कहानी
माँ-बेटी
विजय कुमार तिवारी
उम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से मुझे अपलक देखती रहती है।ऐसे में उसकी आँखें भर आती हैं और आँसू गालों पर लुढ़क आते हैं।मन पीड़ा से भर उठता है और भागकर कमरे मे रो पड़ती हूँ।
दीदी मुझसे आठ साल बड़ी है और भाई चार साल बड़ा है। पिता ने दीदी की शादी बहुत धूमधाम से की और लगभग दो साल की उसकी बेटी है।दीदी और जीजा दोनो स्थानीय इण्टर कालेज मे पढ़ाते हैं और बगल वाली कालोनी में घर ले लिये हैं।भाई अपनी नौकरी की जगह पर रहता है।पुस्तैनी मकान में भाभी और माँ के साथ मैं भी रहती हूँ।पिता को गुजरे चार साल हो गये हैं और यही मूल कारण है मेरी शादी में देर होने का।एक कारण और भी है--शायद मैं उतनी सुन्दर और आकर्षक नहीं हूँ।दीदी को पिता का रंग-रुप और माँ की शारीरिक बनावट मिली है। पिता खूब गोरे थे तो माँ थोड़ी साँवली।मुझे माँ का रंग-रुप मिला है।दीदी को जीजा ने देखते ही पसन्द कर लिया और शादी हो गयी।पिता ने मेरे लिये लड़का देखना शुरु किया ही था कि अचानक हृदय गति रुक जाने से उनकी मृत्यु हो गयी।घर के सारे बाहरी कामों का बोझ मुझपर आ पड़ा।मैंने हिन्दी से एम.ए किया है। जीजा ने उनके घर के पास ही नये खुले स्कूल मे मेरी नौकरी लगवा दी है।मेरे लिए अच्छा हुआ। घर में पड़े-पड़े बोर हो रही थी।अक्सर दीदी के घर चली आती और उसकी बेटी के साथ खेलती।कभी-कभी भाभी भी अम्मा को लेकर दीदी के पास आ जाती और पूरी शाम बीताकर सभी साथ ही घर वापस लौटते।कभी-कभी हम सभी यहीं से खा-पीकर जाते।
बीच-बीच में अम्मा गम्भीर हो जाती और जीजा से पूछती,"आया क्या ध्यान मे कोई लड़का?"
जीजा मुस्करा कर मुझे देखते और माँ से कहते,"लगा हुआ हूँ अम्मा जी,आप चिन्ता ना करें।"
अम्मा चुप हो जाती।मैं समझ जाती-आज अम्मा भीतर ही भीतर रोयेगी।मेरा मन भारी हो जाता और रोने-रोने का करता। अक्सर अम्मा से कहती रहती हूँ,"मुझे शादी ही नहीं करनी,तुम क्यों हलकान रहती हो?अपना दिल दुखाती रहती हो।"
ढबढबायी आँखों से अम्मा मुझे निहारती और चुप हो जाती।मेरा मन टूटकर रह जाता।
दीदी के यहाँ गये हुए बहुत दिन हो गये थे तो दीदी ही अम्मा से मिलने आ गयीं।उसने बताया कि नीतू तो दिनभर बगल वाले घर में घुसी रहती है।उनके घर के पहले वाले घर में कालेज के कोई शिक्षक आयें हैं और उनके साथ उन्हीं का एक छात्र भी है।बहुत अच्छा और मिलनसार लड़का है।उसके साथ शान्ति से खेलती रहती है।उसको परेशान भी नहीं करती और खूब खुश रहती है।दीदी ने मुझसे कहा,"तू आना ना,मिलवाऊँगी तुझे।"
मैने देखा,अम्मा गम्भीर हो गयी।उसका डर चेहरे पर साफ देखा जा सकता है।"अब इसका क्या करु मैं?" मैंने मन ही मन सोचा,"अम्मा कुछ भी सोचने लगती है और दुखी होती है।"
जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ,वहाँ एक कार्यक्रम रखा गया।शिक्षक-शिक्षिकायें,छात्र-छात्रायें मिलकर अनेक प्रस्तुति देने वाले थे।मेरी भी एक प्रस्तुति थी जिसमें मुझे एक दूसरे कलाकार शिक्षक के साथ थोड़ा समीपतर होना था।माँ बहुत रोयी उस दिन और सब छोड़कर चली आयी। उस दिन से उसकी चिन्ता और बढ़ गयी है।उसने भाई को बुलवाया और खूब नाराज हुई।भाई ने कहा,"जीजा देख रहे हैं,मैं देख रहा हूँ। तुम चिन्ता मत किया करो अम्मा।कोई ढंग का मिले तब न बातें की जाये।"
अम्मा को यह सब ना सुनना है और ना समझना है।उसे विश्वास ही नहीं होता कि कोई उसकी यह बात सुनता है।भाई ने बताया कि जो भी लड़का मिलता है,कोई ना कोई कमी दिख जाती है। जानबुझकर गढ्ढे में तो नहीं डाला जा सकता।
दीदी के साथ पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं के यहाँ भी होने वाली पार्टियों में उनका भी निमन्त्रण रहता है।बहुत भीड़ होती है।बहुत से अविवाहित युवा शिक्षक आते हैं।अम्मा बहुत सहमी-सहमी रहती है।मुझे अम्मा को लेकर बहुत सावधान रहना पड़ता है।एक रात मैंने अम्मा को समझाना चाहा,"देखो अम्मा,तुम्हारी बेटी कोई राजकुमारी नहीं है कि कोई आयेगा और उठा ले जायेगा। तुम अपने भी दुखी रहती हो और मुझे भी दुखी कर देती हो।मुझपर भरोसा किया करो,तुम्हारी भावना के विपरीत कुछ भी नहीं करुँगी।"
अम्मा खूब रोयी। उसका दुख समझना मेरे लिए मुश्किल था। मुझे भी रुलाई आ गयी।
मैने पार्टियों में जाना छोड़ दिया। सभी सार्वजनिक उत्सवों में जाना बंद कर दिया और अम्मा को खुश देखने के लिए लगी रहती।सबसे बड़ी समस्या थी कि अम्मा अपनी पीड़ा खुलकर बताती भी नहीं थी।शायद अनेक स्तरों पर,बहुत कोणों से दुख का चित्र खिंच लेती और डूबती-उतराती रहती थी।
किसी दिन मैं दीदी के घर गयी तो नीतू जिद्द की कि मेरे अंकल के पास चलो।दीदी ने कहा," हाँ चली जाओ,बहुत अच्छा लड़का है।"
वह उठ खड़ा हुआ और बैठने के लिए आग्रह किया।मैं बैठ गयी।वह भीतर गया और पानी लाकर दिया।मैंने कहा,"नीतू आपको बहुत परेशान करती है।"
" नहीं नहीं,बिल्कुल नहीं,बहुत प्यारी और समझदार बच्ची है। उसने वो नोटबुक दिखाया जिसमे नीतू लगी रहती है,आड़ी-तिरछी रेखायें बनाती है और खुश होती है।"
उसने कहा,"बच्चों और बूढ़ों के मन को समझना चाहिए।उनकी कोई बड़ी मांग नहीं होती।उनका मनोविज्ञान समझना चाहिए।दोनो चाहते हैं कि कोई उनकी अवहेलना नहीं करे।सभी उनका ध्यान रखें और उनसे बातें किया करे,पूछा करे।सबसे बड़ी बात यह है कि ये दोनो हमारे सबसे अच्छे शुभचिंतक होते हैं। इनकी अपेक्षायें बहुत कम होती हैं।ये हमेशा कुछ देना चाहते हैं।इनकी लेने की प्रवृति नहीं होती।इन्हे हमेशा अपने ड्राईंग रुम में सजाकर,सम्मान के साथ रखिये।इनसे दूर मत जाईये,इनके पास रहिये।नीतू मेरी सब बात समझती है।मुझे बताना नही पड़ता।"
"आश्चर्य है"मैंने कहा।मन में उनके प्रति श्रद्धा जागी। उनकी बातों के आलोक में विश्वास जागा कि अब मैं अम्मा को समझा लूँगी और मुझे भी निराश नहीं होना चाहिए। नीतू मुस्करा रही थी और हम दोनो हँस पड़े।