कहानी
उसने भी प्यार
किया है
विजय कुमार तिवारी
वह अपने सुख
या दुख को
नहीं समझता। खुशी
इस बात की
है कि उसने
भी प्यार किया
है।भले ही इस
बात को कोई
नहीं जानता,परन्तु
यह सच्चाई है।
उसने बारहा ईश्वर
से कहा है
कि वह प्यार
करता है। ईश्वर
मुस्करा देता है।
पहले इस पर
उसे चिढ़ होती
थी कि ईश्वर
उसकी इतनी सी
दुआ क्यों नहीं
पूरी करता और
उपर से हँसता
रहता है। कभी-कभी उसे
ईश्वर के होने
पर ही शक
होने लगता। सुन
रखा था कि
ईश्वर स्वयं प्रेम
का देवता है,सबसे प्रेम
करता है और
चाहता है कि
सभी एक-दूसरे
से प्रेम करें।
फिर उसके प्रेम
को क्यों नहीं
मानता ? क्या उसका
कोई विशेष विधान
है या प्रेम
की कोई अलग
व्याख्या है?धीरे-धीरे उसने
स्वीकार करना सीख
लिया कि ईश्वर
की हँसी में
व्यंग या उपहास
नहीं है,वल्कि
सहानुभूति है। उसकी
झल्लाहट कम होने
लगी और यह
शिकायत भी दूर
होने लगी कि
ईश्वर उसपर हँसता
है। यह भी
सुना था कि
वह चाहे तो
सबकुछ कर सकता
है। फिर इतनी
शिकायत तो थी
ही कि ईश्वर
उसके लिए कुछ
क्यों नहीं करता।
पहली बार उसकी
भेंट श्यामा से
हुई, तब उसने
कोई विशेष गौर
नहीं किया था।ऐसा
भी हो सकता
है कि उसके
मन में प्रेम
या आकर्षण जैसा
कुछ रहा ही
ना हो,या
ऐसा कुछ हो
भी तो कहने
की हिम्मत ना
हो।खुशी इस बात
की थी कि
श्यामा के घर
वाले उसे शुरु
से पसन्द करने
लगे थे और
उसका उस घर
में आना-जाना
बेरोक-टोक था।
आंटी अक्सर कुछ
खाने को देतीं
और अंकल उसे
धर्म की कहानियाँ
सुनाते। श्यामा बहुत मधुर
स्वर में भजन
गाती।
एक दिन श्यामा
ने अपनी माँ
से कहा,"मैं
अपनी सहेली के
घर जाना चाहती
हूँ। हमें मिलकर
पढ़ना है। आप
मेरे साथ चलो
माँ।"
"आज मेरी तबियत
अच्छी नहीं लग
रही। किसी दूसरे
दिन चलेंगें।"
"बहुत जरुरी है माँ,"उदास होती
हुई श्यामा ने
कहा।
तभी वह आता
हुआ दिखाई दिया।माँ
ने कहा,"उसके
साथ चली जाओ।"
वह थोड़ा असंयत हुआ।
श्यामा भी खुश
नहीं हुई।परिस्थिति देखते
हुए माँ ने
कहा," बहुत देर
होने लगे तो
तुम लौट आना।"
पूरे रास्ते श्यामा
चुप रही और
पलकें झुकाये बढ़ती
रही।वह भी चुपचाप
थोड़ी दूरी बनाकर
चलता रहा। सहेली
और उसके घर
वालों ने गर्मजोशी
से दोनो का
स्वागत किया। श्यामा सहेली
के साथ भीतर
चली
गयी और वह
बाहर कमरे में
सोफे पर बैठ
गया।थोड़ी देर में
चाय और कुछ
बिस्कुट लेकर आंटी
जी आयीं। अंकल
को कहीं जाना
था,वे चले
गये। चाय पी
लेने के बाद
उसने आंटी से
पूछा,"मुझे रुकना
है या चला
जाऊँ?"
"अभी रुको ना।
पहली बार तो
आये हो। इतनी
भी क्या जल्दी
है?"उन्होंने टीवी आन
किया और अखबार
लाकर रख दी।
कोई पत्रिका लेकर
वह भी वहीं
बैठ गयीं। बीच-बीच में
उसके बारे में
कुछ-कुछ पूछ
लेतीं। वह बहुत
शालीनता से उत्तर
देता रहा। फिर
उन्होने कहा,"कुछ खाने
के लिए लाती
हूँ,आप हाथ
धो लो।"
उसने ना कर
दिया और उठ
खड़ा हुआ।
"अरे बैठो भी,नहीं लाती
कुछ,"आंटी ने
हँसकर कहा,"चाय
तो पीनी ही
पड़ेगी। देखो "ना" मत
कहना।"
ऐसे स्नेहिल भावों
के आगे वह
कुछ बोल नहीं
पाया। आंटी चाय
बनाने चली गयीं
और उसने पूरे
कमरे का मुआयना
शुरु कर दिया।
कमरे की दीवारें
साफ-सुथरी थीं
और हर दीवार
पर देवताओं के
कलैण्डर टँगे हुए
थे। खिड़की खुली
हुई थी जिसके
पार फूलों की
क्यारियाँ थीं और
सुन्दर खुशबू फैली हुई
थी।
आंटी चाय लेकर
आ गयीं और
गिलास में पानी
भी। उसने पानी
पिया और "धन्यवाद"
कहा।
"चीनी कम हो
तो बताना,"
"नहीं,ठीक है,"उसने एक
घूँट पीने के
बाद कहा।
अचानक श्यामा और
उसकी सहेली की
उन्मुक्त हँसी सुनायी
दी। दोनो का
ध्यान उधर गया
और आंटी के
चेहरे पर मुस्कान
उभर आयी," जरुर
कोई मजाक की
बातें हुई होंगी।"
उसे भी अच्छा
लगा। स्मित हँसी
की स्थिति बनी
परन्तु उसने भावों
को प्रस्फुटित होने
के पहले ही
रोक लिया।
आंटी ने कहा,"
यही तो समय
है,बेटियाँ हँस-बोल लेती
हैं,वरना जीवन
में क्या होगा,समझना मुश्किल है।आज
का दौर बहुत
खराब है।"
उसने "हाँ" में सिर
हिलाया परन्तु मन ही
मन सहमत नहीं
था। आंटी उसके
भावों को समझ
गयीं,"आप भले
ही कुछ भी
सोचो,आज के
हालात ऐसे ही
हैं। लड़कों को
समझना बहुत कठिन
है।"
दोनो लड़कियाँ बाहर
आयीं। दोनो के
चेहरे दमक रहे
थे और दोनो
की आँखों में
चमक थी। उसने
श्यामा को कभी
इतना खुश नहीं
देखा था। पहली
बार उसे महसूस
हुआ,श्यामा बहुत
अच्छी है और
सुन्दर भी।
आंटी ने पुछा,'किस बात पर
तुम दोनो इतनी
खुश थी?"
उसने भी उत्तर
की प्रतीक्षा में
दोनो को बारी-बारी से
देखा। श्यामा से
नजरें मिली। वह
मुस्कराने लगी और
उसकी सहेली हँस
पड़ी।
रास्ते में श्यामा
ने कहा,"मेरी
सहेली और आंटी
को आप बहुत
अच्छे लगे।" थोड़ा
रुककर उसने फिर
कहा,"आज आपका
बहुत समय हमने
ले लिया।"
"नहीं-नहीं,कोई
बात नहीं। मुझे
भी अच्छा लगा
उन लोगो से
मिलकर। आंटी दुबारा
चाय बनायीं और
बहुत सारी बातें
कीं।"
श्यामा पहले की
तरह फिर गम्भीर
हो गयी और
चुपचाप चलने लगी।
उसने भी चुप्पी
साध ली। इन्हीं
मुश्किल पलों में
कभी-कभी दोनो
एक-दूसरे को
देख लेते और
अपनी-अपनी मुस्कराहट
को छिपा लेते
थे।
उस रात उसे
नींद नहीं आ
रही थी और
दिन भर का
दृश्य उसके सामने
उभर आता था।पहली
बार उसे गुदगुदी
जैसा लगा और
स्नेहिल पलों को
उसने बार-बार
याद किया। श्यामा
की भोली सी
मुस्कराहट स्थायी तौर पर
उसकी स्मृतियों में
बस गयी। उसने
श्यामा की मूर्ति
को याद करने
की कोशिशें की।
हर बार लगा,उसका सौन्दर्य
अद्भूत और अप्रतिम
है। उसका बोलना,हँसना,शरमाना,पलकें
उठाना और झुका
लेना किसी के
मन को बाँध
लेने वाला है।
आश्चर्य है कि
अब तक उसने
सौन्दर्यमयी मूर्ति को समझा
क्यों नहीं। उसने
यह भी गौर
किया कि जाते
समय श्यामा खुश
नहीं थी परन्तु
लौटते समय बदल
गयी थी। उसने
बहुत जोर देकर
सोचा कि वहाँ
ऐसा क्या हुआ
कि श्यामा हँसने-मुस्कराने लगी। श्यामा
की बातें मधुर
हैं और उसका
गायन भी। आकाश
में बादल छाये
हुए थे और
उसके भीतर कोई
मधुर गूँज फैली
हुई थी। शरीर
में मधुर सिहरन,आँखों के सामने
सौन्दर्य की मूर्ति
और पुरे ब्रह्माण्ड
में प्रेम का
संगीत।जरूर उसे प्यार
हुआ है और
मुस्करा उठा।
क्या सचमुच उसे
प्यार हुआ है?
क्या यही प्यार
है?उसकी सोचने
की दिशा बदल
गयी और मन
के भीतर मानो
कुछ घटित हो
रहा हो। विस्तर
पर सोये-सोये
उसने इस रुपान्तरण
की पूरी प्रक्रिया
को महसूस किया
और मनमोहक खुशी
से झूम उठा।साथ
ही उसने यह
भी सोचा-इतना
उतावला होना उचित
नहीं है। उसने
अपनी उमड़ती भावनाओं
को रोकना चाहा,उनपर लगाम
लगाना चाहा परन्तु
प्रवाह इतना तीव्र
था कि सारी
हदें पार कर
जाने की उत्कन्ठा
जाग उठी।श्यामा अभी
पास होती तो----तो? नहीं,नहीं--उसकी तन्द्रा
भंग हुई। उठ
बैठा। उसने पानी
पीया और कमरे
से बाहर आ
गया। उत्साह और
खुशी की जगह
मानो बेचैनी छाने
लगी। बाहर हवा
में थोड़ी ठंडक
थी। उसका स्पर्श
अच्छा लगा। उसने
मान लिया कि
कोई शक नहीं,प्रेम हो गया
है। साथ ही
यह भी माना
कि यदि यही
प्रेम है तो
बहुत मधुर अनुभूति
के साथ गहरी
टीस पैदा करने
वाला है।
वह बहुत भावुक
है और चिन्तनशील
भी। उसका अपना
तरीका है जिन्दगी
जीने का। उसमें
आकर्षण है और
मजबूती भी। बहुत
बारीकी से उसने
सम्बन्धों को समझने
की कोशिश की
है। उसके दोस्त
उसका आदर करते
हैं परन्तु अपना
आदर्श उसे नहीं
बनाते। उनका मानना
है कि जिन्दगी
जीने की चीज
है,बहुत आदर्शवान
होना मजे लेने
में सहायक नहीं
है। वह धार्मिक
विचार रखता है
और परमात्मा में
विश्वास करता है।इसी
से अंकल जैसे
लोग स्नेह करते
हैं। अक्सर वह
लड़कियों से दूर
रहता है और
उदासीन भी। बांकपन
और आशिकी जैसी
बातें उसमे नहीं
दिखती। लड़किया भी ध्यान
नहीं देतीं। सभी
को उसमें अपना
भैया दिखता है
और इसी भाव
से वह सबका
अपना है। श्यामा
के लिए भी
शायद ऐसा ही
था और इससे
पहले उसे भी
कोई एतराज नहीं
था। उसके चेहरे
पर मुस्कान की
पतली रेखा उभर
आयी- ओह मेरा
प्यार।
सुबह उसकी नींद
बहुत देर से
टूटी। जल्दी-जल्दी
उसने स्नान किया
और मन्दिर पहुँच
गया। मन्दिर मे
बहुत भीड़ थी।
एक कोने मे
जाकर बैठ गया
और हाथ जोड़े
भगवान को देखता
रहा। धीरे-धीरे
उसकी आँखें बंद
हो गयी। उसने
अपनी सारी बातें,भावनायें और उत्साह
भगवान को समर्पित
कर दिया और
उठ खड़ा हुआ।
पुनः हाथ जोड़ा
और बाहर निकल
आया। मन हुआ
कि श्यामा के
घर जाया जाये
परन्तु फिर अपने
को नियन्त्रित किया
और घर आ
गया। उसे पूरी
उम्मीद थी कि
भगवान जरुर सहयोग
करेंगें और उसका
प्रेम रंग लायेगा।
अगले चार दिनों
तक ईधर-उधर
घूमता रहा और
भीतर जन्म ले
चुकी प्रेम-भावना
की तपन महसूस
करता रहा। इसमें
उसे अद्भूत सुखानुभूति
होती रही। चौथे
दिन की साँझ
वेला में अंकल
मिल गये। उन्होंने
हालचाल पूछा और
घर आने को
कहा। उसने बहाना
बनाया,"थोड़ी व्यस्तता है।
शीघ्र ही आऊँगा।"
उस रात उसे
अच्छी नींद आयी।
लगभग आश्वस्त हुआ
कि श्यामा के
घर में ऐसा
कुछ नहीं हुआ
है कि उस
पर किसी तरह
की चर्चा की
जा सके। साथ
ही यह भी
हो सकता है
कि श्यामा के
मन में भी
वैसी ही अनुभूति
हो रही हो
जैसा कि वह
अनुभव कर रहा
है।मन के किसी
कोने मे उपजा
भय तिरोहित हो
चुका था।
अगले दिन एक
सुखद संयोग बना।श्यामा
को कालेज से
शाम 4 बजे आना
था और अंकल-आंटी को
खरीदारी करने बाजार
जाना था। घर
की चाभी श्यामा
को देनी थी।
उसने चाभी ले
ली और शाम
4 बजने की प्रतीक्षा
करने लगा। वह
आयी। उसने ताला
खोला और श्यामा
के साथ बाहरी
कमरे तक चला
आया। श्यामा के
चेहरे पर थकान
थी और उसने
भी पहले की
तरह गम्भीरता ओढ़
ली थी। श्यामा
कीचेन में गयी
और पानी लाकर
दी। उसने पानी
पी लिया।
"चाय बना दूँ?"
