shabd-logo

कहानी

hindi articles, stories and books related to kahani


featured image

कुछ कहानियां बहुत अलग होती हैं और जो दिल को छू जाती हैं वो ही दिल में उतरकर लंबे समय तक याद रह जाती हैं। कहानी लिखने का तरीका बहुत अलग होता है और सारा खेल लेख का होता है कोई कम शब्दों में बहुत कुछ लिख देते हैं तो कोई ज्यादा शब्दों में भी अपनी बातें समझा नहीं पाते। यहां इस कहानी में एक महिला अपने बेट

featured image

आज रिंकू को आने दो आते ही कहती हूं बेटा जल्दी ही मेरा चश्मा बदलबा दो अब आँखों से साफ नही दिखता।लो आ भी गया रिंकू आतुर होकर मैन की बात कह डाली। " अरे माँ दो मिनट चैन से बैठने भी नही देती कौन सी तुम्हे इस उम्र में कढाई सिलाई करनी है? और फ

featured image

हर बार की तरह एक और दिलचस्प स्टोरी आपके लिए मैं लेकर आई हूं। इस कहानी में आपको कुछ दिलचस्प बातें बताने वाली हूं जिसे पढ़कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। एक लड़की जब अपने मायके जाती है तो उसका मन किस तरह से प्रफुल्लित होता है वो इस कहानी में मैंने बताने की कोशिश की है। पसंद आए तो दूसरों को भी पढ़ाइएगा।एक और

featured image

अनिमेश आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था । बचपन से हीं अनिमेश के पिताजी ने ये उसे ये शिक्षा प्रदान कर रखी थी कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक आदमी का योग्य होना बहुत जरुरी है। अनिमेश अपने पिता की सिखाई हुई बात का बड़ा सम्मान करता था । उसकी दैनिक दि

सरहदपार वालाप्यारगुलज़ारसाहब ने क्या ख़ूब लिखा है... आँखों कोवीसा नहीं लगता,सपनो की सरहद नहीं होती...मेरी यहकहानी भी कुछ ऐसी ही है, इन पंक्तियों के जैसी, जिसे किसी वीसा या पासपोर्ट कीज़रूरत नहीं है आपके दिल तक पहुंचने के लिए. बस यूँ ही ख़्व

featured image

चलिये ,सोना की कहानी को आगे बढ़ाते है और जानते है कि -कैसे उनका बेटा हीरा बन चमका और अपने माँ के जीवन में शीतलता भरी रौशनी बिखेर दी। सोना की बाते सुन माँ ने उन्हें पहले चुप कराया और फिर सारी बात बताने को कहा। सोना ने बताया कि- मेरी बहन ने मेरे बेटे को अब आगे पढ़ाने से म

featured image

"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी। कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली

featured image

इस कथा के दो पात्र है . एक भक्ति रस का उपासक तो दूजा श्रृंगार रस का उपासक है. दोनों के बीच द्वंद्व का होना लाजिमी है. ये कथा भक्ति रस के उपासक और श्रृंगार रस के उपासक मित्रों के बीच विवाद को दिखाते हुए लिखा गया है.ऑफिस से काम निपटा के दो मित्र कार से घर की ओर जा रहे थे

featured image

गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गांव के पास से गुजरे। गांव के बच्चों को एक खेल के मैदान में सहम कर खड़े हुए देखा। गौतम बुद्ध ने बच्चों से पूछा कि किस बात से वे डरे हुए हैं?बच्चों ने गौतम बुद्ध को बताया कि यहां पर वो सारे गेंद से खेल रहे थे। लेकिन वह गेंद उस बरगद के पेड़ के नीचे चली गई है। अब वह अ

कहानी उसने कभी निराश नहीं किया-1विजय कुमार तिवारी"अब मैं कभी भी ईश्वर को परखना नहीं चाहता और ना ही कुछ माँगना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी याचना नहीं की है और परखने की हिम्मत भी। हर बार मैं बौना साबित हुआ हूँ और हर बार उसने मुझे निहाल किया है।दावे से कहता हूँ-गिरते हम हैं,हम पतित होते है

कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-2विजय कुमार तिवारीसौम्या शरीर से कमजोर थी परन्तु मन से बहुत मजबूत और उत्साहित। प्रवर जानता था कि ऐसे में बहुत सावधानी की जरुरत है। जरा सी भी लापरवाही परेशानी में डाल सकती है। पहले सौम्या ने अपनी अधूरी पढ़ायी पूरी की और मेहनत से आगे की तैयारी

कहानीउसने कभी निराश नही किया-3विजय कुमार तिवारीजिस प्रोफेसर के पथ-प्रदर्शन में शोधकार्य चल रहा था,वे बहुत ही अच्छे इंसान के साथ-साथ देश के मूर्धन्य विद्वानों में से एक थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की निर्धारित तिथि के पूर्व शोध का प्रारुप विश्वविद्यालय मे जमा करना था। मात्र तीन दिन बचे थे।विभागाध्य

कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-4विजय कुमार तिवारीप्रेम में जादू होता है और कोई खींचा चला जाता है। सौम्या को महसूस हो रहा है,यदि आज प्रवर इतनी मेहनत नहीं करता तो शायद कुछ भी नहीं होता। सब किये धरे पर पानी फिर जाता। भीतर से प्रेम उमड़ने लगा। उसने खूब मन से खाना बनाया। प्रवर की थकान कम नहीं हुई थी परन्

कहानीगाँव की लड़की का अर्थशास्त्रविजय कुमार तिवारीगाँव में पहुँचे हुए अभी कुछ घंटे ही बीते थे और घर में सभी से मिलना-जुलना चल ही रहा था कि मुख्यदरवाजे से एक लड़की ने प्रवेश किया और चरण स्पर्श की। तुरन्त पहचान नहीं सका तो भाभी की ओर प्रश्न-सूचक निगाहों से देखा। "लगता है,चाचा पहचान नहीं पाये,"थोड़ी मु

featured image

गुड़िया का नाम श्वेता जरूर था पर रंग थोड़ा सांवला ही था. तीन साल की श्वेता सारे कमरों में उछलती कूदती रहती थी. उसकी दोस्ती महतो से ज्यादा थी जो उसे किचन से कुछ ना कुछ खाने के लिए देता या फिर रोती तो दूध की बोतल तैयार कर के दे देता था. शाम की दोस्ती दादी से थी जो उससे धीमी ध

रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेच

चार बजने वाले थे। मुझे पूजा के लिए मन्दिर जाना था इसलिए मैं पूजा की थाली सजा रही थी। दोनो बच्चे अपना होमवर्क करने में व्यस्त थे।छोटे-छोटे बच्चो के इतने भारी -भारी बस्ते ,इन

आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाटा ही कभी

शुभा सुबह से ही जल्दी -जल्दी अपने काम को निपटाने में लगी हुई थी। वैसे तो ये रोज के ही काम थे,पर आज उन्हे निपटाने की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी।सुबह की चाय से लेकर झाडू-पोछा फिर नाश्ता और उसके बाद खाने की तैयारी बस ये ही तो दिनचर्या थी उसकी । हर लडकी को अपने ससुराल में

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए