कहानी
उसका चाँद
विजय कुमार तिवारी
बचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटोरे में उतारती और हर कौर में खिलातीं। तब शायद समझ नहीं थी और लगता था कि जो मीठापन है,वही चाँद है।दादी ने कहा कि चाँद रोज रात में उसके सिरहाने आ खड़ा होता है और प्यार की थपकी देता है। वह महसूस करता कि दादी की थपकी बंद हो गयी है और पूरी रात चाँद मीठी-मीठी थपकी देकर सुलाता है। उसे ऐसा भी लगता कि चाँद उसके साथ रातभर जागता है और उसकी रक्षा करता है।
माँ को जब दूसरी सन्तान बेटी हुई तो माँ ने कहा कि चाँद तुम्हारी बहन बनकर आया है।कई दिनों तक वह बाहर नहीं गया,अपनी बहन को देखता रहा।उसने आसमान की ओर नहीं देखा। उसे खुशी हुई कि चाँद धरती पर आ गया है और बहन को निहारता रहता। एक दिन उसे आसमान में फिर चाँद दिखाई दिया तो वह दौड़ कर बहन को देखने कमरे में पहुँचा। चाँद यहाँ भी है और बाहर आसमान में भी। उसने माँ को बताया और पूछा कि दो चाँद कहाँ से आ गये। माँ ने कहा,"दादी ही चाँद बनकर आसमान में टिक गयी हैं। अब उसके पास दो दो चाँद हैं। अक्सर वह बहन के आसपास रहता और जब उसकी स्मृतियों में दादी आतीं तो आँगन में आकर चाँद से बातें करने लगता। इसतरह उसके सारे प्रश्नों का जवाब दादी से मिल जाते। अपनी भाषा में उसने बहन को भी समझा दिया कि तुम्हारा चाँद भी उधर उपर आसमान में है। बहन किलकारी मारकर हँसती तो वह खुशी से झूम उठता।
स्कूल जाते समय उसकी बेचैनी बढ़ जाती।चाँद को घर में माँ के पास छोड़कर जाना पड़ता और दिन में आसमान में दादी दिखती नहीं । स्कूल की प्रार्थना से उसने सीखा और अपनी सारी बातें मन ही मन आसमान के चाँद को सुना देता। उसे विश्वास हो गया कि दादी सब सुनकर उसे सोते समय बता देती हैं।
किसी दिन कहीं सुन लिया कि सब का अपना अपना चाँद होता है। उसने मान लिया कि ऐसा हो सकता है। समस्या तब खड़ी हुई जब उसने पिता को माँ से कहते सुन लिया कि तुम्हीं मेरा चाँद हो।दादी ने तो कभी नहीं बताया कि माँ भी चाँद है। माँ को चाँद मानने के लिये उसका मन तैयार नहीं होता था,वह भी पिता का चाँद। माँ को वह बहुत प्यार करता था और माँ भी उसे बहुत प्यार करती थी। यदि माँ चाँद है तो उसका चाँद है,पिता का कभी नहीं। इसपर वह पिता से लड़ने को भी तैयार हो गया। माँ ने गौर किया कि बेटा थोड़ा खिन्न रह रहा है तो उसने पूछ ही लिया पर उसने कोई जवाब नहीं दिया।
एक दिन वह माँ के गले लग गया और दुलार दिखाने लगा। उसने पूछा,'माँ,तुम भी चाँद हो?"
