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कहानी

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"रुबिया" रुबिया के आँखों में आंसू रुकने के नाम नहीं ले रहे थे। हबस-हबस कर रोये जा रही थी और आंसुओं की धार को अपने दुपट्टे में समेटते जा रही थी। कोई चारा भी तो नहीं था, अपना घर होता तो अबतक कइयों की पुचकार से अघा गई होती। कइयों के कंधे का सहारा मिल गया होता, और उसके आंसू

वह रात भी एक रात थी, जिसके आगोश में कितनों के अरमान डोली चढ़कर जनवासे की झालर की तरह झूम रहे थे तो कितनों की हाथों में पिया की मेंहदी लाल ठस्स होकर अटखेलियां कर रही थी। कहीं शादी की शहनाई तो कहीं बैंड की बांसुरी अपने अपने सुर पर लोगों को नाचने पर मजबूर कर रही थी। कभी गर्मी और बैसाख का महीना अमूमन शा

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नीरजा भनोट को काव्य कॉमिक के रूप में श्रद्धांजलि देने की कोशिश की है . अब यह आप बताइये इसमें कितना सफल रही मेरी टीम .Available (Online read or download):Readwhere, Scribd, Author Stream, ISSUU, Freelease, Slideshare, Archives, Fliiby, Google Books, Play store, Daily H

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(धारावाहिक उपन्यास : पहली किश्त)लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि फिर सनूबर का क्या हुआ... आपने उपन्यास लिखा और उसमें यूनुस को तो भरपूर जीवन दिया. यूनुस के अलावा सारे पात्रों के साथ भी कमोबेश न्याय किया. उनके जीवन संघर्ष को बखूबी दिखाया लेकिन उस खूबसूरत प्यारी सी किशोरी सनूबर के किस्से को अधबीच ही छोड़ दि

"कचकच और कलरव" बैंक पुरानी नोट लेने के लिए नई नोट देने को तैयार है, सरकार भी साथ है, दूध वाला उधार देने को राजी है, सब्जी नगद, राशन कुछ तो है घर में, पुराने नोट से पेट्रोल मिल ही रहा है। अब तुम्हें क्या चाहिये, चिल्ल पो मत मचाओ, जो भी बन जाय बना लो, खा लेंगे। बिना पैसे क

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एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर ही वह जनरल-बोगी के अंदर घुस पाया। थोड़ी भी कमी रहती तो बोगी से निकलते यात्री उसे वापस प्लेटफार्म पर ठेल देते। पूरी ईमानदारी से दम लगाने में वह हांफने लगा, लेकिन अभी जंग अधूरी ही है, जब तक बैठने का ठीहा न मिल जाए। बोगी ठसाठस भरी थी। साईड वाली दो सी

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यहकोतमा और उस जैसे नगर-कस्बों में यह प्रथा जाने कब से चली आ रही है कि जैसे ही किसी लड़के के पर उगे नहीं कि वह नगर के गली-कूचों को ‘टा-टा’ कहके ‘परदेस’ उड़ जाता है।कहते हैं कि ‘परदेस’ मे सैकड़ों ऐसे ठिकाने हैं जहां नौजवानों की बेहद ज़रूरत है। जहां हिन्दुस्तान के सभी प्रान्त के युवक काम की तलाश में आते है

रोहित का मोबाईल फिर बजा. अब तक न जाने कितनी बार बज चुका था. इतनी बार बजने पर उसे लगा कि कोई तो किसी गंभीर परेशानी में होगा अन्यथा इतने बार फोन न करता. अनमना सा हारकर रोहित ने इस बार फोन उठा ही लिया. संबोधन किया हलो..उधर से आवाज आई...भाई साहब नमस्कार, गोपाल बोल रहा हूँ. बह

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पता नहीं नरगिस नाम क्यों रखा गया था उसका। सांवली सूरत, कटीले नक्श और बड़ी अधखुली आंखों के कारण ही नरगिस नाम रखा गया होगा। नरगिस बानो। बिना बानो के जैसे नाम में कोई जान पैदा न होती हो। नाम कितना भी अच्छा क्यों न हो तक़दीर भी अच्छी हो ये ज़रूरी नहीं। नरगिस अपने नाम के मिठास और खुश्बू से तो वाकिफ़ थी लेकि

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एक विप्र का मित्र किसी महात्मा का शिष्य बन गया। विप्र को यह बात अच्छी नहीं लगी। वह उस महात्मा के पास जाकर उनको गालियां देने लगा। JYOTISH NIKETAN: उपहार

“दीया और माँटी” राम राम झिनकू काका, कैसे हैं आप.......सब खैरियत तो है न......... कब पधारे बबुआ, बहुत दिन बाद गांव याद आया...........ठीक हूँ बचवा, अब क्या हाल और क्या चाल, न चाक में दम रहा न इन बाजुवों में। मैं मॉंटी और मेहनत सब के सब बूढ़े हो गए। अब तो दीये पर लाली भी नही

भगवान राम ने अयोध्या लौटकर राजपाट संभाल लिया था. अयोध्या की जनता बेहद प्रसन्न थी कि आखिर रामराज्य आ ही गया. वैसे जो लोग भरत के राज्य में अपनी सेटिंग बिठा चुके थे, रामराज्य में भी खुश थे. आखिर राजा ही तो बदला था, बाकि सारे महकमे तो वैसे

कहानी....... आज कजरी बहुत खुश है मैके जाने का उसका सपना पूरा होने वाला है। है न अजीब बात, किसी लड़की को मैके जाने का सपना देखना पड़े यह कम हैरत की बात नहीं है। झिनकू भैया की लाड़ली कजरी, केवल उनकी ही बेटी नहीं बरन पूरे गाँव की दुलारी बेटी है। गरीबी तब खटक जाती है जब वह कि

द्वंद ... जारी है. राजस्थान के चाँदा गाँव में स्नेहल एक घरेलू जाना पहचाना नाम था. गाँव के कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली स्नेहल पढ़ाई में अव्वल थी. मजाल कि उसके रहते कोई कक्षा में प्रथम आने की सोच भी लेता. इसके साथ वह थी भी बला की खूबसूरत. घर- बाहर सब उसे प्यार करते थे,

खबर आयी कि 'बाबा' का अस्पताल में देहांत हो गया है | खबर ऐसी कि कानो को विश्वास न हो | पर सत्य सामने था, जिसपर अविश्वास नहीं किया जा सकता था | सभी लोग अस्पताल की तरफ भागे जहां 'बाबा' ने अंतिम साँसे ली थी | अस्पताल की साड़ी औपचारिकताएं ख़त्म कर रात बारह बजे उनके पार्थिव शरीर को उनके घर लाया गया | कड़

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पणजी स्थित निजी पर्यटन कंपनी में सेल्स मैनेजर आनंद कुमार एक अरसे बाद कुछ दिनों की छुट्टियों पर अपने घर अलीगढ आया था। पहले कभी कॉलेज हॉस्टल से छुट्टियों में घर लौटकर जो हफ़्तों की बेफिक्री रहती थी वो इस अवकाश में नहीं थी। रास्ते में ही आनंद को काम में कुछ अधूरे प्रोजेक्ट्स की बेचैनी सता रही थी। माँ, प

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शब्द ों को पढ़ा है तुमने! बोला है! महसूस किया है क्या कभी ?किसी शब्द की गर्दन पर उंगली रख कर सहलाया है कभी?किसी शब्द के सीने पर कान लगाकर धडकनें सुनी है उसकी? तुम कहोगे एक शब्द की इतनी हस्ती ही नहीं! शब्द

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अगले दिन वह तीनो एक साथ Amrita के laptop पर - Tara का mail पढ़ रहे थे ।Dear Amrita ,Mackenzie Collection की एक ही copy है ASB मेँ । यह एक rare book है । कुछ साल पहले Harvard library ने हमें gift किया था । मैने पूरा chapter 8 - scan करके attach कर दिया है ।उम्मीद है तुम जल्द ही Calcutta आओगी ।Tara Ban

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Amrita जब उठी तब उसके सर मेँ headache था । उसने time देखा । 11 बज चुके थे ।उसने मन ही मन Gautam को बहुत सारी गालियाँ दी । Dance कि याद आने पर उसका mood ख़राब हो जाता था । वह Tracy को भूलना चाहती थी ।शायद Gautam सही था - वह दोनो loser थे - इसलिये साथ थे । उसने कसम खाई कि वह ज़िंदगी मेँ कभी Gautam का चे

अजी, सुन रहे हैं बिहाने बिहाने कहाँ जूता चमका रहे हैं। घर- परिवार, नात- बात, अड़ोसी- पडोसी से भी मतलब पड़ता है, सबसे व्यवहार बना के रखना चाहिए। ऐ छोटूवा देख तो निकल गए क्या? बोलो भागवान बिना तुम्हारा दर्शन किए, कैसे निकल सकता हूँ, मेरे सगुन की सिधरि, कुंहको..... आज बहुत परो

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