श्यामा ने पूछा।
उसने कहा,'नहीं,तुम तो
स्वयं थकी हुई
हो।"
"बनाती हूँ" कहकर श्यामा
फिर से कीचेन
में चली गयी।पहले
तो उसे थोड़ी
झिझक सी हुई
कि अकेली लड़की
के साथ उसके
घर में है,फिर उसने
स्वयं को समझा
लिया कि अंकल-आंटी ने
खुद चाभी दी
है। श्यामा ने
चाय का कप
सामने रखा और
भीतर चली गयी।
थोड़ी देर में
वह बाहर आयी।उसने
अपना कपड़ा बदल
लिया था।
"अब चलूँ?' उसने कहा
और उठ खड़ा
हुआ। श्यामा भी
खड़ी हो गयी।
रात की नींद
फिर गायब थी।
उसकी खुशी बेचैनी
में बदल गयी।
किसी भी तरह
का संकेत नहीं
था कि उसे
कोई उम्मीद जगे।
उसने अपनी हरकतों
और गतिविधियों पर
गौर किया कि
कहीं कोई गलती
ना हो गयी
हो। सबकुछ ठीक
ही था। उसने
श्यामा पर गौर
किया। वह थकी
भी थी और
थोड़ी असहज भी।
ऐसा होना स्वाभाविक
है। उसने महसूस
किया कि श्यामा
के दिल में
ऐसा कुछ भी
नहीं है। उसे
अपने पर किंचित
ग्लानि भी हुई।
इसी उहापोह में
कब नींद लग
गयी,पता ही
नहीं चला।
सुबह मौसम में
ताजगी थी और
चारो ओर पक्षियों
का शोर था।
उसने देखा,फूलों
की क्यारियों में
भौंरें गुँजार कर रहे
हैं। उसके भीतर
भी कुछ ऐसे
ही गुँजायमान सा
हुआ। श्यामा की
सुन्दर आकृति उभरी मानो
वह भी मुस्करा
रही हो। कल
की स्थिति को
याद करते हुए
उसने तात्कालिक अनुभूतियों
को झटक देना
चाहा। एक मासूम
उदासी उभर आयी।
इस हालात में
डूबे रहना उसे
अच्छा लगने लगा-प्यार की मूर्ति
आँखों में हो,दिल को
सिद्दत से महसूस
हो रहा हो
कि दुनिया बहुत
खुबसूरत है,प्यार
की अनुभूति भी
हो और शायद
ना हो जाने
की बेचैनी भी
हो। जो भी
हो,उसके भीतर
खुशी की लहर
थी और पूरे
शरीर में सिहरन।
एक समस्या और
उठ खड़ी हुई।
उसे श्यामा के
घर के सामने
से किसी युवा
का गुजरना नागवार
लगने लगा। वह
नहीं चाहता कि
कोई श्यामा को
देखे।पूरी दुनिया से वह
उसे बचाकर रखना
चाहता था। कभी
कोई गुजरे और
श्यामा बाहर खड़ी
दिखती तो उसकी
भावनायें आहत होने
लगती। भीतरी तौर
पर उद्वेलित हो
उठता और घण्टों
स्वयं को पीड़ित
पाता। सामान्य होने
में बहुत समय
लगता। यह भी
सोचता कि क्यों
इतना व्यथित होता
है? शीघ्र ही
यह विचार हावी
हो जाता कि
उसकी चिन्ता करना
अस्वाभाविक नहीं है।
अजीब उधेड़बुन थी।
कभी लगता सबकुछ
अच्छा है और
कभी लगता,कुछ
भी अच्छा नहीं
है। कभी खुश
होता और कभी
उसका दिल बैठने
लगता।प्रेम की पीड़ा
वही समझ सकता
है जिसने प्रेम
किया हो। उसे
यह भी स्पष्ट
नहीं था कि
श्यामा क्या चाहती
है? प्यार की
कोई कली उसके
दिल में खिल
भी रही है
या नहीं?