माँ हँस पड़ी," हाँ,मैं भी कभी चाँद थी।"माँ को अपने बचपन से लेकर जवानी के दिन की मधुर स्मृतियाँ कौंध गयी।याद आया,अभी हाल में ही उसके पिता ने अन्तरंग क्षणों में उसे अपना चाँद कहा था। उसके मुह से निकल गया कि मैं तुम्हारे पिता का चाँद हूँ।वह बहुत गुस्सा हुआ," नहीं,तुम मेरा चाँद हो।" माँ को स्थिति समझते देर नहीं लगी। उसने खुश करने के लिये कहा कि हाँ हाँ,मैं तुम्हारा ही चाँद हूँ। उसे खुशी हुई और एक तरह की जीत भी। उसने दूर खड़े पिता को हँस कर देखा मानो कह रहा हो,बड़े आये चाँद लेने वाले। माँ ने प्यार से समझाया,"तुम्हारे पास पहले ही दो दो चाँद हैं और पिता के पास एक भी नहीं। तुम चाहो तो मुझ चाँद को बेचारे पिता को दे दो। देखो कैसे दुखी हो रहे है? "फिर ठीक है,"उसने खुश होकर कहा और पिता को आवाज दी," ले लो चाँद तुम भी।" पिता मुस्कराये और उसे गोद मे उठा लिया'।
थोड़ा बड़ा हुआ। स्कूल की कक्षायें उत्तीर्ण की। अगली कक्षा की मैडम बहुत स्नेह से पढ़ाती थीं। उसे बहुत दुलार से पेश आती थीं।वह उन्हें पसंद करता था।एक दिन उनकी सुन्दरता की चर्चा करते हुए दूसरी मैडम ने कहा,"आज तो तुम चाँद सी सुन्दर लग रही हो।"उसके कान खड़े हो गय़े। मन में चिन्ता और बेचैनी बढ़ने लगी। उसने अपनी मैडम से कहा,'आपसे एक बात पूछनी है।"
"हाँ हाँ,बोलो-क्या बात है?"
"आप चाँद हो"उसने धीरे से पूछा।
पहले तो उनकी समझ में कुछ भी नहीं आया। थोड़ी देर बाद उन्हें वस्तु स्थिति समझ आयी तो हँस पड़ी। अक्सर लोग उनके सौन्दर्य की चर्चा में चाँद से तुलना करते हैं। बोली,"तुम्हें किसने कहा?"
"उस दिन वो मैडम आपको बोल रही थी,"उसने कहा और पूछ बैथा," आप किसकी चाँद हो?"
बच्चे की बालसुलभ बातों को सुनकर वह खिलखिला कर हँस पड़ी और मुस्करा कर बोली," तुम्हारा।"
वह बहुत खुश हुआ और घर जाकर माँ से कहा,"मेरी मैडम भी मेरा चाँद हैं।"माँ को भी हँसी आ गयी। उसने रात में आसमान की ओर देख कर कहा," दादी,आज एक और चाँद मुझे मिला है।"उसे लगा,दादी मुस्करा रही हैं और कह रही है कि हाँ,मुझे पता है।
इण्टर में उसे एक विचित्र स्थिति का सामना करना पड़ा।पूरी कक्षा में साँवली सी मात्र एक लड़की थी। वह मन ही मन सोचता रहता था कि यह भी किसी न किसी की चाँद होगी ही। उसके चिन्तन में यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि सबके अलग-अलग चाँद हैं। उस लड़की ने उसकी नोटबुक वापस की तो उसमें एक पत्र मिला। गलती से उसने रख दिया था। वह समझ गया कि किसी ने उसे प्रेम पत्र दिया है। उसने वापस किया तो लड़की हँस पड़ी। उसने पूछा,"किसका है?"लड़की ने हँसते हुए जवाब दिया,"मेरे सूरज का। वह मेरा सूरज और मैं उसका चाँद।" वह भी हँस पड़ा।
उसने नौकरी शुरु की तो पिता ने माँ से कहा कि इसके लिये एक चाँद सी दुल्हन खोजते हैं।माँ बहुत खुश हुई। माँ ने उससे पूछा,'"क्या कोई चाँद तुम्हें मिली है?"वह शरमा गया। माँ ने कहा,"हम लोगों ने एक लड़की पसन्द की है। तुम भी चलो,देख लो।"
शादी हुई बहुत धूमधाम से और बहुत सुन्दर दुल्हन आयी। उसने आसमान में अपनी दादी को देखा। उसकी आँखें भर आयीं। उसे खुशी हुई कि दादी ने आशीर्वाद दिया। वह निकल पड़ा अपने चाँद को लेकर चाँद दिखाने। चारो ओर शीतल चाँदनी फैली थी और दोनो मुस्करा रहे थे।