१३ की है, मैं तब मुँबई के Posh Area लोखंडवाला के पास

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