श्यामा के घर
में कोई पूजा-पाठ का
कार्यक्रम होनेवाला था। अंकल
निमन्त्रित तो किये
ही थे,साथ
ही तैयारी में
मदद करने की
भी बातें हुई
थी। वह सहर्ष
तैयार था और
सुबह ही पहुँच
गया। अंकल आफिस
नहीं गये और
श्यामा कालेज नहीं गयी।
बाहर वाले कमरे
को खाली किया
गया। सारी कुर्सियाँ,टेबुल,सोफा और
पलंग हटाया गया।
भारी सामान को
हटाने में अंकल
भी साथ लग
जाते थे। श्यामा
भी कुछ-कुछ
कर रही थी।
उसे श्यामा का
आसपास होना बहुत
अच्छा लग रहा
था। एक बहुत
ही महत्वपूर्ण स्थिति
यह हुई जिसने
उसे खूब रोमांचित
किया,आज काम
करने,झाड़ू बहारने
आदि के चलते
श्यामा ने दुपट्टा
नहीं लिया था।
उसके सामने उसकी
प्रियतमा,जैसा कि
उसने मान लिया
था, इस नये
रुप में बहुत
सुन्दर लग रही
थी। श्यामा की
भीतर बसी मूर्ति
को उसने हटाया
और इस नये,मोहक रुप
को स्थापित किया।
आंटी की मदद
के लिये श्यामा
की सहेली की
माँ आ गयी
थी और सहेली
भी थोड़ी देर
में आने वाली
थी। अंकल के
साथ उसने फल
और मिठाई की
खरीदारी की। अंकल
फूल तोड़ने लगे
और उसने माला
बनाना शुरु कर
दिया। श्यामा ने
थाल में अक्षत,चन्दन,रोरी,चावल,आम के
पत्ते आदि सजाया.। उसने
महसूस किया कि
श्यामा कोई भजन
गुनगुना रही है।
आंटी ने श्यामा
से कहा कि
सबके लिए चाय
बना दे। चाय
पीकर सभी फिर
से तैयारी में
जुट गये।
अपने घर से
स्नान करके जब
वह वापस लौटा
तो यहाँ का
वातावरण भक्तिमय हो चुका
था। अंकल पीले
रंग का वस्त्र
धारण कर चुके
थे और श्यामा
लाल रंग का
मखमली सूट पहनी
थी। उसने एक
बार फिर उसे
बहुत ध्यान से
देखा। वह बहुत
भव्य और सुन्दर
लग रही थी।
उसकी सहेली भी
आ गयी थी।
स्वाभाविक था कि
दोनो सहेलियों में
मित्रता,हास्य और थोड़ी
शरारत की स्थिति
बन चुकी थी।
वे दोनो थोड़ी
दूरी पर थी
और कुछ-कुछ
कर भी रही
थी। अंकल के
कहने पर उसने
एक बाल्टी पानी
और लोटा बाहर
रखा ताकि लोग
अपना हाथ-पैर
धो कर बैठें।
पूजा का सारा
कार्यक्रम बहुत देर
तक चला और
सभी भक्ति में
डूबे हुए थे।
उसका ध्यान दोनो
तरफ था। जब
भी वह श्यामा
की ओर देखता,उसकी सहेली
से निगाहें मिल
जाती। बाद में
उसने अपना पूरा
ध्यान पूजा में
लगा दिया। पूजा
के बाद प्रसाद
वितरण हुआ। फिर
सभी को भोजन
करवाया गया। उसने
भोजन परोसने में
दोनो सहेलियो की
मदद की।
रात में जब
वह सोने लगा
तो नींद नहीं
आ रही थी।
बेचैनी भी थी।
दिनभर साथ रहने,साथ काम
करने और बातचीत
के बावजूद कोई
संकेत नहीं दिखा।
उसने इस विचार
को अपने तर्को
से झटक देना
चाहा। सुबह से
शाम तक उसने
उसे अनेक रुपों
में देखा और
खुश होता रहा।उसने
अपना सौभाग्य माना
कि दिनभर उसके
साथ रहने का
मौका मिला।
एक दिन श्यामा
ने उससे कहा,"
आपको पता है-मेरी सहेली
की शादी हो
रही है?"
