स्नेह निर्झर
कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा