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कहानी

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यह उन दिनों की बात है ,जब उम्र कुछ ऐसी थी की ज़िन्दगी के बड़े से बड़े फैसले कैन्टीन मे चाय और समोसो के साथ बनते और बिगड़ जाते थे.यह उन दिनों की बात है जब ज़िन्दगी, इनटरवल के पह

रात के दस बजे हैं सब अपने -अपने कमरों में जा चुके हैं। आरुषि ही है जो अपने काम को फिनिशिंग टच दे रही है कि कल सुबह कोई कमी ना रह जाये और फिर स्कूल को देर हो जाये। अपने स्कूल की वही प्रिंसिपल है और टीचर भी, हां चपड़ासी भी तो वही है ! सोच कर मुस्कुरा दी। मुस्

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नमस्कार मित्रो,मेरे युट्युब चैनल पर आपका स्वागत है|"मेरे मन की" पर ढेरो साहित्यीक रचनाओं जैसे कवितायेँ, गज़लें , कहानिया , मुक्तक , शायरी , लेख और संस्मरण आदि का आनंद ले सकते हैं|इसके साथ ही आप हिंदी साहित्य से जुड़ी सभी जानकारीयाँ और खबरो का आनंद उठाते रहेंगे|हिंदी सा

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आकाश की दूसरी शादी हो चुकी है, पहली शादी उसने 21 साल की उम्र में ही कर ली थी। घरवालों की मर्जी के खिलाफ लव मैरिज की थी। पहली पत्नी का नाम राधा था। 2 साल पहले ही राधा चल बसी। cancer हो गया था उसे, आकाश अपनी लाख नामुमकिन कोशिशों के बाद भी अपन

अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जीवन में अजीव सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशिया डालने के लिए कदम उठाया था.लेकिन .....पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद .......चंद दिनों पूर्व जिन खावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था.....

कहानी- कुंए को बुखार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश ’ अंकल ने नहाने के कपड़े बगल में दबाते हुए कहा, ‘‘ रोहन ! थर्मामीटर रख लेना। आज कुंए का बुखार नापना है ? देखते हैं कुंए को कितना बुखार चढ़ा है ?’’ ‘‘ जी अंकल ! थर्मामीटर रख लिया ,’’ रोहन ने कहा

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शायद आपने इस किताब को पढ़ा होगा या शायद नहीं भी पढ़ा होगा | खैर मैं तो कहूँगा कि इसे एक बार तो आपको जरूर पढ़ना ही चाहिए | इस किताब की कवर पेज को देखते ही आपके मन में कौतुहल जाग जायेगा कि आखिर इस किताब में क्या है? आप बेचैन होंगे जानने के लिए और इसे पढ़ने के लिए भी |अगर आप बिहार से है, तो आप खुदको शायद

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कहानी इसी समाज से उठायी जाती हैं बस नाम और शहर बदले जाते हैं ऐसी ही एक कहानी नहीं मैं कड़वी सच्चाई से रूबरू हुई थी मेरे पति की क्लिनिक और हमारा घर एक ही बिल्डिंग में है| एक महिला यदि उसके साथ दो बच्चे बड़ी लडक

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परमात्मा को पाना है तो अहंकार को छोड़ना ही पड़ेगा - और भी अन्य बेहतरीन कहानियां पड़ें - Hindi Moral Stories एक राजा था, उसने नाम कमाया और ऐश्वर्या भोगा. फिर मन भर गया. लगा की अब सत्य स्वरुप परमात्मा की खोज

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बात बहुत छोटी सी है... पता नहीं, कहनी भी चाहिये या नहीं...!दरअसल, कहना-सुनना एक खास परिवेश एवं माहौल में ही अच्छा होता है। क्यूं...?इसलिए कि विद्वानों ने कहा है, ‘शब्द मूलतः सारे फसाद की जड़ है’...मगर, मामला तो यह भी है कि खामोशी भी कम फसाद नहीं करती...!चलिये, कह ही दे

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बहुत साल पहले, एक फिल्म त्रिशूल देख कर आए मेरे चचा बेहद बेहद खफा थे। बस शुरू हो गये – हद है, तहजीब गयी तेल बेचने, अब तो सिनेमा देखना ही छोड़ दूंगा।हिम्मत जुटा कर मैंने उनसे पूछा, किस बात से नाराज हैं?कहने लगे, सिनेमा में कभी भी गलत बात नही दिखानी चाहिए, सिनेमा हमारे समाज की तहजीब का हिस्सा है। समझाया

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हमारे एक चचा जान हमारी रोज बढ़ती औकात से हमेशा दो मुट्ठी ज्यादा ही रहे। इसलिए, भले ही कई मुद्दों पर उनसे हमारी मुखालफत रही पर उनकी बात का वजन हमने हमेशा ही सोलहो आने सच ही रक्खा।वो हमेशा कहते, जो भी करो, सुर में करो, बेसुरापन इंसानियत का सबसे बड़ा गुनाह है। लोग गरीब इसल

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पैंतालीस वर्षों से दुनियाभर में समाजसेवा और निष्पक्ष खोजी पत्रकारिता कर रहे कनाडा के चार्ली हैस को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई। नोबेल संस्था की आधिकारिक घोषणा के बाद से उनके निवास के बाहर पत्रकारों का तांता लगा था। अपनी दिनचर्या से समय निकाल कर उन्होंने एक प्रेस वार्ता और कुछ बड़े टीवी, र

विशेष हमेशा की तरह इस बार भी ऑफिस की तरफ से एक टूर पर था. वैसे तो उसके लिए टूर पर जाना कोई नई बात नहीं थी फिर भी इस बार उसे एक अजीब सी ख़ुशी हो रही थी. शायद इसलिए क्यूँकी इस बार टूर पर और कहीं नहीं उसे उसके अपने शहर जाना था. हमेशा की तरह उसने रिजर्वेशन सेकंड AC में किया हुआ था. स्टेशन वो टाइम पर पहुं

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पिछले भाग में एक साधारण सा व्यक्ति नरेंद्र अपने घर जाने के लिए ट्रैन पकड़ता है लेकिन जब वो उठता है तब वह अतीत के नरसंहार को सामने पाता है जो अंग्रेज कर रहे थे| वो चार अंग्रेजों को मार कर नरसंहार को रोक देता है लेकिन बेहोश होते-होते बागियों के हाथ लग ज

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शुक्रवार की वो सुनसान रात जहाँ लोग रात के ९ बजे से ही घर में दुबक जाते हैं, वहाँ रात ९ बजे से ही कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छा जाता है। कड़ाके की इस ठंड में हड्डियाँ तक काँपने लगती हैं, बाहर इंसान तो क्या कुत्ते का बच्चा भी नजर नहीं आता फिर भी कुत्तों के रोने की आवाज़ क

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*धूमिलचाँद*हिन्दुस्तान भवन काहॉल पूरा भरा हुया था | हर स्टाल पर महिलाओं की भीड़ उमड़ी हुई थी | कुछ पत्रकारफोटो क्लिक करने में लगे थे | मोतियों से बने सुन्दर-सुन्दर मंगलसूत्र..पायल..

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1. Finding a Local Tutor THE CRISIS & THE RESOLUTION W W W . T U T S T U . C O M2. Meet Rahul Rahul, a cheerful boy of 14, who lives in Janakpuri, New Delhi. Rahul’s father is employed and is the only earning member. Rahul's mom has been

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The storyof Rahul who struggled to find a local tutor. Who would be competent enough toaid him recovering his old enthusiasm in academics. Belonging to thelower-middle-class family, Rahul's parents couldn't provide him with luxuriesbut still, they left no stone unturned w

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