"यह तो बहुत
शुभ समाचार है,"
उसने उत्तर दिया
और मुस्करा दिया।
श्यामा के चेहरे
पर मुस्कान के
साथ लाली उभर
आयी। शादी के
दिन श्यामा की
खूबसूरती और निखर
आयी थी। आज
उसने साड़ी पहन
रखी थी।गोरे रंग
पर गुलाबी साड़ी
खूब जँच रही
थी। उसके हृदयपटल
पर यह छवि
भी अंकित हो
गयी। उसकी स्मृतियों
में श्यामा के
अनेक रुप उभरते,मिटते रहते थे
और हर रुप
पर उसकी दीवानगी
का आलम देखते
बनता था।
लेकिन श्यामा में
उसने एक परिवर्तन
की झलक देखी।
वह थोड़ी उदास
और चुप सी
रहने लगी। उसका
यो चुप-चुप
रहना उसे नागवार
गुजरने लगा। सहेली
से जुदाई कारण
हो सकता है।
उसने किसी दिन
पूछ ही लिया
परन्तु श्यामा ने कोई
उत्तर नहीं दिया।
बाद में बतायी
कि उससे पढ़ायी
में बहुत मदद
मिलती थी।
उसने कहा," तुम
चाहो तो मैं
कुछ मदद कर
सकता हूँ।"
श्यामा ने कोई
प्रतिक्रिया नहीं दिखायी,परन्तु आंटी ने
अपनी सहमति जता
दी।अंकल को भी
कोई एतराज नहीं
था। मिलने-जुलने
के सुअवसर बनने
लगे। श्यामा में
एक बदलाव और
दिखा। अब वह
तत्परता के साथ
अध्ययन में जुट
गयी। शायद उसने
अपने लिए कोई
बड़ा लक्ष्य निर्धारित
कर लिया था।
गम्भीरता भी आ
गयी थी। परीक्षा
भी समीप थी।
स्थिति यह हुई
कि पास होकर
भी वह उससे
बहुत दूर दिखती।
वह दुखी तो
होता था परन्तु
एक संतोष था
कि सामने तो
रहती है और
मुलाकात हो जाती
है।
परीक्षा के ठीक
पहले आंटी के
पिताजी की तवियत
बहुत खराब हो
गयी। हर हाल
में अंकल,आंटी
का जाना जरुरी
था।आंटी अपने पिताजी
को लेकर बहुत
चिंतित थी। श्यामा
को इस तरह
छोड़कर जाने में
भी उनका दिल
धड़कता था। उन्होंने
अपनी व्यथा को
छिपाते हुए कहा,'
देखो तुम मेरे
बेटे के बराबर
हो। बहुत विश्वास
करके जा रही
हूँ। ध्यान रखना।"
"आप बिल्कुल चिन्ता नहीं
करें," उसने कहा।
'तुम यहीं सो
जाना," आंटी की
आवाज बहुत भारी
लगी। आँखें भर
आयीं। उसने फिर
से चिन्ता ना
करने की बात
कही। श्यामा के
चेहरे पर भी
भय जैसी भावनायें
थीं। उसने अपने
दिल को कड़ा
किया और अपने
संस्कार के अनुसार
तय कर लिया
कि बहुत सावधानी
से अपने वचन
का निर्वाह करेगा।
श्यामा की परीक्षा
का पहला दिन
बहुत अच्छा रहा।
उसने पूछा तो
वह मुस्करा कर
बोली,' बहुत अच्छा
रहा। बहुत डर
लग रहा था।"
उसने कहा," सब
अच्छा होगा। तुम
बिना किसी चिन्ता
के,बिना किसी
भय के तैयारी
करो और परीक्षा
दो। कोई भी
असुविधा लगे तो
बता दो,मैं
उसे दूर कर
दूँगा। खूब पढ़ो
और मन से
परीक्षा दो।"फिर उसने
मुस्कराते हुए पूछा,"कोई चीज
पसन्द हो तो
बोल दो,बाजार
से ला दूँगा।"उसके चेहरे
पर मुस्कान उभर
आयी। श्यामा थकी
थी। वहीं लेट
गयी और नींद
आ गयी। सोयी
हुई श्यामा को
उसने देखा,"कितनी
सुन्दर हो तुम।उसने
अपनी भावनाओं को
नियन्त्रित किया,बाहर
निकल आया और
आसपास घुमता रहा।थोड़ी
देर में श्यामा
भी बाहर आ
गयी। साँझ ढलने
वाली थी और
अंधेरा छाने लगा
था।चाय पीकर वह
पढ़ने बैठ गयी
और वह उसे
देखता रहा। कभी
कभी श्यामा कुछ
पूछती तो बता
देता।
अंकल-आंटी आये
तो परीक्षा समाप्त
हो गयी थी।
आंटी रो पड़ी।
उनके पिताजी का
देहान्त हो चुका
