काल चक्र के दो हैं पहिये,
रात और दिन कहलाते।
चौबीस घंटे बने हैं सारथी,
निरन्तर आगे बढ़ते जाते।।
समय का पहिया चलता जाता,
कभी न रुकता कभी न थकता।
कोई आए चाहे कोई जाए,
कभी न इसको फर्क है पड़ता।।
काल चक्र से कोई न अछूता,
रावण हर ले गया माता सीता।
राम-लक्ष्मण वन वन में भटके,
दशरथ के प्राण गले में अटके।।
रावण कहलाता विश्व विजेता,
काल चक्र से वो भी न बच पाता।
वानर सेना से वो हार ही जाता,
वनवासी राम से दस शीश कटाता।।
बिना अस्त्र और बिना शस्त्र उठाये,
वो पाण्डवों को महाभारत जितवाये।
कालचक्र से कृष्ण भी न बच पाये,
एक बहेलिये के तीर से प्राण गँवाये।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर