नर नारायण बन स्वामि बन अगराता है।
नारी कामायनी बन, अश्रु धार बहाती है।।
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भ्रुण काल माना विस्मृत कर क्षमा - पात्र है।
शिशु स्तन पान कर नवजीवन हीं पाता है।।
तरुण गोद से उछल - कूद दौड़ लगाता है।
युवा नार सौंदर्य में अपने स्वप्न सजाता है।।
वयस्क - वृद्ध लाठी कह सटे से रह जाते हैं।
अंत काल देख बिलख - रोते पर मर जाते हैं।।
नारी की लोरी जीवन की अमृत धुली जिह्वा है।
नारी लक्ष्मी - सरस्वती - दुर्गा स्वरुप - माता है।।
कर्ज से पुरुष "उऋण" नहीं कभी हो पाया है।
देवी माँ की सेवा कर हीं मेवा प्रताप पाता है।।
🎊🎊🎊🎊 🙏के• के•🙏🎊🎊🎊🎊