था। उनकी आँखों
में खुशी के
भी आँसू थे
कि उनके विश्वास
की रक्षा हुई
है। एक खुशी
यह भी थी
कि उन लोगों
ने श्यामा के
लिए एक अच्छा
लड़का भी देखा
है
लेकिन यह बात
उसे नहीं बतायी
गयी। श्यामा अब
मुखर हो चली
थी और घर
में हँसती खिलखिलाती
रहती थी। उसने
सोचा,शायद परीक्षा
के दबाव से
मुक्ति का अहसास
हो।साथ ही उसे
अपने पर भी
चिन्ता हो रही
थी। उसे कुछ
नहीं आता। कहीं
ऐसा ना हो
कि वो देखता
रह जाय और
श्यामा किसी और
की हो जाय।
नहीं,ऐसा नहीं
हो सकता। अपनी
बात की पुष्टि
के लिए उसके
पास अनेकों तर्कसंगत
आधार थे।उसे अपने
प्यार पर विश्वास
था। श्यामा की
खुशी का कारण
उसने जहाँ परीक्षा
खत्म हो जाना
माना,अंकल-आंटी
का आ जाना
माना,वहीं अपने
प्रेम को भी
माना।
एक दिन सुबह-सुबह अंकल
ने कहा,"आज
हम सभी बगल
के शहर में
एक धार्मिक कार्यक्रम
में जा रहे
हैं। तुम भी
तो धर्म-अध्यात्म
में रुचि रखते
हो। हो सके
तो हमारे साथ
चलो।"
वह तैयार हो
गया। उसने सोचा,'
श्यामा का साथ
तो रहेगा और
दिनभर बहुत खुशी
रहेगी।"
जल्दी ही वे
सभी घर से
निकल पड़े। मुख्य
सड़क तक पैदल
ही चलना पड़ा।
आती-जाती गाड़ियों
में भीड़ बहुत
थी। कोई गाड़ी
रुकती नहीं थी।
थोड़ी प्रतीक्षा के
बाद एक रुकी
तो वे लोग
चढ़ने लगे। बैठने
की स्थिति सम्भव
नहीं थी। पहले
से ही बहुत
लोग खड़े थे।
अंकल,आंटी आगे
हो लिये। श्यामा
भीड़ में दबी
उसके सामने थी
और लगभग सटी
हुई खड़ी थी।
उसका नैतिक भाव
जाग उठा। उसने
पूरा बल लगाकर
एक दूरी बनाये
रखा। श्यामा ने
मुस्कराकर उसके इस
व्यवहार पर खुशी
जतायी।फिर भी कभी-कभी ना
चाहते हुए भी
दोनो का स्पर्श
हो ही जाता
था।उसका मन हिलोरे
मारने लगता।
कार्यक्रम स्थल पर
समय से पहुँच
जाने की खुशी
अंकल के चेहरे
पर स्पष्ट दिख
रही थी। उनके
बहुत से परिचित
लोग मिले और
अंकल ने उसका
परिचय बहुत लोगों
से करवाया। भजन
गाने के लिये
दो लड़कियाँ बैठी
थीं,श्यामा भी
उन्हीं के साथ
बैठ गयी। उसे
बहुत अच्छा लगा
क्योंकि सामने से उसे
देखते रहने का
सुअवसर था। उन
तीनो ने अनेक
भजन गाये और
पूरा वातावरण भक्तिमय
हो गया। कार्यक्रम
लम्बा चला और
अन्त में सभी
ने महाप्रसाद लिया।
लौटते समय भीड़
और ज्यादा थी।
सामने से कई
गाड़ियाँ निकल गयीं।
जिसमें वे लोग
चढ़ पाये,भीतर
पाँव रखने की
जगह नहीं थी।
बचाव का कोई
उपाय नहीं था।
दोनो सटे हुए
खड़े थे और
भीड़ के पूर्ण
दबाव में थे।
हालाँकि उसने लगातार
पूरी कोशिश की
जिसका सकारात्मक अहसास
श्यामा को भी
था।
बहुत कम समय
के लिये श्यामा
की सहेली अपने
ससुराल से आयी।
श्यामा ने कहा,"
चलिये मिल आते
हैं।"उसने गौर
किया-कितना बदल
जाती है लड़कियाँ
शादी के बाद
और बहुत खुश
हो जाती हैं।
दोनो सहेलियाँ गले
मिलीं और खूब
खुश हुईं। बाहर
वाले कमरे में
ही सभी बैठे।
उनकी बातें खत्म
ही नहीं हो
रही थीं। बेझिझक
दोनो कुछ भी
बोलतीं और खूब
हँसने लगतीं। श्यामा
को खुश देखकर
वह भी खुश
होता और मुस्कराता
रहता।
आंटी ने उससे
कहा," हमलोग गाँव जाने
वाले हैं और
तुम यहीं सोया
करना।"उसने घर
की चाभी ले
ली और सोचा,"मेरी स्थिति
