ले के उम्मीदों की गठरी, चल रहा सारा जहां है,कुछ के हिस्से में जमीं है, कुछ के हिस्से आसमां है।दरमियां हैं इनके, कुछ अपने अहम,अपने सलीके,सोचते हैं जो, असल में, वो कभी
एक गांव में 2 लड़के रहते थे दोनों लड़के बिना कामकाज के इधर-उधर घूमते रहते थे कुछ समय बाद जब दोनों की उम्र 18 साल हुई तो उन दोनों को घर वाले ने अपने घरों से निकाल कर बाहर कर दिया और वह दोनों एक जंगल के
Title-बवंडर ख्वाब भी कितना अजीब होता है, चलते हुए इंसान को सपनों की दुनिया में पहुंचा देता है। मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूं कि जिन्दगी की कड़वी लेकिन सच्ची बात भी यही है। अगर यह सपने न होते.तो
महानगर के बीचों बीच आकाश छूती इमारतों के बीच त्यागी अपने पन्द्रहवें माले के फ्लैट की बालकोनी के बाहर खड़ा हैं। काम वाली बाई सुबह का खाना बनाकर रख गई है । पिछली रात बेटा और बहू भी मुन्नी को लेकर एक दूस
संत कबीर जी कहते हैं कि- " काल करे सो आज करै, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब।।" अर्थात कल का नाम काल है, इसलिए मनुष्य को जो भी काम करना है, उसे कल पर नहीं टालना चाहिए। क्योंकि क
काल चक्र के दो हैं पहिये,रात और दिन कहलाते।चौबीस घंटे बने हैं सारथी,निरन्तर आगे बढ़ते जाते।।समय का पहिया चलता जाता,कभी न रुकता कभी न थकता।कोई आए चाहे कोई जाए,कभी न इसको फर्क है पड़ता।।काल चक्र से कोई न
एक दिन टहलते टहलते कुछ देर हो गई और वहीं पार्क की बेंच पर थोड़ा सुस्ताने बैठ गया हवा के झोंके ने छुआ और वही बेंच पर लेट गया पहुँच गया बीते दिनों में दफ्तर के केबिन म
काल चक्र का फेर है आवा।मन का मन का फेर बढ़ावा।।कालचक्र में हे रघुकुल नंदन,चाहे जितने हो ये प्रीति वंदन।।चौदह वर्ष वनवास का पाया।घास पात का बिछौना पाया।।वन उपवन में विचरण पाया।कंद मूल रूप फल सब खाया।।स
समय और शब्द का तुम,न लापरवाही से करो प्रयोग।वरना दुनिया की भीड़ में,होगा तुम्हारी ही उपयोग।।गलत बोलने पर कभी,वह वापस नहीं आता।शब्द तीर की तरह होता,कमान में वापस नहीं आता।।जो कल समय था आज नहीं,आज के पल