उलझती जा रही
है। मैं इसे
क्या समझूँ? श्यामा
के चेहरे पर
खुशी तो है
लेकिन किस कारण
से है,यह
समझना आसान नहीं
है। अचानक गाँव
क्यों गये हैं?किसी ने
कुछ बताया भी
नहीं। श्यामा ने
भी तो बातें
करना शुरु कर
ही दी है।बहुत
कुछ बताती रहती
है-सहेली के
बारे में,घर
के बारे में,अपनी रुचियों
के बारे में।
धीरे-धीरे उसने
उसकी बहुत सी
आदतों को जान
लिया है।" फिर
वह उदास हो
जाता-कहाँ जान
पाता है कि
उसके दिल में
क्या है?कभी-अभी उसे
लगता है कि
क्यों इस झमेले
मे पड़ गया
है?कहीं ऐसा
तो नहीं कि
ये लोग मुझे
उसके योग्य ना
मानते हों?फिर
सोचता कि नहीं,ऐसा नहीं
हो सकता।
जिस शाम वे
लोग आये,बाहर
बहुत बरसात हो
रही थी। श्यामा
पूरी तरह भीग
चुकी थी और
उसके कपड़े शरीर
से चिपके हुए
थे। उसने देखा
परन्तु निहार नहीं सका।श्यामा
शीघ्र ही भीतर
चली आयी। उसने
तौलिया बढ़ा दिया
और बाहर निकल
आया।
सप्ताह पर सप्ताह
बीतने लगे। उसका
श्यामा के घर
आना-जाना अपेक्षाकृत
कम होता गया।
कभी जाता तो
श्यामा से बहुत
सी बातें करता
और वह हँसती-मुस्कराती रहती।ऐसे हालात
में उसका कलेजा
मुँह को आ
जाता परन्तु बहुत
मुश्किल से अपने
को रोक पाता।
बहुत कुछ कहना
चाहता था परन्तु
कुछ भी नहीं
कह पाता। श्यामा
को खुश देख
खुश हो जाता।
एक दिन उसने
हिम्मत की और
तय कर लिया
कि आज श्यामा
को सब कुछ
बता देगा। श्यामा
बाहर वाले कमरे
में थी। उसने
उत्साह के साथ
स्वागत किया। चाय बनाने
चली गयी। चाय
का कप रखते
हुए श्यामा ने
कहा,"आप थोड़ी
मेरी मदद कीजिये।"
चाय का कप
उठाते हुए उसने
पूछा,"क्या?"
"मुझे कुछ खरीदारी
करनी है। आप
मेरे साथ बाजार
चलिये" श्यामा ने निवेदन
किया।
"हाँ, जरुर" वह उठ
खड़ा हुआ।
उस दिन श्यामा
ने बहुत खरीदारी
की और खूब
खुश थी। श्यामा
का उत्साह देखते
बनता था। वह
भी खुश था
कि श्यामा खुश
है। उसने उसकी
पसन्द की दाद
दी,उसके चातुर्य
की सराहना की
और खिले हुए
चेहरे को बार-बार देखा।
प्यार से देखा,उमंग और
उत्साह से देखा।
श्यामा ने हर
बार उसके पसन्द
की सलाह ली
और बोलती रही,"आपकी पसन्द
बहुत अच्छी है।"उसने श्यामा
से कहा,' मैं
भी तुम्हें कुछ
गिफ्ट देना चाहता
हूँ,अस्वीकार तो
नहीं करोगी?"श्यामा
खुश होती हुई
बोली,"मुझे खुशी
होगी।"उसने एक
घड़ी खरीदी और
दे दिया। श्यामा
ने खुशी से
स्वीकार कर लिया
और वहीं अपनी
कलाई में पहन
ली।उसे बहुत प्रसन्नता
हुई।
रात को जब
उसने आज दिनभर
के घटनाक्रम पर
गौर किया तो
भीतर बहुत संतोष
और शान्ति महसूस
हुई। अंकल,आंटी
भी खरीदारी में
लगे थे और
कई दिन उसे
भी साथ ले
गये।
उसने देखा कि
श्यामा उसके घर
की तरफ आ
रही है। आश्चर्य
के साथ उसने
दरवाजा खोला। श्यामा के
चेहरे पर मुस्कान
फैली थी।उसने कहा,"आज आप
शाम में हमारे
साथ खाना खायेंगें।
माँ ने बुलाया
है।"
जब वह उसके
घर पहुँचा तो
देखा भोजन तैयार
था। सभी प्रसन्न
थे। श्यामा कुछ
ज्यादा ही चहक
रही थी। उसने
प्रश्न-सूचक दृष्टि
से देखा। श्यामा
ने कहा,"आप
कहते थे ना
कि मैं आपसे
कुछ मागूँ। भाईजान
मुझे एक सुन्दर
सी भाभी ला
दीजिये।"